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शौचालय तो बन गए लेकिन लोगों से उनका इस्तेमाल कराना बड़ी चुनौती

स्वच्छ भारत मिशन के पांच साल पूरे होने पर कितना कामयाब है ये कार्यक्रम

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स्वच्छ भारत मिशन के पांच साल पूरे होने पर कितना कामयाब है ये कार्यक्रम
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स्वच्छ भारत मिशन के पांच साल पूरे होने पर कितना कामयाब है ये कार्यक्रम
(फोटो: ट्विटर)

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2 अक्टूबर, 2019 को स्वच्छ भारत मिशन के पांच साल पूरे हो रहे हैं. ग्रामीण भारत में शौचालयों तक लोगों की पहुंच में काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन शौचालय के इस्तेमाल की आदत में तेजी नहीं आई है. आंकड़े बताते हैं, ग्रामीण बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जिन घरों में शौचालय बने हैं, वे अभी भी खुले में शौच करते हैं. ऐसे घरों का अनुपात 2014 के बाद से 23% पर स्थिर रहा हैं. कई स्टडी में सुझाव दिया गया है कि लाखों की तादाद में बने शौचालयों का इस्तेमाल करने को प्रेरित करने के लिए, लोगों को खुले में शौच के खतरों के बारे में बताए जाने से मदद मिलेगी.

स्वच्छ भारत मिशन लॉन्च होने के बाद से आधिकारिक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 10 करोड़ से ज्यादा घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है. इस आंकड़े को बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से तारीफ हासिल हुई है.  फाउंडेशन ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘ग्लोबल गोलकीपर’ का अवॉर्ड दिया है.  

स्वच्छ भारत मिशन कितना कामयाब

हालांकि खुले में शौच में कमी आई है, लेकिन ये कमी शौचालयों की तादाद में बढ़ोतरी की तुलना में उतनी नहीं है. कई उत्तरी राज्यों में, स्वच्छ भारत मिशन ने 2014 के बाद से खुले में शौच को 70% से घटाकर 44% कर दिया है. लेकिन जिन घरों में शौचालय बने हैं, उनमें रहने वाले चार में से करीब एक व्यक्ति (23%) खुले में शौच करना जारी रखे हैं. ये बात इस मिशन की प्रगति पर आधारित एक रिसर्च में सामने आई है.

यह कोई नयी समस्या नहीं है. मध्यप्रदेश में 2009 और 2011 के बीच आयोजित स्वच्छ भारत मिशन के पूर्ववर्ती कार्यक्रम 'पूर्ण स्वच्छता अभियान' के स्टडी से भी ऐसी ही बातें सामने आई हैं. गांवों के दो समूहों में स्टडी की गई, जिनमें घरों में बने शौचालयों का शुरुआती अनुपात एक सामान था. कार्यक्रम ने शौचालयों के इस्तेमाल में 26 फीसदी की बढ़ोतरी की, जबकि उस समूह में शौचालय के इस्तेमाल में 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जहां इस कार्यक्रम को लागू नहीं किया गया था.

फिर भी, खुले में शौच में कमी शौचालयों की तादाद में हुई बढ़ोतरी से मेल नहीं खाई. कार्यक्रम लागू हुए गांवों में 70% से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती रही. उन परिवारों में, जहां स्वच्छता सुविधाओं में सुधार किया गया था, 41% लोग अभी भी रोज खुले में शौच करते हैं.  
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CLTS से पार होगी चुनौती?

स्वच्छ भारत मिशन के लिए अब सबसे अहम सवाल है - आखिर कैसी नीति बनाई जाए कि लोगों को सरकार की ओर से निर्मित शौचालयों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाए? रिसर्च बताते हैं कि खुले में शौच से फैलने वाले संक्रमण के बारे में जागरूकता फैलाना लोगों को शौचालयों का ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर सकती है.

एक कार्यक्रम ऐसा है जो लोगों में इस समझ को बढ़ाने के लिए बनाया गया है. कम्युनिटी-लेड टोटल सैनिटेशन (सीएलटीएस). इसके तहत ग्रामीणों को खुले में शौच की अपनी जगहों पर जाने के लिए रास्तों को मैप करने और उस रास्ते पर कीटाणुओं के फैलाव पर चर्चा करने और उनका विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है. इससे यह पता चलता है कि उनका खाना और पानी कैसे दूषित हुआ है. एक रिसर्च बताता है कि इस नजरिए से शौचालय के इस्तेमाल की दर में सुधार हो सकता है.

तंजानिया, माली और इंडोनेशिया में अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए गए स्टडी में पाया गया कि सीएलटीएस ने गांवों में खुले में शौच को कम किया है. जिन घरों में पहले शौचालय नहीं थे, वहां शौचालय बनाए गए.

खुले में शौच कम करने के प्रोग्राम का प्रभाव माली में सबसे ज्यादा था, जहां इसने मौजूदा शौचालयों वाले घरों में भी खुले में शौच को कम कर दिया. यह प्रभाव इंडोनेशिया और तंजानिया में नहीं देखा गया था, जहां शौचालय वाले घरों में खुले में शौच की दर कम थी.

(इस आर्टिकल के अंश इंडिया स्पेंड में छपे नमिता सदानंद के लिखे आर्टिकल से लिए गए हैं)

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