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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बुलंदशहर में 19 साल पहले प्रदीप नाम के छात्र को फर्जी एनकाउंटर में मार गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) पर सात लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस आरोपी अधिकारियों को बचा रही है. इस मामले में ढिलाई बरती गई.
वर्ष 2002 में बुलंदशहर के सिकंदराबाद पुलिस ने बीटेक के छात्र प्रदीप को लुटेरा बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था. मामले में 3 पुलिसकर्मी जेल जा चुके है. मामले की अग्रिम सुनवाई के लिये 20 अक्टूबर की तारीख तय की गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये बहुत गंभीर विषय है कि पीड़ित को 19 साले से इंसाफ के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. कोर्ट ने कहा कि मामले में 2002 में जो क्लोजर रिपोर्ट लगाई गयी वह सिर्फ दोषी पुलिसवालों के पक्ष में है.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मामले में ट्रायल कोर्ट के आदेशों का भी लगातार उल्लंघन किया गया और आरोपी पुलिसवालों की लंबे समय तक न तो गिरफ्तारी की गयी और ना ही उनकी तनख्वाह को रोका गया, जो की ट्रायल कोर्ट के आदेश में साफ था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा जिस प्रकार से सरकार आरोपी पुलिसवालों को बचाने का प्रयास कर रही है वह समझ से परे है.
अंत में कोर्ट ने कहा कि जैसा भी हो मामले के तथ्यों को देखते हुए और परस्तिथियों को ध्यान में रखते हुए जो तकलीफें याचिकाकर्ता ने झेली हैं उसके मद्देनजर हम निर्देश देते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार आज से एक सप्ताह के भीतर इस न्यायलय की रजिस्ट्री के साथ सात लाख रूपये की अंतरिम राशि जमा करे.
ये कोई पहला मामला नहीं है जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाये गए हों इससे पहले भी हाथरस कांड से लेकर हाल ही में गोरखपुर में घटित हुई घटना पर भी उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार पर सवाल उठे हैं.
हाल ही में गोरखपुर में हुए मनीष गुप्ता हत्याकांड में लिप्त पुलिसवालों की अब तक गिरफ्तारी न होने के कारण पीड़ित परिजन लगातार यह सवाल कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस क्या खुद अपने साथियों को नहीं ढूंढ पा रही और उत्तर प्रदेश सरकार का इस ओर रुख इतना नरम क्यों है.
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