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पूरे देश की निगाहें बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर टिकी रहेंगी, क्योंकि अदालत इस दिन कई अहम मामलों पर फैसला सुना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट आधार की संवैधानिक वैधता को लेकर बुधवार को अपना फैसला सुना सकता है. इस मामले को लेकर संवैधानिक बेंच ने अपना फैसला 10 मई को सुरक्षित रख लिया था. आधार और इससे संबंधित 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब चार महीने के दौरान 38 दिन तक इन याचिकाओं पर सुनवाई की थी.
सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संवैधानिक बेंच ने इस मामले की सुनवाई की.
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग से जुड़ी याचिका पर अपना फैसला सुनाएगी. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि कोर्ट कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और लाइव स्ट्रीमिंग होनी चाहिए या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने बीती 24 अगस्त को राष्ट्रीय महत्व के मामलों में अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग से पारदर्शिता बढ़ेगी और ये ओपन कोर्ट का सही सिद्धांत होगा.
बीती 9 जुलाई को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के साथ साथ इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया था. कोर्ट ने कहा था कि बलात्कार संबंधी मामलों और वैवाहिक मामलों के अलावा अन्य मामलों की सुनवाई की रिकॉर्डिंग या लाइव स्ट्रीमिंग की जा सकती है.
18 सितंबर को, सीजेआई के अगुवाई वाली तीन जजों की खंडपीठ ने कांग्रेस नेता अहमद पटेल द्वारा गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. बीजेपी नेता बलवंत सिंह राजपूत ने अगस्त 2017 में राज्यसभा में अहमद पटेल के निर्वाचन में चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर याचिका दायर की थी.
बीजेपी नेता बलवंत राजपूत ने अहमद पटेल पर 44 कांग्रेस विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में रखने और उन पर बेतहाशा पैसा खर्च करने का भी आरोप लगाया था. चुनाव आयोग ने तत्कालीन कांग्रेस विधायक राघवजी पटेल और भोलाभाई गोहिल पर पार्टी के निर्णय के खिलाफ जाकर चुनावी नियमों का उल्लंघन करने के लिए दोनों के वोट को अयोग्य करार दिया था, जिसके बाद राजपूत को हार का सामना करना पड़ा था.
संवैधानिक बेंच इस बात का फैसला कर सकती है कि साल 2006 एम नागराज बनाम भारत सरकार मामले में संविधान पीठ के दिए हुए फैसले पर पुनर्विचार की दरकार है या नहीं.
नागराज मामले में पांच जजों की ही एक संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया था कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC-ST) वर्गों को संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16 (4ख) के अंतर्गत रिजर्वेशन दिया जा सकता है. लेकिन इसके लिए किसी भी सरकार को कुछ मानदंडों को पूरा करना होगा.
केंद्र सरकार ने इस फैसले की एक बड़ी खंडपीठ से समीक्षा की मांग की है. संवैधानिक बेंच ने इस मामले पर बीती 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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