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अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो राम मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाए. विवादित जमीन का फैसला हिंदुओं के पक्ष में सुना दिया गया है. अब ये जानते हैं आखिर, हिंदुओं के पक्ष में इस फैसले का आधार क्या है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिंदुओं की आस्था पर आस्था अविवादित है
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे मिली संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ये साबित नहीं किया कि क्या मस्जिद निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था. कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा. कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं.
कोर्ट ने कहा कि हिंदू ये साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अध्योध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में नाकाम रहा है. संविधान पीठ ने यह माना कि विवादित स्थल के बाहरी बरामदे में हिंदुओं की तरफ से पूजा अर्चना की जाती रही है और साक्ष्यों से पता चलता है कि मस्जिद में शुक्रवार को मुस्लिम नमाज पढ़ते थे जो इस बात का सूचक है कि उन्होंने इस स्थान पर कब्जा छोड़ा नहीं था.
बता दें कि संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी. पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता अपना कर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया. कोर्ट ने इस केस के एक और पक्षकार निर्मोही अखड़ा के दावे को खारिज कर दिया.
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