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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के एटा (Etah) में javelin throw की एक नेशनल खिलाड़ी दीक्षा दीक्षित आर्थिक तंगी से जूझ रही है. काबलियत के बावजूद उस लड़की को कहीं से मदद नहीं मिल रही है.
दीक्षा ने रामपुर स्थित बीडीआरएस इंटर कालेज में 2015 में एडमिशन लिया था. तभी स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर योगेंद्र शाक्य से मुलाकात हुई. स्कूल के टीचर्स ने पैसे इकट्ठा कर सामान जुटाया. इसके बाद दीक्षा की प्रैक्टिस जारी रखी गई और नतीजे में दीक्षा ने चार बार स्टेट मैच और एक बार नेशनल मैच जीतने का खिताब अपने नाम किया.
साल 2019 में स्कूल से पढ़ाई पूरी होने के बाद, 2021 में डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से जैवलिन थ्रू मैच खेलने के लिए गई और दूसरा स्थान मिला और नेशनल मैच खेलने के लिए पंजाब के जिले संगरूर में गईं. यहां पर भी दीक्षा ने नेशनल मैच में दूसरा पोजिशन हासिल किया.
मौजूदा वक्त में दीक्षा युवा कल्याण विभाग की तरफ से खेल रही हैं और उनको आगे के मैच खेलने के लिए पैसों की जरूरत है. परिवार इस समय पैसों की तंगी से जूझ रहा है. ऐसे में ये बेटी आगे कैसे बढ़ पाएगी ये एक बड़ा सवाल है. दीक्षा के पास पहनने के लिए जूते और ड्रेस तक नहीं है.
दीक्षा क्विंट हिंदी से बात करते हुए बताती हैं कि 2016 से वो स्टेट स्तर पर खेलने जाने लगी थी. तभी गांव समाज के लोग कहते थे कि तुम लड़के वाले कपड़े क्यों पहनती हो, घर वालों से कहते थे तुम्हारी बेटी बिगड़ गई है.
दीक्षा बताती हैं कि 2020 में कोरोना के दस्तक देने की वजह से मेरे मैच स्थगित हो गए. उसके बाद मैं गांव के पास ही डिग्री कालेज में पढ़ने चली गई और विश्वविद्यालय की तरफ से मैच खेला. आज भी इंटर कॉलेज और स्कूल के सभी शिक्षक मेरी फाइनेंसियल हेल्प से लेकर के खानपान की व्यवस्था करवाते हैं. क्योंकि मेरे पिता जी इतना खेती से कमा नही पाते हैं. उन्होंने बताया कि वो वर्तमान समय में एटा के युवा कल्याण विभाग की तरफ से खेलती हैं.
दीक्षा बताती हैं कि युवा कल्याण विभाग की तरफ से मैं स्टेट तक खेल आई हूं और प्रथम स्थान हासिल करते हुए मुझे गोल्ड मेडल भी मिला है. लेकिन पिछले साल से सरकार ने हमारे खेल भाला फेंक को नेशनल स्तर पर खिलवाने से मना कर दिया है.
बीडीआर एस इंटर कालेज के टीचर योगेंद्र शाक्य क्विंट से बात करते हुए कहते हैं कि दीक्षा एक कमजोर परिवार से आती है. हमारे यहां स्कूल में लड़कियो की तैयारियां करवाने के लिए मैदान नहीं हैं. सभी अध्यापकों के सहयोग से दीक्षा के अभ्यास का ध्यान रखना पड़ता है.
दीक्षा अपने गांव चंदनपुर में ही पास में पड़ी खाली जगह पर भाला फेंकने का प्रैक्टिस करती हैं.
दीक्षा के कोच योगेंद्र शाक्य बताते हैं कि एक खिलाड़ी के अंदर 3500 कैलोरी प्रोटीन पहुंचनी चाहिए, जो रोटी से मुमकिन नही है. प्रोटीन के सप्लीमेंट लेने के लिए इस परिवार के पास इतने पैसे नही हैं. लिहाजा दो केले और सोयाबीन के बीज से प्रोटीन को कवर करने की कोशिश करते हैं. इससे भी पूरी एनर्जी नहीं मिल पाती है.
दीक्षा के पिता अवधेश दीक्षित ने बताया मेरी बेटी बाहर खेलने के लिए जाती है, तो अच्छा तो लगता है, लेकिन आने जाने और खानपान करने के लिए पैसे नही बच पाते हैं. हमारे पांच बच्चे हैं, इस महंगाई में बच्चों का पेट भरना ही बड़ी बात हो जाती है. जब बिटिया बाहर जाती है, तो उसके कोच ही मदद करते हैं.
एटा जिले के उपजिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह ने बताया कि बच्चों के खेलने के लिए स्कूल में मैदान की पर्याप्त व्यवस्था की जाएगी. इसके लिए पत्र लिखा जा रहा है. इस बच्चे की सहायता के लिए जरूरी और भरसक प्रयास किए जाएंगे. युवा कल्याण विभाग को इस युवा खिलाड़ी के लिए खेलने इत्यादि के सामान की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी, हम प्रतिभा को शिखर तक पहुंचाने की भरसक कोशिश करेंगे.
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