advertisement
15 जुलाई 2006 को जब भारत में ट्विटर लॉन्च हुआ था, तो वो दौर था जब सेंसेक्स मात्र 12000 अंकों पर था, कंगना रनौत ने दो महीने पहले ही फिल्मी दुनिया में कदम रखा था, विराट कोहली ने इंडिया के लिए खेलना शुरु भी नहीं किया था और मोबाइल में हैशटैग का इस्तेमाल सिर्फ बैलेंस जानने के लिए किया जाता था.
15 सालों के बाद, ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी (Jack Dorsey) भारत में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर पॉलिटिकल स्टैंड लेते दिख रहे हैं. साथ ही सिंगर रिहाना और पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग जैसे अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के इसके समर्थन में आवाज उठाने पर भारत सरकार की जवाबी कार्रवाईयों में भी पलीता लगा रहे हैं.
पिछले 15 सालों में जितनी तेजी से ट्विटर की लोकप्रियता बढ़ी है, उतनी ही तेजी से नेताओं, छात्रों, पत्रकारों, एक्टिविस्ट और सेलेब्रिटीज में इसकी उपयोगिता भी. बीते दशक में माइक्रो-ब्लॉगिंग के प्लेटफॉर्म के तौर पर इसका इस्तेमाल करनेवालों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि राजनीतिक प्रचार और किसी मुद्दे को हवा देने में इसका इस्तेमाल हथियार के रुप में होने लगा है.
एक कानूनी और तकनीकी इकाई के तौर पर ट्विटर का प्रशासन से साथ संबंध बेहतर नहीं रहा है और सरकार ने उसे कई बार याद दिलाया है कि वो भारतीय कानूनों के तहत एक मध्यस्थ है, लेकिन कई बार वो देश में फ्री स्पीच और सेंसरशिप को लेकर अंतिम निर्णायक की भूमिका अदा करने लगता है.
मौजूदा विवाद को बेहतर ढंग से समझने के लिए क्विंट ने ट्विटर-भारत सरकार संबंधों की पूरी पड़ताल की और इसके इतिहास, वर्तमान और भविष्य को समझने की कोशिश की है.
ट्विटर कभी भी विवादों से दूर नहीं रहा, चाहे वो सरकार की नई नीतियों से जुड़ा कंटेंट हो, कंट्रोल के स्वैच्छिक फैसले हों या खुद इसके सीईओ जैक डॉर्सी के अपने एक्शन हों.
जैक डॉर्सी ने भारतीय महिला पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स के साथ एक तस्वीर खिंचवाई, जिसमें वो एक पोस्टर के साथ नजर आए. इस पोस्टर में लिखा था ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था खत्म हो (Smash Brahminical Patriarchy)’.
2019 में कई दक्षिणपंथी ट्विटर यूजर्स ने नई दिल्ली में एक विरोध मार्च निकाला और ट्विटर पर उनकी खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया. फरवरी 2019 में आईटी पर बनी संसदीय समिति ने जैक डॉर्सी को समन भेजा. इस समिति की अध्यक्षता बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर कर रहे थे. इस बारे में शिकायत की थी यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी ने, जिसमें दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तेजिंदरपाल सिंह बग्गा भी शामिल थे. इनके आरोपों में गलत तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, नागरिकों की निजता और उनके डाटा का दुरुपयोग और वामपंथी विचारधारा के प्रति झुकाव आदि मुद्दे शामिल थे.
29 अक्टूब 2020 को ट्विटर ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सामने पेश होकर माफी मांगी. दरअसल एक लाइव ब्रॉडकास्ट में लेह को चीन का हिस्सा दिखाया गया था. जिसके बाद डाटा प्रोटेक्शन बिल पर पुनर्विचार के लिए जेपीसी का गठन किया गया था.
ट्विटर की स्थिति एक मध्यस्थ के तौर पर है, और सरकार ने उसे यही बात कई बार याद दिलाई है. आईटी कानून 2008 में मध्यस्थ (intermediaries) शब्द 27 बार आया है. तो इसका मतलब क्या है?
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 79 के तहत मध्यस्थ पर लेखों के प्रकाशन को लेकर कोई दायित्व नहीं है.
इसलिए ट्विटर कानूनन अपने प्लेटफॉर्म पर डाले गये किसी की नफरत भरी बातों के लिए जिम्मेदार नहीं है. लेकिन भारत में यह छूट सशर्त है, और सरकार चाहती है कि इस छूट का फायदा उठाने के लिए मध्यस्थ अपने कंटेंट को ज्यादा मॉनिटर करें.
1 फरवरी 2021 को बजट के बावजूद सबसे बड़ी खबर ये रही कि ट्विटर ने कारवां और किसान एकता मोर्चा समेत किसान आंदोलन से जुड़े 250 से ज्यादा ट्विटर अकाउंट ब्लॉक कर दिये. ये वो अकाउंट थे, जो किसान आंदोलन से जुड़ी खबरें डाल रहे थे और मोटे तौर पर सरकार के खिलाफ थे. ये फैसला इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेश पर लिया गया, लेकिन करीब एक दिन बंद रखने के बाद ट्विटर ने इन सभी अकाउंट्स को वापस बहाल कर दिया.
ट्विटर के फैसले से नाराज मंत्रालय ने दुबारा कड़े शब्दों में ट्विटर को एक पत्र भेजा जिसमें उसे मध्यस्थ रहने और नियमों का पालन करने की सलाह दी गई. साथ ही ये भी कहा गया कि वो कंटेंट के मामले में अपीलीय अदालत की तरह बर्ताव ना करे.
इसके बावजूद ट्विटर ने सरकार की बात नहीं मानी और अपने रुख पर कायम रहते हुए 4 फरवरी को कंगना रानौत के दो ट्वीट ब्लॉक कर दिये. दलील ये थी कि ये ट्वीट हिंसा को बढ़ावा देते हैं और उनके प्लेटफॉर्म की नीतियों के अनुकूल नहीं हैं. ये जगजाहिर है कि कंगना किसान आंदोलन में खुले तौर पर सत्ता पक्ष के साथ हैं.
अब बड़ा सवाल ये है कि ऐसी स्थिति में आगे क्या होगा और ट्विटर का भारत में भविष्य क्या होगा? क्या सरकार ट्विटर को बैन कर सकती है? विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह की संभावना बेहद कम है.
मीडियानामा के संस्थापक निखिल पाहवा ने क्विंट को बताया कि इस मामले में ज्यादा संभावना इस बात की है कि सरकार आईटी एक्ट में संशोधन लाए और मध्यस्थों को नियंत्रित करने के लिए और कड़े नियम बनाये. उन्होंने बताया कि सरकार नियमों को कड़ा करने और मध्यस्थों को काबू में करने के लिए दो सालों से प्रयास कर रही है.
वहीं दूसरी ओर इस मामले में दबाव बढ़ने पर ट्विटर अदालत का रुख कर सकता है और सरकार के अकाउंट ब्लॉक करने के आदेश को चुनौती दे सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)