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उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार थामने के लिए राज्य सरकार अलग-अलग कोशिशों में जुटी है. अब प्रदेश सरकार ने कोविड-19 के मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टरों, कर्मचारियों और मेडिकल-नर्सिंग के स्टूडेंट्स के लिए नया आदेश लाई है. कोविड अस्पतालों में काम कर रहे सभी डॉक्टरों, नर्सों और पैरा-मेडिकल स्टाफ, सफाईकर्मियों को 25 फीसदी अतिरिक्त सैलरी दी जाएगी.
वहीं सरकारी मेडिकल कॉलेजों के MBBS इंटर्न, MBBS फाइनल ईयर के स्टूडेंट, BSc नर्सिंग के स्टूडेंट्स को कोविड से जुड़े काम में तैनात किया जाएगा और उन्हें इसके लिए सैलरी दी जाएगी. सरकार के इस फैसले के बाद निश्चित तौर से राज्य में कोविड-19 से लड़ी जा रही जंग के लिए कुछ और 'कोरोना वॉरियर' मिलेंगे और प्रोत्साहन भी मिलेगा.
बता दें कि ये वही MBBS इंटर्न डॉक्टर हैं, जो कोरोना वायरस की पहली लहर में अलग-अलग मेडिकल कॉलेज में प्रदर्शन करते आए. इनकी स्टाइपेंड 7500 रुपये थी. कुछ महीनों के प्रदर्शन के बाद सरकार की तरफ से स्टाइपेंड बढ़ाकर 12 हजार रुपये हर महीने की कर दी गई. ये जो नया आदेश है, उसमें 500 रुपये हर रोज, स्टाइपेंड के अतिरिक्त दिए जाएंगे.
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एक इंटर्न डॉक्टर का कहना है कि कोरोना के इस काल में जिस तरह का दबाव इंटर्न डॉक्टर करियर के शुरुआती दौर में झेल रहे हैं, उस लिहाज से ये प्रोत्साहन राशि सही है.
वहीं बीआरडी मेडिकल कॉलेज के MBBS फाइनल ईयर के एक छात्र इस फैसले से थोड़े परेशान नजर आए. 2 मई को ही वो कोरोना से रिकवर हुए हैं, वो कहते हैं कि उन्हें बताया गया था कि ज्यादातर काम में कोविड पेशेंट से ज्यादा एक्सपोजर का खतरा नहीं होगा लेकिन पहले दिन ऐसा दिखा नहीं.
इसी मेडिकल कॉलेज के एक फाइनल ईयर स्टूडेंट कहते हैं कि हम सबसे ज्यादा फाइनल ईयर में ही सीखते हैं लेकिन कोविड वॉर्ड की ड्यूटी के बाद अब तो ये मुश्किल लगता है.
LLRM मेडिकल कॉलेज मेरठ के एक एमबीबीएस स्टूडेंट को लगता है कि 300 रुपये का स्टाइपेंड काफी कम है. उनका कहना है कि कोविड वॉर्ड में जब हमें बतौर डॉक्टर ही रखा जाएगा तो एक डॉक्टर की जैसी सैलरी देने में क्या हर्ज है. वो अपने परिवार का नजरिया भी हमारे सामने रखते हैं.
LLRM मेडिकल कॉलेज, मेरठ के एक इंटर्न डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि जब काम आए तो हमसे काम लीजिए, फिर उसी स्थिति पर छोड़ दीजिए. इनका कहना है कि जिस हिसाब से पैसे 7500 रुपये स्टापेंड के तौर पर मिलते हैं, उस हिसाब से ये नया मानदेय सही है लेकिन इसकी आगे कोई गारंटी नहीं है और ऐसा तब है जब हाई रिस्क में काम कराया जाएगा.
आगरा के SN मेडिकल कॉलेज के फाइनल ईयर स्टूडेंट के छात्र अलग कहानी बता रहे हैं. वो कहते हैं कि आदेश तो अभी आया है लेकिन इस कॉलेज में ड्यूटी 15 अप्रैल से लगी हुई है.
आगरा मेडिकल कॉलेज के ये छात्र कहते हैं कि अब इन्हें जो मानदेय मिलेगा कोविड-19 ड्यूटी की वो भी फाइनल ईयर स्टूडेंट वाली यानी 300 ही मिलेगी.
महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज, झांसी के इंटर्न डॉक्टर कहते हैं कि सरकार अगर कुछ प्रोत्साहन के लिए काम कर रही है तो वो बहुत बेहतर है. कोविड से अभी हाल ही में उबर कर आए ये इंटर्न डॉक्टर कहते हैं कि सरकार को रिसोर्स पर भी खूब ध्यान देना चाहिए. वो एक बेसिक बात पर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि अस्पतालों में मिलने वाले पीपीआई किट और दूसरे प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की इतनी मात्रा तो होनी ही चाहिए कि अगर हम से कुछ गलती से खराब हो जाए या कहीं और इसका इस्तेमाल हो जाए तो इंतजार न करना पड़ा.
वो ये भी कहते हैं कि मरीजों की संख्या इतनी है कि आए दिन मरीजों और मेडिकल कर्मियों के बीच झड़प की बातें देखने को मिल रही हैं, इसका हल ढूंढने पर प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है.
इसी मेडिकल कॉलेज की इंटर्न रहीं डॉक्टर अंजलि ये सुझाव देती हैं कि फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स की कोविड ड्यूटी लगाने से बेहतर ये है कि प्राइवेट में प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों को भी सरकारी अस्पतालों में कुछ घंटे ड्यूटी के लिए कहा जा सकता है.
कुल मिलाकर सरकार के इस फैसले पर MBBS इंटर्न डॉक्टरों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है. वहीं MBBS फाइनल ईयर में पढ़ रहे स्टूडेंट आशंका में हैं.
RDA KGMC लखनऊ के एक्स-प्रेसिडेंट डॉक्टर नीरज मिश्रा कोरोना संकट के इस दौर में डॉक्टरों और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं. अब वो कहते हैं कि सरकार को प्राथमिकताएं बदलनी होंगी. क्विंट से बातचीत में उनका कहना है कि
एक और खास बात जिन मेडिकल इंटर्न, स्टूडेंट से हमने बात की, उनमें से सब के सब ये तो चाहते हैं कि उनकी बात रखी जाए लेकिन अपने इंटर्नल नंबर, करियर और आशंकाओं की वजह से ये नहीं चाहते कि उनका नाम किसी भी तौर पर रिपोर्ट में दिखाया जाए, इसलिए हमने इनके नाम नहीं लिखे हैं.
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