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तमिलनाडु रेप केस में 215 अधिकारियों को जेल, कोर्ट के फैसले पर सर्वाइवर्स ने क्या कहा?

तमिलनाडु रेपकांड: 18 महिलाओं से दुष्कर्म, 215 अधिकारियों को जेल, 31 साल पहले क्या हुआ था?

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>तमिलनाडु रेपकांड: कोर्ट के द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद पीड़ितों ने क्या कहा?</p></div>
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तमिलनाडु रेपकांड: कोर्ट के द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद पीड़ितों ने क्या कहा?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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“20 जून 1992 को सुबह 11 बजे के आसपास, वे हमारे गांव में घुस आए, घरों को नुकसान पहुंचाया और हमारे पानी को खराब कर दिया. शाम 5 बजे तक, उन्होंने लगभग 200 महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठा किया और हम में से 18 को चुना और चंदन की छिपी हुई लकड़ियां निकालने के बहाने हमें पास की झील में ले गए."

Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु रेप केस मामले में मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) का फैसला आने के बाद सर्वाइवर्स में से एक ने खुद पर हुए जुल्म को याद किया और वारदात की यह कहानी बताई.

इस घटना का जिक्र करते हुए सर्वाइवर की आवाज दर्द से कांप रही थी.

सर्वाइवर ने आगे बताया कि

उन लोगों ने महिला अधिकारियों को रोक दिया, जो खुद से हमारे साथ आने के लिए तैयार थीं. झील के पास रात करीब 9 बजे तक दुर्व्यवहार चलता रहा. इसके बाद, हमें सेलम सेंट्रल जेल ले जाया गया, जहां हमने तीन महीने बिताए.
इस घटना को हुए कई साल गुजर चुके हैं लेकिन अब जाकर मद्रास हाईकोर्ट का फैसला सर्वाइवर्स में से कुछ के लिए उम्मीद की रौशनी बनकर आया है.

रिपोर्ट के मुताबिक एक अन्य रेप सर्वाइवर ने कहा कि इस फैसले के साथ, हमारे जीवन में एक नया उद्देश्य मिला है. शायद, हमने अपनी भावी पीढ़ियों के लिए, उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए यह लड़ाई लड़ी.

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने अपने फैसले में तमिलनाडु सरकार को 2016 में एक बेंच के आदेश के मुताबिक हर रेप सर्वाइवर को तुरंत 10 लाख रुपये का मुआवजा जारी करने और दोषियों से 50% राशि वसूलने का भी निर्देश दिया.

क्या है पूरा मामला? 1992 में क्या हुआ था?

तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचाथी गांव में 20 जून 1992 को, अधिकारियों ने तस्करी की गई चंदन की लकड़ी की तलाश में छापेमारी की थी. वाचाथी एक आदिवासी गांव है. छापे के दौरान, संपत्ति और पशुधन का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था.

साल 2011 में धर्मपुरी की एक सत्र अदालत ने इस मामले में 126 वन कर्मियों को दोषी ठहराया, जिनमें चार भारतीय वन सेवा अधिकारी, 84 पुलिसकर्मी और पांच राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल थे. मामले में कुल 269 ​​आरोपियों में से 54 की मुकदमे के दौरान मौत हो गई, बाकी 215 को 1 से 10 साल तक जेल की सजा सुनाई गई.

इसी फैसले को बाद में मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और शुक्रवार, 29 सितंबर को हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं और सभी आरोपियों को सजा पूरी करने का निर्देश दिया.
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कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस वेलमुरुगन ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि 2016 में एक डिविजन बेंच के आदेश के अनुसार हर रेप सर्वाइवर को तुरंत 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए. इसके लिए अपराधियों से 50 फीसदी राशि वसूल करने के निर्देश दिए गए हैं.

आरोपियों को बचाने के लिए तत्कालीन जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और जिला वन अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
मद्रास हाईकोर्ट

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने अपने आदेश में कहा कि कोर्ट ने पाया है कि सभी सर्वाइवर्स और अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य ठोस और सुसंगत और विश्वसनीय हैं. अभियोजन पक्ष ने अपने सबूतों के माध्यम से मामला साबित कर दिया है.

इसके अलावा जज ने राज्य सरकार को 18 रेप सर्वाइवर या उनके परिवार के सदस्यों को उपयुक्त नौकरी या स्थायी स्व-रोजगार देने का भी निर्देश दिया है. उन्होंने सरकार को इस घटना के बाद वाचथी गांव में आजीविका और जीवन स्तर में सुधार के लिए उठाए गए कल्याणकारी उपायों पर अदालत को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया.

बता दें कि इस मामले पर आक्रोश के कारण 1995 में इसकी CBI जांच हुई थी. इसमें तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक एम हरिकृष्णन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों सहित 269 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था.

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