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तमिलनाडु में कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी ने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना शुरू कर दिया है. 21 नवंबर को गृह मंत्री अमित शाह राज्य का दौरा करेंगे. इसी के साथ DMK से अलग हो चुके करूणानिधि के बड़े बेटे अलागिरी के अपनी पार्टी बनाने या बीजेपी के साथ जाने की खबरें आ रही हैं. शशिकला के जल्दी जेल से बाहर आने की संभावना का भी चुनाव पर असर हो सकता है. ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिरकार तमिलनाडु की सियासत के मुख्य खिलाड़ी कौन हैं?
तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री के पलानीसामी को एक समय पर शशिकला नटराजन की कठपुतली समझा जाता था. हालांकि, 2017 में मुख्यमंत्री बनने और आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशिकला के जेल जाने के बाद पलानीसामी ने अपनी इस छवि को बदल दिया है. शशिकला के वफादार समझे जाने वाले पलानीस्वामी ने ही उन्हें AIADMK से बाहर किया था.
पलानीसामी राज्य में न बहुत लोकप्रिय हैं और न ही उन्हें नापसंद किया जाता यही. उन्होंने अपने से पहले के मुख्यमंत्रियों की सोशल वेलफेयर स्कीमों को जारी रखा है. हालांकि, AIADMK इस चुनाव में 10 साल की एंटी-इंकम्बेंसी का भी सामना करेगी और 2016 में जयललिता की मौत के बाद पार्टी के नियंत्रण के लिए हुई उठापटक से भी पार्टी पूरी तरह उबर नहीं पाई है.
पन्नीरसेल्वम इस समय तमिलनाडु के डिप्टी सीएम हैं, लेकिन 2016 में जयललिता की मौत के तुरंत बाद वो मुख्यमंत्री बने थे. वो पहले भी दो बार सीएम रह चुके हैं. लेकिन, शशिकला के AIADMK का नियंत्रण लेने के बाद कई घटनाओं का दौर चला और उन्हें सीएम पद से हटना पड़ा था. हालांकि, शशिकला के जेल जाने के बाद वो और पलानीसामी साथ आ गए थे.
एम करूणानिधि के छोटे बेटे एमके स्टालिन तमिलनाडु की विपक्षी पार्टी DMK के अध्यक्ष हैं. स्टालिन 2009 में राज्य के पहले डिप्टी सीएम बने थे, जब उनके पिता करूणानिधि की सरकार थी. DMK राज्य में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ेगी. मौजूदा समय में विपक्ष के पास विधानसभा की 234 में से 105 सीटें हैं.
इसके अलावा उनके बड़े भाई अलागिरी की राजनीति में संभावित दोबारा एंट्री से भी उन्हें नुकसान हो सकता है.
69 साल के अलागिरी को 2014 में DMK से निकाल दिया गया था. उस समय उनके पिता एम करूणानिधि पार्टी के अध्यक्ष थे. अलागिरी को हमेशा स्टालिन का प्रतिद्वंदी समझा जाता है और करूणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी चुना था. एक समय पर अलागिरी पार्टी के साउथ जोन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी थे और मदुरई में सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती भी. उनका संबंध जमीनी स्तर के काडर तक था.
सूत्रों का कहना है कि 23 नवंबर को DMK की उच्च-स्तरीय कमेटी बैठक है और इसमें फैसला होगा कि अलागिरी का पार्टी में कोई भविष्य है या नहीं. DMK के नजदीकी सूत्रों ने पुष्टि की है कि अलागिरी को बीजेपी से पार्टी या गठबंधन में शामिल होने का ऑफर आया है. ऐसी खबरें भी हैं कि वो अपनी पार्टी भी बना सकते हैं.
लंबे समय तक जयललिता की सहयोगी रहीं शशिकला जनवरी या फरवरी 2021 में जेल से बाहर आ सकती हैं. आय से अधिक संपत्ति मामले में उनकी सजा पूरी हो रही है. विधानसभा चुनाव से पहले उनका बाहर आना AIADMK के लिए परेशानी बन सकता है. जयललिता की मौत के बाद शशिकला ने पार्टी को अपने नियंत्रण में ले लिया था. हालांकि, कोर्ट से सजा होने के बाद उनके वफादार समझे जाने वाले पलानीसामी ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था.
वहीं, AIADMK ने शशिकला को पार्टी में दोबारा आने से रोकने के लिए अपने नियमों में बदलाव कर लिया है. अब संगठन में वही शख्स कोई पद ले सकता है, जो पांच सालों से पार्टी का सक्रिय सदस्य है.
दिसंबर 2017 में जयललिता की विधानसभा सीट आरके नगर को उपचुनाव में बड़े अंतर से जीतने वाले टीटीवी दिनाकरन के बारे में समझा गया था कि वो AIADMK के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर देंगे. लेकिन तीन साल बाद वो और उनकी पार्टी AMMK तमिलनाडु की राजनीति में अप्रभावी हो गई है. शशिकला के भतीजे दिनाकरन को पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी गुट के मिल जाने के बाद AIADMK से निकाल दिया गया था.
अब शशिकला के बाहर आने की संभावना में दिनाकरन को भी पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
तमिलनाडु में बीजेपी की कोई खास पकड़ नहीं है, लेकिन पार्टी को नकारा नहीं जा सकता है. तमिल मीडिया में बीजेपी की उपस्थिति बढ़ती जा रही है. पार्टी ने राज्य में भी सांप्रदायिक राजनीति को एक्सपेरिमेंट करना शुरू कर दिया है. वेत्री वेल यात्रा और मनुस्मृति पर प्रदर्शन पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा है.
इसके अलावा पार्टी के पास DMK और AIADMK पर एक बढ़त अपने मजबूत सोशल मीडिया तंत्र के जरिए है. बीजेपी इस तंत्र का इस्तेमाल करना बखूबी जानती है और वेत्री वेल यात्रा में इसकी झलक देखी गई थी. खुद अमित शाह राज्य में अपनी यात्रा के जरिए माहौल तैयार करने में जुटे हैं.
बीजेपी ने सीटी रवि को तमिलनाडु का इंचार्ज बनाया है. रवि ने कर्नाटक की राजनीति में अपना करियर सांप्रदायिक राजनीति के बलबूते बनाया है और पार्टी शायद इसी का फायदा तमिलनाडु में लेना चाहती है.
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