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तमिलनाडु (Tamil Nadu) सरकार ने हाल ही में पारित कारखाना (तमिलनाडु संशोधन) विधेयक, 2023 - Factories (Tamil Nadu Amendment) Bill, 2023 को स्थगित कर दिया है. राज्य सरकार इस पर चर्चा के बाद फैसला लेगी. इस बिल का ट्रेड यूनियनों और विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया, जिसके बाद सरकार ने इसे फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया है.
इस बिल में क्या संशोधन हुआ है? संशोधन से किसे फायदा है? ट्रेड यूनियन और विपक्ष बिल के खिलाफ क्यों है? आइए सब कुछ जानते हैं.
कारखाना (फैक्ट्रीज) एक्ट, 1948 में तमिलनाडु सरकार ने नया सेक्शन 65ए जोड़ दिया है, जो काम करने के समय को फ्लैक्जिबल बनाता है. कानून के अनुसार अगर फैक्ट्री कर्मचारियों की सहमति से एक दिन में काम करने के समय को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करना चाहे तो यह मुमकिन होगा. इसके साथ ही हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी होगी. यानी चार दिन 12 घंटे काम और तीन दिन आराम. लेकिन, हफ्ते में कुल 48 घंटे ही काम होता था वही जारी रहेगा. इसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है.
बता दें, श्रम कानूनों में यह बदलाव केंद्र पहले ही कर चुका है. इसके बाद केंद्र ने यह राज्य पर छोड़ दिया है. राज्य चाहे तो 12 घंटे काम वाले नियम को बनाए या न बनाए.
तमिलनाडु सरकार का मानना है कि इससे राज्य में उत्पादन में विस्तार होगा यानी मैन्युफैक्चर ज्यादा होगा. बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक तमिलनाडु खुद को इलेक्ट्रिक वाहन और सोलर एनर्जी के निवेश के लिए भी तैयार कर रहा है और जाहिर है ये कानून बाहर की कंपनियों को लुभाने के लिए है.
राज्य सरकार अपने राज्य में ऐसा माहौल इसलिए बनाना चाहती है, क्योंकि ये 12 घंटे काम करवाने की मांग बहुराष्ट्रीय (मल्टीनेशनल) कंपनियों की है. उनका मानना है कि 12 घंटे काम करवाने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, यानी कम समय में प्रोडक्ट्ज ज्यादा से ज्यादा बनेंगे, इससे लागत में भी कमी आएगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बिक्री बढ़ेगी.
लेकिन, इस बिल का कई ट्रेड यूनियन और विपक्षी दलों द्वारा विरोध हो रहा है. सीपीआई (एम) के विधायक वीपी नगईमाली ने कहा कि अधिनियम कॉरपोरेट्स का पक्ष लेगा, जबकि सीपीआई विधायक टी रामचंद्रन ने दावा किया कि यदि इस एक्ट को वर्तमान रूप में लागू किया जाता है, तो यह कर्मचारियों के अधिकारों पर हमला करने जैसा होगा.
बीजेपी और AIADMK ने भी इसका विरोध किया है. जबकि, केंद्र में बैठी बीजेपी ने ही ये कानून बनाया है और कर्नाटक की बीजेपी सरकार भी यह कानून पास करवा चुकी है.
क्विंट हिंदी से बातचीत में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) के जनरल सेक्रेटरी प्रेमनाथ राय ने कहा कि...
प्रेमनाथ राय ने कहा कि, "अभी भी मजदूर दस्तावेजों में 8 घंटे काम करता है. लेकिन, असल में उससे 12 घंटे ही काम लिया जा रहा है. फैक्ट्री को ओवर टाइम का खर्च भी देना होता है. कोई मजदूर विरोध भी करे तो उसे नौकरी से निकाल देते हैं. अब काम ही 12 घंटे के लिए कर दिया है तो ओवरटाइम का इन्हें कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा."
आगे उन्होंने कहा कि, "12 घंटे तक अगर कोई काम करता रहेगा तो उत्पादकता पर असर पड़ेगा. काम पर भी असर होगा. मजदूर क्वालिटी का काम नहीं कर पाएगा. ये कानून मजदूरों के पक्ष में नहीं है, अभी कई मजदूरों को न्यूनतम दिहाड़ी तक नहीं मिलती."
क्विंट हिंदी से बातचीत में अर्थशास्त्री शरद कोहली ने कहा कि, इससे उत्पादन में तेजी आएगी, मजदूरों को ज्यादा (तीन दिन की) छुट्टी मिलेगी, लेकिन उन्होंने इसके उलटे असर पर भी बात की.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तमिलनाडु राज्य का अहम योगदान है. देश में जितना कपड़ा निर्यात होता है उसमें तमिलनाडु का 30 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है. जितना गाड़ियों का निर्यात होता है उसमें 37 फीसदी से ज्यादा है और जितना जुतों का निर्यात होता है उसमें 46 फीसदी से ज्यादा का योगदान है.
बता दें कि तमिलनाडु ने अभी केवल बिल पारित ही किया है, इसने कानून की शक्ल नहीं ली है. सरकार अभी और हितधारकों से बात करने के बाद इस पर फैसला लेगी.
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