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5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने कश्मीर (Kashmir) को विशेष दर्जा देने वाली धारा-370 (Article 370) और 35-ए को निरस्त कर दिया था. इसके अलावा एक और फैसला भी सरकार ने लिया, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) को केंद्र शासित राज्य बना दिया. फिलहाल मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) वहां के उपराज्यपाल हैं. 6 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने लोक सभा (Lok Sabha) में कहा था कि, जैसे ही कश्मीर में स्थिति सामान्य होते ही पूर्ण राज्य का दर्जा देने में हमें कोई संकोच नहीं होगा.
लेकिन धारा 370 के खात्मे के 2 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी क्या कश्मीर की स्थिति सामान्य हुई? सामान्य छोड़िए, ये सवाल कीजिए कि जम्मू-कश्मीर के हालातों में क्या कोई सुधार आया है. क्योंकि धारा-370 के खात्मे को सरकार ने ऐसे पेश किया था जैसे सारी परेशानियों की जड़ यही थी. इन सब सवालों के जवाब ढूंढने के लिए उन वारदातों का अध्ययन कीजिए जो धारा-370 खत्म होने के बाद हुई हैं.
अभी अक्टूबर महीने की शुरूआत है और इसमें अब तक 7 आम नागरिकों की हत्या हो चुकी है. 2 अक्टूबर को श्रीनगर के चट्टाबल में रहने वाले माजिद अहमद गोदरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 2 अक्टूबर को ही श्रीनगर की एसडी कॉलोनी बटमालू में मोहम्मद शफी डार को गोलियों से भून दिया गया.
5 अक्टूबर को श्रीनगर के मशहूर दवा कारोबारी माखन लाल बिंदरू की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसी दिन बिहार के रहने वाले एक चाट विक्रेता वीरेंद्र पासवान की भी हत्या कर दी गई. 5 अक्टूबर को ही उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा इलाके में मोहम्मद शफी डार की भी हत्या की गई. और 7 अक्टूबर को एक महिला अध्यापिका समेत दो की हत्या भी हुई.
2021 में आतंकियों ने कई नेताओं और सुरक्षाबलों को भी अपना निशाना बनाया. 2 जून को त्राल में बीजेपी नेता राकेश पंडिता की हत्या कर दी. 8 जून को अनंतनाग में कांग्रेस नेता और सरपंच अजय पंडिता को मौत के घाट उतार दिया गया. 22 जून को इंस्पेक्टर परवेज अहमद पर आतंकियों ने हमला किया. 15 जुलाई को सोपोर में बीजेपी नेता मेहराजुद्दीन मल्ला को अगवा कर लिया गया, जिन्हें बाद में मुक्त करा लिया गया.
एनबीटी में छपी एक खबर के मुताबिक, अक्टूबर 2019 ने गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में बताया था कि 2018 में 39 आम लोगों की मौत हुई थी.
बीबीसी में छपी एक रिपोर्टके मुताबिक सिख नेता जगमोहन सिंह रैना ने सभी सिख कर्मचारियों से अपील की, कि जब तक सरकार जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित ना करे वो काम पर ना जायें. उन्होंने कहा कि कश्मीर में अमन एक भ्रम की तरह है.
2009 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कश्मीरी पंडितों से वापसी के लिए कहते हुए नौकरी देने की पेशकश की थी. साथ ही सुरक्षित रिहाइश का वादा भी उनसे किया गया था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद करीब 5000 कश्मीरी पंडित वापस लौटे. और ज्यादातर को शिक्षा विभाग में काम मिला, जिन्हें अब आतंकियों ने निशाना बनाया है.
तो धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के ऐसे हालात हैं, हालांकि अब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि आतंकियों को करारा जवाब दिया जाएगा. लेकिन सबके बीच सवाल अभी भी वही है और बड़ा है कि लोगों के दिल में बैठा डर कब और कैसे दूर होगा, और जिन रास्तों को अमन तक पहुंचने के लिए सरकार ने चुना है, क्या वो सही हैं?
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