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देश की सर्वोच्च अदालत में इतिहास दोहराया जाएगा, जब 5 सितंबर को जस्टिस आर. भानुमति और इंदिरा बनर्जी की पूर्ण महिला खंडपीठ मामले की सुनवाई करेगी.
पहली बार ऐसा साल 2013 में हुआ था, जब जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और रंजना प्रकाश देसाई की पूर्ण महिला खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई की थी.
जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने बीते अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार सिटिंग महिला जजों की संख्या तीन हो गई है. आजादी के बाद से अब तक वह सुप्रीम कोर्ट की आठवीं महिला जज हैं.
सर्वोच्च अदालत की इन तीनों महिला जजों में जस्टिस भानुमति सबसे सीनियर हैं. उन्हें प्रमोशन देकर 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट लाया गया था.
इस साल 27 अप्रैल को जस्टिस इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति होने तक जस्टिस भानुमति सुप्रीम कोर्ट में अकेली महिला जज थीं. जस्टिस भानुमति 19 जुलाई, 2020 को रिटायर होने वाली हैं.
जस्टिस फातिमा बीवी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज थीं. उनके बाद जस्टिस सुजाता मनोहर, रूमा पाल, ज्ञान सुधा मिश्रा, रंजना प्रकाश देसाई, आर. भानुमति, इंदु मल्होत्रा और इसमें सबसे नई कड़ी इंदिरा बनर्जी हैं.
इनमें भी जस्टिस फातिमा बीवी, सुजाता मनोहर और रूमा पाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पूरा कार्यकाल अकेले ही निकाला. ऐसा पहली बार 2011 में हुआ जब जस्टिस देसाई को प्रमोशन देकर सुप्रीम कोर्ट लाया गया और तब सुप्रीम कोर्ट में पहली बार एक साथ दो महिला जजों ने काम किया.
सुप्रीम कोर्ट के गठन के 39 साल बाद साल 1989 में जस्टिस फातिमा बीवी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में हुई थी. सुप्रीम कोर्ट का गठन साल 1950 में हुआ था. जस्टिस बीवी के केरल हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट लाया गया था.
(इनपुट भाषा से)
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