Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019States Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अपने ही क्यों कर रहे हैं योगी सरकार में ‘सिस्टम’ की खुली आलोचना?

अपने ही क्यों कर रहे हैं योगी सरकार में ‘सिस्टम’ की खुली आलोचना?

अपने ही सीएम से सीधा संवाद क्यों नहीं कर पा रहे बीजेपी के नेता? लेटर लिखने और फिर सार्वजनिक करने को मजबूर क्यों हैं?

अभय कुमार सिंह
राज्य
Published:
अपने ही क्यों कर रहे हैं योगी सरकार में ‘सिस्टम’ की खुली आलोचना?
i
अपने ही क्यों कर रहे हैं योगी सरकार में ‘सिस्टम’ की खुली आलोचना?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

  • 'ऑक्सीजन नहीं है'
  • 'अधिकारी फोन नहीं उठाते'
  • 'मरीजों को दर-दर भटकना पड़ रहा है'
  • 'मरीज एंबुलेंस और घरों में दम तोड़ रहे हैं'

विचित्र, किंतु सत्य. ये सब आम आदमी नहीं, विपक्ष के नेता नहीं. यूपी के मंत्री और बीजेपी विधायक लिख रहे हैं.कुछ ने सीएम योगी को चिट्ठियों में ये लिखा है, कुछ खुलेआम सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं तो कुछ कैमरे पर भड़ास निकाल रहे हैं. सवाल ये है कि जब इनकी सरकार बार-बार कह रही है कि सब चंगा सी तो ये लोग अपनी ही सरकार की पोल खोलने पर क्यों उतारू हैं? कोई दिक्कत थी तो सीधे योगी जी से कह सकते थे. चिट्ठियां क्यों सार्वजनिक कर रहे हैं? या आम आदमी की तरह वो भी बेबस हो गए हैं और आम आदमी के आंसुओं में अपनी राजनीति डूबने का डर है. या फिर ऊपर से शांत दिखने वाली पार्टी के अंदर ही अंदर जोरदार लहरें चल रही हैं, और ये नेता लोहा गरम देख हथौड़ा चला रहे हैं?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

गौर कीजिएगा किन मंत्रियों विधायकों ने त्राहिमाम लिखा है. करीब 5 बीजेपी विधायक, 3 सांसद जिनमें एक केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी हैं.

  • केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि मरीजों को सरकारी अस्पतालों में एडमिशन के लिए इधर से उधर भटकना पड़ रहा है.
  • बरेली के विधायक केसर सिंह ने सीएम को चिट्ठी लिखी और फिर उनकी मौत हो गई.
  • रुधौली बस्ती से बीजेपी विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने लिखा कि जिले में दवा, बेड नहीं.
  • पूर्व मंत्री औराई, भदोही से विधायक दीनानाथ भाष्कर ने कहा कि बीजेपी जिला महामंत्री लाल बहादुर मौर्य की मौत हो गई लेकिन उन्हें इलाज समय से नहीं मिल सका.
  • लखनऊ के मोहनलालगंज से बीजेपी सांसद ने कई बार बदइंतजामी की आवाज उठाई. उनके भाई की भी जान कोविड के कारण चली गई

ये नौबत क्यों आई?

वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा कहते हैं. जिस तरह से इस आपदा से निपटा जाना चाहिए था, उस तरह से निपटा नहीं गया.

‘ऐसे ही एक जनप्रतिनिधि से मेरी बात हुई, वो कहते हैं कि मैं चुनाव जीतकर आया हूं अपने लोगों की वजह से, वो लोग मुझसे वैसे भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. सिर्फ इस दौर की वजह से वो मुझसे मदद मांग रहे हैं और अगर मैं ऐसी स्थिति में ही मदद नहीं कर पा रहा हूं. तो मेरे तो संबंध ही खत्म हो जाएंगे. और उन्हें ये सुविधायें मुहैया करवाना मेरी जिम्मेदारी है.’
नवलकांत सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार

बात सही लगती है. यूपी में महज दस महीने बाद चुनाव हैं. लिहाजा अगर इस विकट मुसीबत में नेता जी काम न आए तो जनता चुनाव में सबक सिखा सकती है. फिर भी सवाल वही है.

सत्ताधारी दल के नेता अफसरों को फोन भर कर दें तो काम हो जाएगा. चिट्ठी और चिड़िया खुले में उड़ाने की क्या जरूरत?

वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला कहते हैं कि मामला जनप्रतिनिधि बनाम अफसरशाही का है.

‘कोरोना संक्रमण में अधिकारी फोन ही नहीं उठाते हैं. अब काफी कुछ कंट्रोल में है, लेकिन शुरुआत में अधिकारियों ने जनप्रतिनिधियों के फोन ही नहीं उठाए. ऐसे में विधायक बगावत करते हैं. हमें ये समझना होगा कि विधायकों के लिए देवता मुख्यमंत्री नहीं इस समय वो जनता है, जिसका उसे वोट लेना है, उसके पक्ष में विधायक को बोलना ही पड़ेगा क्योंकि चुनाव आने वाले हैं. हाल में एक मामला सामने आया. जब बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को 34 फोन लगाए. लेकिन, अधिकारी ने एक बार भी फोन नहीं उठाया. ये हालत है.अब जनप्रतिनिधि कितना इंतजार करेगा.’
बृजेश शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

चिट्ठी और चिड़िया खुले में उड़ाने की क्या जरूरत?

अगर अफसर नहीं सुनते. तो सीधे सीएम से शिकायत कर सकते थे. बीजेपी के नेता क्यों नहीं सोच रहे कि अगर ये बातें सार्वजनिक हुईं तो सरकार की बदनामी होगी?

इस सवाल में तीन सवाल छिपे हैं-

  1. अफसर सत्ताधारी पार्टी के बड़े लोगों की क्यों नहीं सुन रहे?
  2. या अफसर सुनना चाहते हैं लेकिन मजबूर हैं?
  3. बीजेपी नेता सीएम तक पहुंचने के लिए अफसरों पर निर्भर क्यों ?

सवाल 1- अफसर सत्ताधारी पार्टी के बड़े लोगों की क्यों नहीं सुन रहे?

क्या यूपी में सत्ता इतनी केंद्रीकृत हो गई है कि अफसरशाही एक को छोड़कर किसी को पूछ नहीं रही? सत्ता में रहकर भी सत्ताहीन होने की यही खीझ, यही हताशा चिट्ठियां और चिड़िया बनकर अपनी ही सरकार पर झपट्टा मार रही है?

सवाल 2- अफसर सुनना चाहते हैं लेकिन मजबूर हैं?

स्थिति इतनी विकट है कि चाह कर भी नहीं सुन सकते? क्या यूपी में वाकई स्थिति कंट्रोल से बाहर है. हालत इतनी खराब है कि माननीयों की गुजारिश भी नहीं पूरी की जा सकती? और अगर सत्ताधारी दल के बड़े नेताओं का ये हश्र है तो यूपी के आम आदमी का क्या हाल हो रहा होगा. और क्या पहली वजह, यानी अति केंद्रीकृत व्यवस्था भी इसके लिए जिम्मेदार है. क्योंकि 'जहांपनाह सिस्टम' शुरू हो जाए तो अक्सर सिस्टम फेल हो जाता है. जो नेता आज हाय तौबा मचा रहे हैं जरा वो भी सोचें कि ऐसा सिस्टम जब बन रहा था तो वो मौन क्यों थे?

और अगर कोविड की स्थिति कंट्रोल से बाहर हो गई है तो लीडरशिप डिनायल मोड में क्यों है? क्या लाशों के ढेर नहीं दिख रहे? या क्या अब भी भरोसा है कि इन चीजों की सियासी कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी? क्या उन्हें इस बात का यकीन है कि यूपी में वोट के न्यूट्रॉन किसी और न्यूक्लीयस के गिर्द घूमते हैं? और क्या घरों में अंधेरा और श्मशानों में अनगिनत रोशनियों के बाद भी वोट वहीं घूमते रहेंगे?

सवाल 3-बीजेपी नेता सीएम तक पहुंचने के लिए अफसरों पर निर्भर क्यों ?

अपने ही सीएम से सीधा संवाद क्यों नहीं कर पा रहे बीजेपी के नेता? ऐसी स्थिति किसने बनाई, कैसे बनी कि केंद्रीय मंत्री तक को चिट्ठी लिखनी पड़ रही है और वो सार्वजनिक कर रहे हैं. क्यों नहीं ये लोग सीधे योगी जी से गुजारिश कर सकते हैं?

  • फोन नंबर नहीं है?
  • वो फोन नहीं उठाते?
  • फोन उठाते हैं लेकिन करते कुछ नहीं?

जहां तक इंटरनल लेटर फंस जाने की बात है तो ऐसा कैसे संभव है कि सीएम को पता ही न चले कि उनके अफसर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठियां उनतक नहीं पहुंचने दे रहे? बयानों में सख्त शासक नजर आने वाले योगी के राज में अपनी डफली अपना राग कैसे चल रहा है?

या फिर ये सारी चर्चा बस चकल्लस है. और जैसा कि योगी जी कह रहे हैं-यूपी में सब ठीक है. ऑक्सीजन, इलाज सब चकाचक है. अगर ऐसा ही है तो ऑक्सीजन SOS की अफवाह फैलाने वाले लोगों की प्रॉपर्टी जब्त करने और रासुका लगाने की चेतावनी दे चुके योगी, किसी भी विरोध पर 'आपातकाल' का आह्वान कर चुके योगी, अपने नेताओं के 'अनर्गल' आरोपों पर इतने बेबस क्यों हैं? और अनुशासन की प्रतिमूर्ति पार्टी क्यों मौनव्रत धारण किए हुए है?

पार्टी की ‘बदनामी’ करा रहे अपने नेताओं पर एक्शन क्यों नहीं लेती? आखिर कोरोना का कहर दूसरे बीजेपी शासित राज्यों में भी है, वहां के बीजेपी नेता तो कुछ नहीं बोल रहे. या फिर बात ये है कि योगी सरकार के खिलाफ लेटर और ट्वीट योग के विलोम में पार्टी का भी अनुलोम है?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT