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मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने अपने एक एतिहासिक फैसले में शुक्रवार, 29 सितंबर को 215 लोगों को जेल भेज दिया. 1992 में तस्करी के लिए छापेमारी के दौरान यौन उत्पीड़न और अत्याचार से जुड़े एक मामले में हाई कोर्ट ने सारी याचिकाएं खारिज कर दीं और सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. सेशन कोर्ट ने सभी ओरोपियों को जेल भेजने का फैसला सुनाया था.
हम आपको बताते हैं कि ये मामला क्या है और कोर्ट ने क्या कहा?
ये मामला 1992 का है. तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचाथी गांव में 20 जून 1992 को, अधिकारियों ने तस्करी की गई चंदन की लकड़ी की तलाश में छापेमारी की थी. ये एक आदिवासी गांव हैं. छापे के दौरान, संपत्ति और पशुधन का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था.
इसी फैसले को बाद में मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. शुक्रवार, 29 सितंबर को हाई कोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं और सभी आरोपियों को सजा पूरी करने का निर्देश दिया.
जस्टिस ने वेलमुरुगन ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि 2016 में एक डिविजन बेंच के आदेश के अनुसार हर रेप सर्वाइवर को तुरंत 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए. इसके लिए अपराधियों से 50% राशि वसूल करने के निर्देश दिए गए हैं.
जस्टिस पी वेलमुरुगन ने अपने आदेश में कहा, "इस कोर्ट ने पाया है कि सभी पीड़ितों और अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य ठोस और सुसंगत और विश्वसनीय हैं." उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने सबूतों के माध्यम से मामला साबित कर दिया है.
इसके अलावा जज ने राज्य सरकार को 18 रेप सर्वाइवर या उनके परिवार के सदस्यों को उपयुक्त नौकरी या स्थायी स्व-रोजगार देने का भी निर्देश दिया है. उन्होंने सरकार को इस घटना के बाद वाचथी गांव में आजीविका और जीवन स्तर में सुधार के लिए उठाए गए कल्याणकारी उपायों पर अदालत को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया.
वाचथी में इस मामले पर आक्रोश के कारण 1995 में इसकी CBI जांच हुई थी. इसमें तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक एम हरिकृष्णन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों सहित 269 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था.
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