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भारत-नेपाल सीमा पर स्थित टूरिस्ट टाउन, 40 लैंड रोवर्स का घर, तस्वीरें देखिए

गाड़ियों को विंडशील्ड के टाॅप पर देशभक्ति और धार्मिक सिम्बल से सजाया गया है.

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>भारत-नेपाल सीमा पर स्थित टूरिस्ट टाउन, 40 लैंड रोवर्स के घर के समान है.</p></div>
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भारत-नेपाल सीमा पर स्थित टूरिस्ट टाउन, 40 लैंड रोवर्स के घर के समान है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

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पश्चिम बंगाल (West Bengal) के दार्जिलिंग (Darjiling) जिले में भारत-नेपाल सीमा पर मनेभंजयांग (Maneybhanjyang) नामक एक छोटा सा शहर है. इस जगह का नाम 'भंजयांग', एक नेपाली शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक ऐसी जगह जहां सभी सड़कें मिलती हैं. लेकिन, 6,325 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर के बारे में अनोखी बात यह है कि यह दुनिया के कुछ सबसे पुराने कार्यशील लैंड रोवर्स का घर है.

इनमें से करीब 40 लैंड रोवर्स का संचालन सिंगलिला लैंड रोवर ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा किया जाता है. वे दक्षिण पूर्व एशिया में इस तरह के सबसे बड़े संघों में से एक होने का दावा करते हैं. ये लैंड रोवर्स 11,929 फीट पर पश्चिम बंगाल के उच्चतम बिंदु संदकफू की ओर जाने वाले ट्रेकर्स के बीच प्रसिद्ध हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

बेसन थामी 15 से अधिक वर्षों से इस लैंड रोवर को चला रहे हैं. थामी ने द क्विंट को बताया कि यह उनके परिवार में तीन पीढ़ियों से है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

बेसन थामी ने बताया कि उनके दादा इसे चलाते थे. दादा के बाद उनके पिता ने भी इसे चलाया. फिर यह उनके बड़े भाई ने भी चलाया. और अब वह इसे चलाते हैं और एक महीने में लगभग 25,000 रुपये कमा लेते हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

थामी ने बताया कि संदकफू जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कों को पूरी तरह से तारदार बनाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि ढलान से कार फिसलने की संभावना अधिक होगी. इससे अधिक दुर्घटनाएं भी होगीं. यही कारण है कि बजरी सड़के हैं. और ये लैंड रोवर्स ऐसी सड़कों को नेविगेट करने के लिए तैयार हैं. और 90 डिग्री जितनी खड़ी एक इनक्लाइन के माध्यम से सफलतापूर्वक चल सकते हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

इस तस्वीर में 1954 की सीरीज वन लैंड रोवर है, जो कि सीरीज वन फ्लीट में से सबसे पुरानी है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

इन गाड़ियों को विंडशील्ड के टाॅप पर देशभक्ति और धार्मिक सिम्बल सहित 'लैंड-रोवर' और 'इंग्लैंड रोवर' जैसे शीर्षकों से सजाया गया है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

यह माना जाता है कि इन लैंड रोवर्स को 40 के दशक के अंत और 50 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश टी प्लानटर्स द्वारा पश्चिम बंगाल में लाया गया था. ताकि उन्हें कठिन इलाकों में चाय पहुंचाने में मदद मिल सके. टी प्लानटर्स ने धीरे-धीरे इस क्षेत्र को छोड़ दिया और इन वाहनों को कुछ स्थानीय लोगों को सौंप दिया. इनमें से कुछ लैंड रोवर्स में अभी भी देश कोड के रूप में पुराना, मैटल जीबी (ग्रेट ब्रिटेन) है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

सिंगलिला लैंड रोवर ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव चंदन प्रधान ने द क्विंट को बताया कि स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध न होने की वजह से वह महिंद्रा के स्पेयर पार्ट्स का उपयोग करते हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

ज्यादातर गाड़ियों ने ऑरिजनल लुक बरकरार रखा है. प्रधान ने बताया कि 'हमने एल्यूमीनियम बॉडी के साथ इन गाड़ियों का ऑरीजिनल लुक रखा है. क्योंकि यह बर्फ, तेज हवाओं आदि जैसी चीजों से बचाकर रखती है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

थामी ने बताया कि केवल एक अनुभवी ड्राइवर ही इन इलाकों को नेविगेट कर सकता है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

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पीक टूरिस्ट सीजन के दौरान यह वाहन हैरीटेज राइड्स भी प्रदान करते हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

इससे पहले मनेभंजयांग बिलकुल खाली जगह हुआ करती थी. लेकिन जैसे-जैसे पर्यटकों के बीच इन वाहनों की लोकप्रियता बढ़ी, शहर होटल, रेस्टोरेंट और कैफे से भरा पर्यटक हॉटस्पॉट में बदल गया.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

मानेभंजयांग की रहने वाली सुषमा थामी ने द क्विंट को बताया कि 'हमें इस शहर से जुड़कर गर्व महसूस होता है, जिसे लैंड रोवर्स की भूमि के रूप में जाना जाता है.'

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

प्रधान ने कहा कि संदकफू के रास्तों  पर बोलेरो जैसी अन्य कारें भी हैं, लेकिन सीरीज 1 और 2 के सामने उनका कोई मुकाबला नहीं है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

थामी ने कहा कि नए और पॉशर मॉडल की शुरुआत के बावजूद भी उनकी विरासत बरकरार रही है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

यह गाड़ियां सामान, यात्रियों और पर्यटकों को भंजयांग और संदकफू की खड़ी ढलानों पर ले जाने में मदद करती हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

ड्राइवर पेम्बा शेरपा ने बताया कि 'हमारे लिए, हमारे वाहन आय का मुख्य स्रोत हैं, और इसलिए, हम इसे अपने भगवान की तरह मानते हैं'.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

प्रधान ने बताया कि कोविड आने की वजह से काफी परेशानी हुई. क्योंकि यह उनके कमाने का इकलौता जरिया था

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

प्रधान ने कहा कि हर परेशानी में हम एक-दूसरे की मदद करते हैं.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

यह तस्वीर 1954 की सीरीज वन, लैंड रोवर्स की है.

(फोटो - Madhusree Goswami/The Quint)

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