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जिसकी एक आवाज पर कभी कश्मीर की दुकानों पर ताला लग जाता था, सड़कें सुनसान हो जाती थीं. या कहें जिसने भारत में अलगावाद की नींव रखी. घाटी में अलगाववादी राजनीति के जनक और हुर्रियत के कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी (Syed Ali Shah Gilani) का बुधवार देर रात श्रीनगर में निधन हो गया. तीन बार विधायक रहे गिलानी करीब एक दशक से अधिक समय से घर में नजरबंद थे.
गिलानी की विरासत उन कट्टरपंथियों की है जो संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर विवाद के समाधान की मांग करते हुए नई दिल्ली के सामने खड़े हुए थे.
29 सितंबर, 1929 को बांदीपुर में वूलर झील के किनारे बसे एक गांव में जन्मे गिलानी अलगाववादी राजनीति का चेहरा थे.
स्कूल में पढ़ाने वाले गिलानी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी, एक वरिष्ठ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता के संरक्षण में की थी, लेकिन बाद में जमात-ए-इस्लामी में चले गए.
इसके बाद कश्मीर में अलगाववाद की हवा तेज हुई. साल 1993 में 26 अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नाम से एक संगठन बनाया. सैयद अली शाह गिलानी इसके अध्यक्ष भी रहे हैं.
कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए सशस्त्र संघर्ष के प्रबल समर्थक, गिलानी 1993 में गठित हुर्रियत कांफ्रेंस के सात कार्यकारी सदस्यों में शामिल थे. लेकिन कश्मीर पर उग्रवाद और कट्टर विचारधारा के लिए उनके समर्थन ने उनके और उनके साथियों के बीच कलह के बीज बो दिए.
गिलानी का कहना था कि वह लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार कश्मीर मुद्दे का समाधान चाहते हैं, वे खुद पाकिस्तान के साथ कश्मीर के विलय के प्रबल समर्थक थे. पिछले साल पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था.
बता दें कि गिलानी पर पाकिस्तान की फंडिंग के सहारे कश्मीर में अलगाववाद भड़काने के आरोप थे. उन पर इससे जुड़े कई केस भी दर्ज हुए थे. जिसके बाद उनका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया गया था.
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Published: 02 Sep 2021,09:43 AM IST