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SC जस्टिस चंद्रचूड़ के वो फैसले जो उन्हें बनाते हैं ‘लिबरल लॉयन’ 

आइए जानते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ के कुछ बड़े फैसलों के बारे में जिसे देश का इतिहास याद रखेगा

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SC जस्टिस चंद्रचूड़ के ये वो फैसले हैं जिन्हें इतिहास याद रखेगा
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SC जस्टिस चंद्रचूड़ के ये वो फैसले हैं जिन्हें इतिहास याद रखेगा
(फोटो: The Quint)

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सुप्रीम कोर्ट के पिछले कई फैसलों में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की आवाज दूसरे जजों से जुदा रही. सुप्रीम कोर्ट जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने अपनी असहमति से साफ कर दिया है कि वो न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने का मजबूत इरादा रखते हैं. उनके पुराने से लेकर नए मामलों में दिखता है कि सरकार, परंपरा और धर्म के मामले में वो दूसरे से अलग हटकर सोचते हैं और फैसले भी लेते हैं. ऐसे में उन्हें सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक लोगों की तारीफेें भी मिल रही हैं. ‘लिबरल लॉयन’ जैसे नामों से उन्हें बुलाया जा रहा है.

आइए जानते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ के कुछ बड़े फैसले जिन्हें इतिहास याद रखेगा.

हदिया केस

इस केस में ये तय किया जाना था कि क्या अदालतें महज 'मजबूरन सहमति' के शक को आधार बनाकर दो वयस्कों की शादी रद्द कर सकती हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा:

जब दो वयस्कों ने आपसी सहमति से शादी का फैसला कर लिया है तो क्या अदालत उन दोनों में से किसी भी साथी या उनकी शादी के बारे में सही-गलत की बात कर सकती है?
जस्टिस चंद्रचूड़
हदिया ने कहा था कि वो अपने पति के साथ रहना चाहती है. (फोटो: न्यूज मिनट)

फैसला क्या आया?

इसी साल 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हदिया और उसके पति शाफीन जहां की शादी को सही करार दिया है. और उनकी शादी दोबारा बहाल कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हदिया और शफीन जहां पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं. इस शादी पर लव जिहाद के आरोप लगे थे.

भीमा-कोरेगांव एक्टिविस्ट गिरफ्तारी केस

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. जस्टिस चंद्रचूड़ की राय बाकी दो जजों से अलग थी.

उन्होंने कहा कि अगर बिना छानबीन के ही इन पांच एक्टिविस्टों को गिरफ्तार कर लिया जाए तो आजादी का मतलब ही क्या रह जाएगा. उन्होंने इस केस के लिए सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में SIT जांच की वकालत की.
5 सामाजिक कार्यकर्ताओं को नजरंबद किया गया है(फोटोः Altered By Quint Hindi)

फैसला क्या आया?

28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने सभी एक्टिविस्टों वरवर राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की नजरबंदी अगले चार हफ्ते के लिए बढ़ा दी है. ये सभी पिछले 29 अगस्त से अपने घरों में नजरबंद हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसआईटी जांच का आदेश देने से भी इनकार कर दिया है.

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इच्छामृत्यु (लिविंग विल) केस

इच्छामृत्यु यानी लिविंग बिल केस में 5 जजों की पीठ का हिस्सा थे जस्टिस चंद्रचूड़. उन्होंने अपने फैसले में कहा,

एक सम्मानित जिंदगी, फैसले लेने की आजादी और किसी शख्स की आजादी, सार्थक जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है.

फैसला क्या आया?

लाइलाज बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद किसी भी इंसान को अपनी मौत मांगने का अधिकार होगा. इस साल 9 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने ‘लिविंग विल’ को मंजूरी देकर ये फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि इंसान को इज्जत के साथ जीने और इज्जत के साथ मरने का पूरा हक है. ऐसे में ठीक न हो सकने वाली बीमारी की चपेट में आने के बाद पीड़ित अपनी वसीयत खुद लिख सकता है, जो डाक्टरों को लाइफ सपोर्ट हटाने की मंजूरी यानी इच्छा मृत्यु (यूथनेशिया) की इजाजत देता है.

आधार एक्ट केस

आधार पर फैसला देने वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ ने बहुमत से अलग अपना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि पूरा आधार प्रोजेक्ट गैर-संवैधानिक है. उनका कहना है कि आधार को मनी बिल के तौर पर पारित कराना संविधान के साथ धोखाधड़ी है.

मोबाइल फोन के जिंदगी का हिस्सा बन जाने से उसे आधार से जोड़ना निजता, स्वतंत्रता, स्वायत्तता के लिए गंभीर खतरा है. मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स को कस्टमर्स का आधार डेटा खत्म कर देना चाहिए. UIDAI ने ये माना है कि वो अहम जानकारियों को इकट्ठा और जमा करता है. ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है. इन आंकड़ों का किसी की सहमति के बगैर कोई तीसरा पक्ष या निजी कंपनियां गलत इस्तेमाल कर सकती हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़

फैसला क्या आया?

6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आधार की संवैधानिकता को बरकरार रखा है. लेकिन कोर्ट ने ये भी कहा कि बैंकिग और मोबाइल सर्विस में, प्राइवेट कंपनियों के लिए, बोर्ड एग्जाम में बैठने जैसी चीजों के लिए आधार बिलकुल जरूरी नहीं है.

सबरीमाला केस

5 जजों की संविधान पीठ में सिर्फ जस्टिस इंदु मल्होत्रा की ही राय दूसरे जजों से अलग थी. इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा-

किसी भी महिला को पूजा से मना कर देना महिला गरिमा से इनकार करना है. क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक चीजों को मंजूर करता है. महिलाओं से भेदभाव संविधान के सख्त खिलाफ है.
सबरीमाला मंदिर परिसर (फाइल फोटो: पंकज कश्यप के ब्लॉग से साभार)

फैसला क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अब मंदिर में हर उम्र वर्ग की महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं. इससे पहले सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को एंट्री नहीं थी.

बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ का बतौर चीफ जस्टिस कार्यकाल नवंबर 2022 से लेकर नवंबर 2024 तक होगा.

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