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गाजीपुर, बलिया फिर उन्नाव... एक के बाद एक इन जिलों में आंकड़े जो सरकारी फाइलों में रजिस्टर हो रहे थे या नहीं हो रहे थे वो अब नदियों में शव बनकर उतराते दिख रहे हैं. गाजीपुर-बलिया में तो गंगा नदीं में दर्जनों शव उतराते मिले हैं तो उन्नाव में गंगा नदी के किनारे दो स्थानों पर कई शवों को रेत में दफन बरामद किया गया है. इन शवों का हाल ऐसा कि इंसानियत शरमा जाए. नदियों में उतराते शवों को जानवर नोच रहे हैं तो रेत में दफन शवों को कुत्तों के नोंचने तक रिपोर्ट है. ये कोविड संक्रमितों के शव हैं या नहीं, इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है.
ऐसी स्थिति में इन शवों की तस्वीरों और वीडियो के अलावा हमारे पास क्या है?
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कह रही हैं कि यूपी में हद से ज्यादा अमानवीयता हो रही है और ऐसे शवों के बरामदगी और आंकड़ों के कथित तौर पर कम करके बताए जाने को लेकर हाईकोर्ट जज की निगरानी में तुरंत न्यायिक जांच होनी चाहिए.
अब इस मामले में नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन ने यूपी और बिहार सरकार को नोटिस भेजा है.
दर्जनों की संख्या में शव सामने आ रहे हैं तो जिले का कोई मुखिया बता रहे है कि लोग पहले से आ रहे रीति-रिवाजों के तहत शव पानी में बहा देते हैं. कोई बता रहा है कि ऐसे ही रीति-रिवाजों के कारण शव को रेत में दफन कर दिया जाता है. लेकिन यहां तब भी सवाल है कि कोविड काल में ही इतने शव एक साथ ऐसे कैसे देखे जाने लगे.
बता दें कि गाजीपुर-बलिया में पाए गए इन शवों की संख्या 100 से भी ज्यादा बताई जा रही है और अब प्रशासन ने उनका दाह संस्कार कर दिया है. शवों के लिए लगातार खोजी अभियान भी चल रहा है. इन दोनों जिलों के अलावा अब ऐसी ही खबरें कानपुर, हमीरपुर जैसे जिलों से भी आने लगी है.
IANS की एक रिपोर्ट में उन्नाव के स्थानीय कारोबारी शिरीष गुप्ता की एक राय छपी है. ये तर्क हमें कई लोगों से बातचीत में सुनने को मिला है. शिरीष कहते हैं , "हिंदू संस्कारों के अनुसार दाह संस्कार अब 15,000 से 20,000 रुपये के बीच है. यह साफ है कि गरीब लोग इसे अदा नहीं कर सकते हैं और वे नदी के किनारे शवों को दफन कर रहे हैं.''
अलग-अलग जिला प्रशासन इस समस्या के समाधान के लिए अब मुस्तैदी दिखा रहे हैं. जैसे गाजीपुर में अब आने वाले शवों का रजिस्टर सही से भरने की हिदायत है. जो लोग शवों का अंतिम संस्कार करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी जानकारी जिलाधिकारी कार्यालय तक दी जाएगी और अंतिम संस्कार का प्रबंधन प्रशासन की तरफ से किया जाएगा.
इस बीच बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा से बड़ी संख्या में शव निकाले जाने के बाद, पश्चिम बंगाल सरकार ने मालदा जिला प्रशासन से कहा कि नदी के किनारे चौकसी बढ़ाए और अगर शव पाए जाएं, तो प्रोटोकॉल के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया जाए. गंगा मालदा के रास्ते पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और इसलिए शवों को राज्य में प्रवेश करने से रोकने के लिए जिले में निगरानी बढ़ा दी गई है. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, गंगा झारखंड में राजमहल के माध्यम से मणिकचक ब्लॉक में राज्य को छूती है और इसलिए मणिकचक के पास शवों को रोकने के लिए उपाय किए गए हैं ताकि यह फरक्का बैराज तक न पहुंचे.
सबसे बड़ा सवाल और चुनौती ये पता लगाने की है कि क्या ये शव कोविड संक्रमितों के हैं? ये सवाल यूपी समेत पूरा देश भी पूछ रहा है, जिससे कोविड से हो रही मौतों की असलियत का पता चले. अभी तक ये पता लगाने में असमर्थता ही दिखी है, इसे संयोग मानें या इसी को असली हकीकत कि इन दर्जनों शवों की बरामदगी ऐसे वक्त में हो रही है, जब लोग कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं और प्रशासन पर आंकड़ों को कम दिखाने के आरोप लग रहे हैं. दूसरी बात की ये शव किन परिवारों के हैं? क्या ये पता लगाना प्रशासन के लिए इतना मुश्किल है? एक-दो शव नहीं सैंकड़ों शव हैं, तो क्या इन परिवारों तक नहीं पहुंचा जा सकता? और क्या नदियों में ऐसे शवों के बहने से कोरोना से अलग दूसरी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ता नहीं जा रहा है?
प्रशासन को इन सवालों का जवाब और उससे जरूरी समाधान तुरंत ढूंढना चाहिए, जिससे त्रासदी के दौर में कम से कम हर दिन इंसानियत तो शर्मिंदा न हो.
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