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यूपी सरकार ने कहा है कि गोरखपुर में बीआरडी कॉलेज में तैनात डॉ. कफील को क्लीन चिट नहीं मिली है. उनके खिलाफ सात आरोपों में जांच चल रही है. डॉ. कफील पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का मामला चल रहा है.
गुरुवार को चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव रजनीश दुबे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि डॉ. कफील को राज्य सरकार की ओर से कोई क्लीन चिट नहीं दी गई है. डॉ. कफील मेनस्ट्रीम और सोशल मीडिया पर जांच रिपोर्टों का मनमाना व्याख्या कर रहे हैं और भ्रामक खबरें प्रकाशित करा रहे हैं.
दुबे ने कहा कि बीआरडी कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए थे. उनके खिलाफ चार मामलों में डिपार्टमेंटल एक्शन की सिफारिश की गई थी. डॉ. कफील के खिलाफ सीनियर रेजिडेंट और नियमित लेक्चरर के सरकारी नौकरी के बावजूद प्राइवेट प्रैक्टिस करने और प्राइवेट नर्सिंग होम चलाने का आरोप है.
दुबे ने कहा, कफील, बाल रोग विभाग के पद पर काम करते हुए भी निजी प्रैक्टिस कर रहे थे और मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च से जुड़े थे.प्रमुख सचिव ने कहा कि निलंबन अवधि के दौरान डॉ. कफील अहमद खान की ओर से 2018 को तीन-चार बाहरी व्यक्तियों के साथ जिला चिकित्सालय बहराइच के बाल रोग विभाग में जबरन घुस कर मरीजों का इलाज करने की कोशिश की.
इससे अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हुआ. डॉ. कफील खान की ओर से सरकारी कर्मचारी के तौर पर किया गया यह काम और मडिया में प्रसारित की गई भ्रामक जानकारियां गंभीर कदाचार की श्रेणी में आती है. उनके खिलाफ 7 आरोपों में जांच चल रही है.
पिछले दिनों ने डॉ. कफील खान ने दावा किया था उन्हें बीआरडी कॉलेज मामले में क्लीन चिट मिल गई है. डॉ कफील खान ने यूपी सरकार के सामने तीन मांगे भी रखी हैं.
डॉ कफील खान ने जेल से बाहर आकर खुशी भी जताई है. उन्होंने कहा, "मैं खुश हूं. मेरे पर जो मर्डर, कातिल का टैग लगा था. वो अब हट गया है. इसलिए खुश हूं."
खान ने कहा कि भ्रष्टाचार जैसे तीन आरोप उनपर से हटा दिए गए हैं. लेकिन अभी भी एक आरोप उनपर लगा हुआ है. ये आरोप है- 8 अगस्त 2016 से पहले कफील खान प्राइवेट प्रेक्टिस करते थे. इस आरोप पर खान का कहना है कि 8 अगस्त 2016 को उन्होंने यूपी सरकार की नौकरी ज्वाइन की है, तो इससे पहले वो क्या करते थे इससे सरकार को क्या मतलब.
इसके अलावा डॉ खान ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत के लिए उस वक्त के हेल्थ मिनिस्टर और डीजीएमई को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा, उस वक्त के हेल्थ मिनिस्टर और डीजीएमई डॉ केके गुप्ता ने पुष्पा सेल के 14 लेटर पर कार्रवाई नहीं की. ये लोग मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के असली जिम्मेदार हैं.
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