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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने लुटियंस दिल्ली के सेंट्रल विस्टा (Central Vista) क्षेत्र के भूमि उपयोग के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी.
जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता क्योंकि ये नीतिगत मामला है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ने ये तर्क नहीं दिया है कि भूमि उपयोग में परिवर्तन एक दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया गया है. ये याचिकाकर्ता की मांग है कि पहले ये जिस प्रकार का क्षेत्र था इसे उसी तरह बनाए रखा जाना चाहिए था.
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर ने याचिकाकर्ता राजीव सूरी के वकील से पूछा कि 'क्या उपराष्ट्रपति के आवास के स्थान के बारे में आम लोगों से सुझाव लिया जाना चाहिए?'
याचिकाकर्ता राजीव सूरी के वकील द्वारा दिए गए तर्क में दावा किया गया कि अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है और दिल्ली के निवासियों को सेंट्रल विस्टा में हरे और खुले स्थान से वंचित करेगी.
याचिकाकर्ता द्वारा आगे कहा गया कि परिवर्तन के बाद बच्चों को मनोरंजक खेल क्षेत्र और बड़े पैमाने पर परिवहन प्रणालियों के अधिकार से वंचित किया जाएगा.
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अधिकारियों को वैकल्पिक स्थलों का पता लगाना चाहिए और हरित क्षेत्रों की रक्षा की जानी चाहिए. केंद्र सरकार ने सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में भारत के लोगों से संबंधित मुक्त खुली जगहों को हड़पने के इरादे से अधिसूचना जारी करके जनता के विश्वास को धोखा दिया है.
जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि उस जमीन का उपयोग हमेशा से सरकारी कामों के लिए होता रहा है, आप यह कैसे कह सकते हैं कि एक बार मनोरंजन क्षेत्र के लिए सूचीबद्ध होने के बाद इस क्षेत्र को किसी और काम के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है? क्या अधिकारी क्षेत्र के विकास के लिए इसे संशोधित नहीं कर सकते हैं?
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से भूमि उपयोग में बदलाव के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का आग्रह किया.
केन्द्र द्वारा कहा गया कि क्षेत्र का उपयोग सरकारी कार्यालयों के लिए 90 वर्षों से किया जा रहा है और हरित नुकसान की भरपाई की जाएगी.
बता दें कि राजीव सूरी ने इससे पहले भूमि उपयोग में बदलाव के संबंध में 4 मार्च, 2020 के सार्वजनिक नोटिस को चुनौती दी थी.
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