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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों से पहले, 1 अप्रैल से नए इलेक्टोरल बॉन्ड की सेल पर रोक लगाने से इनकार किया है. इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने याचिका दायर की थी.
इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक के खिलाफ है. हालांकि, चुनाव आयोग का कहना है कि वे इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसमें अधिक पारदर्शिता चाहते हैं.
वहीं, याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का स्त्रोत पता नहीं चलता है. कॉर्पोरेट कंपनियों से मिलने वाला यह गुप्त दान लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है.
क्विंट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के बारे में सवालों से भरी रिपोर्ट की पूरी सीरीज प्रकाशित की है, जो लोकतंत्र पर खतरे के बारे में लगातार आगाह करती रही हैं. केंद्र सरकार, RBI और चुनाव आयोग से साझा किए गए इन लेखों में इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी चिंताओं को रेखांकित किया गया है, जिनमें बेनामी लेन-देन, मनी लॉन्ड्रिंग और बॉन्ड सर्टिफिकेट में मौजूद गोपनीय नंबर के तौर पर सूचनाएं, जो सत्ताधारी दल की मदद कर सकती हैं, से जुड़ी आशंकाएं शामिल हैं.
2018 में स्वयंसेवी संगठनों और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें योजना की अपारदर्शिता के बारे में क्विंट के लेख का जिक्र था.
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