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25 अगस्त, 2019 को 19 साल का एकाउंटेंट अमर अपने घर के पास चाय की दुकान के बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था. तभी दो आदमी उसके पास आए. वे सादे कपड़ों में थे. उनमें से एक ने पीछे से आकर उसके दाएं कंधे पर थपथपाया. जैसे ही वह पीछे मुड़ा, दूसरे आदमी ने उसका बायां हाथ पकड़ा और उसे घसीटकर सामने खड़ी महिंद्रा स्कॉर्पियो की तरफ ले जाने लगा. अमर को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है. ये लोग कौन हैं? उसे घसीट क्यों रहे हैं? उसने उन्हें कभी नहीं देखा था. जब उसने यह सब पूछने की कोशिश की तो उन्होंने उसे थप्पड़ रसीदा और कार के अंदर धक्का दे दिया. अमर सोच रहा था कि क्या उसे इलाके के गुंडे अगवा करके ले जा रहे हैं जिन्हें लोकल ड्रग पेडलर ने भेजा है.
अमर कार के अंदर डर से रोने लगा. जब कार चली तो उन दोनों आदमियों ने अपनी पहचान बताई.
तब अमर को अहसास हुआ कि उसे पुलिस वालों ने दबोचा है, वह भी दो हफ्ते पहले के एक वाकये की वजह से. दो कॉंन्स्टेबल्स ड्रग पेडलर्स और फुटपाथी दुकानदार से हफ्ता वसूल रहे थे और उसने उनका वीडियो बना लिया था.
अमर को दो पुलिसवालों ने दिन दहाड़े पकड़ा था, जोकि वर्दी में भी नहीं थे. यह धर पकड़ उस वीडियो की वजह से की गई थी जिसे अमर ने 10 अगस्त, 2019 को शूट किया था. वीडियो में साफ दिख रहा था कि दिल्ली के आदर्श नगर पुलिस स्टेशन के दो कांस्टेबल लोगों से हफ्ता वसूल रहे हैं.
जब व्हॉट्सऐप पर यह वीडियो वायरल हो गया तो आदर्श नगर पुलिस स्टेशन के कांस्टेबल्स ने उस शख्स की तलाश करनी शुरू की, जिसने यह वीडियो बनाया है. फिर एक खबरी ने बताया कि यह अमर का काम है. इसके बाद उन्होंने अमर को “सबक सिखाने” का फैसला किया.
अमर को सुबह साढ़े दस बजे पकड़ा गया था. लेकिन अमर को इस गिरफ्तारी की कोई वजह नहीं बताई गई. वे उसे आदर्श नगर के झंडा चौक इलाके में एक ‘कमरे’ में ले गए. अमर बताता है कि वह कमरा बहुत छोटा था (सिर्फ 12 गज का). उसमें कोई खिड़की नहीं थी. दोनों तरफ की दीवारों पर एक-एक ट्यूबलाइट लगी थी. पांच मिनट बाद एक दूसरा कांस्टेबल आया. उसके हाथ में हरे रंग का पानी का पाइप था. फिर दो पुलिसवाले डंडे घुमाते हुए आए.
अमर याद करता है कि उन कांस्टेबल्स के मुंह पर गालियां थीं और वे उसे पीटे जा रहे थे. कांस्टेबल्स ने उसे ‘छोट जात’ कहा और यह भी कहा कि ‘नाली के कीड़े जो सड़ते रहेंगे.’
उस ‘कमरे’ में घंटों तक पिटाई खाने के बाद अमर को आखिरकार आदर्श नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया. अभी पुलिस उसे वहां ले जाने की तैयारी कर रही थी कि उसने अपने चाचा प्रवीण (बदला हुआ नाम) को फोन लगाया. धीमी आवाज में उसने प्रवीण को बताया कि वे लोग उसे कहां ले जा रहे हैं.
करीब 2 बजे दोपहर प्रवीण अपने भतीजे की खैर खबर लेने आदर्श नगर थाने पहुंचा. प्रवीण दिल्ली यूनिवर्सिटी में कानून की आखिरी साल की पढ़ाई कर रहा था. उसने वहां स्टेशन हाउस अफसर से पूछा कि अमर कहां है, उसे क्यों गिरफ्तार किया गया है और गिरफ्तारी के समय और उसके बाद किस कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया.
प्रवीण बताता है कि जब उसने पुलिस अफसर से पूछा कि किस कानून के तहत अमर को गिरफ्तार किया गया है तो वह अफसर कुढ़ गया. उसे लगता है कि कानूनी हक की बात करने की वजह से ही उसे पुलिसिया अत्याचार का सामना करना पड़ा. वहां उसने पुलिस प्रशासन का सबसे खतरनाक पहलू देखा.
द क्विंट से बात करते हुए प्रवीण ने बहुत तकलीफ से उस दिन को याद किया जब उसकी रूह कांप गई थी. उसे पहली मंजिल के एक कमरे में ले जाया गया जहां तीन पुलिस कांस्टेबल्स ने उसे ‘थर्ड डिग्री’ दी.
प्रवीण बताता है कि कांस्टेबल्स ने उसे चार घंटे तक टॉर्चर किया. शाम 7 बजे उसे छोड़ा गया लेकिन पुलिस ने उसका मोबाइल फोन नहीं दिया. प्रवीण इतना शर्मसार हो गया था कि अपनी चोटों को दिखाने के लिए डॉक्टर के पास तक नहीं गया. किसी तरह अपने घर पहुंचा. इस बीच अमर आदर्श नगर थाने में पुलिस कस्टडी में रहा, इसके बावजूद कि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं था.
जब प्रवीण की 'अग्नि परीक्षा' खत्म हुई तब अमर को पता चला कि कांस्टेबल्स ने उसके खिलाफ आर्म्स एक्ट के अंतर्गत मामला बनाया है. एफआईआर में लिखा गया था कि अमर ने बंदूक दिखाकर एक आदमी से 500 रुपए वसूले हैं. वह आदमी रोहित (बदला हुआ नाम) था, जो अमर के घर से दो घर दूर रहता है.
अगले दिन अमर को रोहिणी जिला अदालत में मेजिस्ट्रेट के पास ले जाया गया. उसके शरीर पर हिंसा के निशान साफ थे और वह अपनी यातना के बारे में भी बता रहा था, फिर भी मेजिस्ट्रेट ने अमर को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. अमर को सुनवाई के समय कोई वकील नहीं दिया गया.
अमर बताता है कि मेजिस्ट्रेट के सामने ले जाने से पहले उससे 20-25 खाली कागजों पर दस्तखत कराए गए. गिरफ्तारी के 30 घंटे से ज्यादा बीत जाने के बाद उसे मेजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. यह संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत मूलभूत अधिकारों का हनन तो है ही, साथ ही क्रिमिनल प्रोसीजर कोड यानी सीआरपीसी की धारा 57 के अंतर्गत कानूनी अधिकारों का भी उल्लंघन है. इसके अलावा पुलिस ने अमर को धमकाया कि अगर उसने मेजिस्ट्रेट के सामने जुबान खोलने की कोशिश की तो उसके खिलाफ ‘35 क्रिमिनल केस’ लगाए जाएंगे.
प्रवीण और अमर को उन तीन पुलिस कांस्टेबल्स के खिलाफ एफआईआर लिखवाने के लिए कई दिनों तक परेशान होना पड़ा जिन्होंने उनके साथ ‘अमानवीय व्यवहार’ किया था. दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रवीण के साथ पढ़ने वाले कुछ लॉ स्टूडेंट्स ने एक प्रोटेस्ट मार्च भी निकाला. वे आदर्शनगर पुलिस थाने गए और स्टेशन हाउस अफसर से कहा कि वह उन कांस्टेबल्स के खिलाफ शिकायत दर्ज करें.
2 मार्च 2020 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस कमीशनर को एक नोटिस जारी किया जिसमें उसने आरोपी पुलिस कांस्टेबल्स के खिलाफ जांच की मांग की और कहा कि इस सिलसिले में वह छह हफ्ते के अंदर जवाब दें. जब आयोग को कोई जवाब नहीं मिला तो उसने पुलिस विभाग को 4 सितंबर 2020 तक का समय और दिया. आखिर में उत्तर पश्चिमी जिले के डीसीपी ने आयोग को 14 दिसंबर 2020 को जवाब दिया.
जवाब में डीसीपी ने कहा कि शिकायत में लगाए सभी आरोप ‘झूठे’ हैं. फिर उन्होंने कहा कि यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है, इसलिए प्रवीण और उसके भतीजे को कोई हर्जाना नहीं मिलेगा.
प्रवीण और अमर अदालत में अपने अपने केस लड़ रहे हैं. उनका मानना है कि सबसे पहले तो उनके खिलाफ कोई मामला बनता ही नहीं. उन्हें 'सिस्टम' का शिकार बनाया गया, वह भी उस हद तक कि उनकी जिंदगी कभी पहले जैसी नहीं हो सकती.
अमर कहता है कि जेल जाने की वजह से मॉल में एकाउंटेंट की उसकी नौकरी चली गई. अब उसके खिलाफ आपराधिक मामला है तो उसे शायद ही कहीं और नौकरी मिले.
इस बीच प्रवीण ने अपनी कानून की पढ़ाई पूरी कर ली है, और अब वकील बन चुका है. वह मानता है कि कस्टोडियल टॉर्चर के अनुभव ने उसे ‘जिंदगी भर का सबक सिखा दिया है.’
प्रवीण अपने साथ बदसलूकी करने वालों के खिलाफ रोहिणी के ट्रायल कोर्ट में मुकदमा लड़ रहा है. वह हर तारीख पर अदालत पहुंचता है, यह पक्का करता है कि उसका वकील कभी अगली तारीख न मांगे. खुद वकील होने की वजह से वह जानता है कि भारत की अदालतों में इंसाफ मांगना थका देने वाली प्रक्रिया है. इसके लिए सालों इंतजार करना पड़ता है.
अब तक प्रवीण और अमर को हर्जाने के तौर पर एक रुपया भी नहीं मिला है. हालांकि दोनों मानते हैं कि हर्जाना उसके साथ हुए जुल्म की कीमत नहीं. प्रवीण नफरत से भरकर कहता है, “मैं चाहता हूं कि उन कांस्टेबल्स को सजा मिले. लेकिन कितना भी रुपया उस तकलीफ को कम नहीं कर सकता, जो उन लोगों ने मुझे दी हैं.”
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