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यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) ने मंगलवार को वर्चुअल आईडी (VID) की शुरुआत कर दी है. अब सर्विस प्रोवाइडर जल्द ही आधार नंबर की जगह इस आईडी को स्वीकार करना शुरू कर देंगे. आधार को लेकर एक और बड़ी खबर है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून के पक्ष में तर्क दिया है.
जहां तक नई सर्विस की बात है, इसका फायदा उठाने के लिए अपना आधार नंबर रखने वाले लोगों को अपनी एक वर्चुअल आईडी बनानी होगी. आधार सत्यापन के लिए पहले जहां आधार नंबर बताने की जरूरत होती थी, वहीं अब ये वर्चुअल आईडी बताने से ही काम चल जाएगा.
इससे उपभोक्ता को किसी दूसरे व्यक्ति या सर्विस प्रोवाइडर को 12 अंकों वाला आधार नंबर का खुलासा नहीं करना पड़ेगा. एक तरह से यह वर्चुअल आईडी आधार संख्या के शुरुआती ऑप्शन के रूप में काम करेगी.
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने ट्विटर पर जानकारी दी है.
प्राधिकरण का कहना है, जल्द ही सर्विस प्रोवाइडर आधार संख्या की जगह पर वीआईडी को स्वीकार करना शुरू करेंगे. फिलहाल, इसका इस्तेमाल आधार में पते को अपडेट करने के लिए किया जा सकता है. प्राधिकरण ने उपभोक्ताओं से आग्रह किया है कि वो अपना वीआईडी बनवा लें.
हाल ही में बेंगलुरु की एक रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन, सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी (CIS) ने करीब 13 करोड़ लोगों के आधार कथित तौर पर 'लीक' होने की आशंका जताई थी. CIS की रिपोर्ट के मुताबिक कई सरकारी विभागों की वेबसाइट्स से कथित तौर पर डेटा सार्वजनिक हो गए. इनमें लोगों की वित्तीय जानकारी और आधार नंबर भी शामिल है. दावा किया गया था कि ऐसा वेबसाइट्स के कमजोर सिक्योरिटी के फीचर्स के कारण हुआ.
जवाब में UIDAI ने कहा कि वेबसाइट्स से डाउनलोड किया गया डेटा, तब तक एक्सेस नहीं हो सकता जब तक वेबसाइट को हैक नहीं किया गया हो और हैकिंग एक गंभीर अपराध है.
आधार सिस्टम आईटी एक्ट, 2000 के सेक्शन 70 के तहत आता है. इन धाराओं के उल्लंघन पर 10 साल तक की सजा हो सकती है. UIDAI ने CIS को 30 मई से पहले जवाब देने के लिए कहा है.
केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून को बिलकुल सही ठहराया. उन्होंने कहा कि यह एक ‘सही और लॉजिकल कानून' है, जो निजता के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसले के मानकों का पालन करता है.
नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल 24 अगस्त को निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया था और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का मूलभूत हिस्सा करार दिया था.
केंद्र ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि निजता के अधिकार संबंधी फैसले में प्रावधान है कि राज्य ऐसी स्थिति में कुछ खास सूचना मांग सकता है. जब कोई कानून हो, राज्य का कोई वैध हित हो और नागरिक की निजता को परखने की कोई ठोस वजह हो.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले में कहा गया है कि कानून होने, राज्य का वैध हित होने और कोई ठोस वजह होने जैसी चीजें निजता उल्लंघन को परखने का आधार हैं. पीठ में न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं.
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