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'नेताओं के लिए अलग नियम नहीं', ED-CBI पर 14 विपक्षी दलों की अर्जी SC से खारिज

Supreme Court ने कहा,"याचिका के साथ समस्या यह है कि आप आंकड़ों को दिशानिर्देशों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं."

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'नेताओं के लिए अलग नियम नहीं', ED-CBI पर 14 विपक्षी दलों की अर्जी SC से खारिज

(फोटो- आईएएनएस)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार (5 अप्रैल) को 14 राजनीतिक दलों द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार विपक्षी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों (ED और CBI) का उपयोग हथियार के तहत कर रही है. इसके बाद याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका को वापस ले लिया.

कोर्ट ने सुनवाई से क्यों किया इंकार?

CJI डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने यह कहते हुए याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया कि वह तथ्यात्मक संदर्भ के बिना सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकती है. अदालत ने कहा कि वह केवल एक व्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप कर सकती है. कोर्ट ने दो टूक कहा है कि देश में नेताओं के लिए अलग नियम नहीं हो सकते हैं, इसी वजह से इस याचिका पर सुनवाई संभव नहीं है.

राजनीतिक नेता सामान्य नागरिकों की तुलना में अधिक बचाव का दावा नहीं कर सकते हैं और इसलिए उनके लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी नहीं किए जा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान क्या तर्क दिया गया?

सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क देते हुए कहा, "आंकड़ों के मुताबिक, 2005-2014 के बीच छापे के बाद कार्रवाई की दर 93 प्रतिशत से घटकर घटकर 2014-2022 में 29 प्रतिशत हो गई हैं.

इसके अलावा, यह दावा किया गया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत अब तक केवल 23 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया है, यहां तक कि PMLA के तहत ED द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है (वित्त वर्ष 2013-14 में 209, 2020-21 में 981 और 2021-22 में 1,180 दर्ज हुए).

याचिका में कहा गया है कि 2004-14 के बीच, CBI द्वारा जांच किए गए 72 राजनीतिक नेताओं में से 43 (60 प्रतिशत से कम) उस समय के विपक्ष से थे, अब यह आंकड़ा बढ़कर 95 प्रतिशत से अधिक हो गया है.

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उन्होंने कहा कि ईडी द्वारा जांच किए गए नेताओं की कुल संख्या में विपक्षी नेताओं का अनुपात 54 प्रतिशत (2014 से पहले) से बढ़कर 95 प्रतिशत (2014 के बाद) हो गया है.

इस पर सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि यह एक या दो पीड़ित व्यक्तियों की दलील नहीं है. यह 14 राजनीतिक दलों की दलील है. क्या हम कुछ आंकड़ों के आधार पर कह सकते हैं कि जांच से छूट होनी चाहिए?

मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा, "इस याचिका के साथ समस्या यह है कि आप आंकड़ों को दिशा-निर्देशों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां आंकड़े केवल राजनेताओं पर लागू होते हैं. लेकिन, हमारे पास विशेष रूप से राजनेताओं के लिए दिशा-निर्देश नहीं हो सकते."

नेता देश के नागरिकों के समान स्थिति पर बिल्कुल खड़े होते हैं. वे उच्च पहचान का दावा नहीं करते हैं. उनके लिए प्रक्रिया का एक अलग सेट कैसे हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट

सिंघवी ने कहा, "सामूहिक गिरफ्तारी लोकतंत्र के लिए खतरा है. यह तानाशाही का संकेत है." इस पर CJI ने जवाब दिया और कहा, " जब आप कहते हैं कि विपक्ष के लिए जगह कम हो गई है, तो इलाज उस राजनीतिक जगह में है कोर्ट में नहीं."

हालांकि, कोर्ट का ये फैसला विपक्ष के लिए किसी झटके से कम नहीं है.

विपक्षी पार्टी भ्रष्टाचार करने से बाज नहीं आती और जब जांच होती है तो वे सड़क पर उतर आते हैं. कांग्रेस भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का नेतृत्व कर रही हैं. जांच में सहयोग करने के बजाय बहाने बनाकर कोर्ट में मामले को लटकाने की कोशिश की जाती है.
अनुराग ठाकुर, केंद्रीय मंत्री

किन दलों ने दायर की थी याचिका?

दरअसल, 24 मार्च को 14 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में CBI, ED और IT के गलत उपयोग को लेकर याचिका दायर की थी. इसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), जनता दल यूनाइटेड (JDU), भारत राष्ट्र समिति (BRS), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी (SP), शिवसेना (उद्धव), नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP), सीपीआई (CPI), सीपीएम (CPM) और डीएमके (DMK) शामिल थी.

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