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मुश्किल से एक महीने पहले ही मारुति 800 कार जो सहगल निवास के बाहर सन 1987 की गर्मियों में खड़ी रहती थी , उसे देखकर लोग आहें भरते थे और उन दिनों घर के बाहर मारुति का होना शान की बात थी. मोहनलाल सहगल, जो उन दिनों IIT में नौकरी करते थे , उन्होंने अपने 21 साल के बेटे विकास के बहुत जोर देने पर कार खरीदी थी.
सहगल बताते हैं , ‘मेरे विकी को गाड़ी ड्राइव करना बहुत पसंद था, ये उसका शौक था ..आप जरा मेरी दशा के बारे में सोच सकते हैं कि मुश्किल से 3 हफ्ते के भीतर ही मुझे उसी कार से उसकी बॉडी को लाना पड़ा…उस दिन सभी शौक खत्म हो गए’
आज इस घटना को 25 साल गुजर गए.
जून 1997 से लेकर जून 2022 में शहर भी बदल गया. ये शहर ऊंची उंची इमारतों से पट गया. मल्टीप्लेक्स और मॉल पूरे शहर में जहां तहां बन गए. दिल्ली में एक नई राजनीतिक पार्टी भी उभर कर विजेता बन गई. फैशन बदल गए.. हेयरस्टाइल भी. गर्मियां और गरम होनें लगीं तो सर्दियां और ज्यादा सिहरन वाली. दिल्ली मेट्रो लाइन लंबी होती गई. मोबाइल फोन स्लिम और बड़े होते गए.. कैब ऑनलाइन मिलने लगीं.
सबकुछ बदल गया .
लेकिन सहगल के लिए जिंदगी ..तब से जस की तस है ..सब कुछ ठहरा हुआ ...उस दिन 13 जून 1997 को जो शून्य आया वो वैसा ही है .. ठीक उसी तरह से जैसे नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के लिए. उन्होंने 17 साल की अपनी बेटी उन्नति और 13 साल के बेटे उज्जवल को खो दिया. नवीन सहाने ने अपनी 21 साल की बेट तारिका को उपहार सिनेमा में उस दिन खो दिया.
तारिका साहनी
उज्जवल और उन्नति कृष्णमूर्ति
फायर ट्रैजेडी में 59 लोगों की मौत हुई जिनमें से 23 बच्चे थे . सबसे कम उम्र जिस बेबी की थी वो एक महीने की चेतना थी.
नीलम का बेटा उज्जवल कृष्णमूर्ति
नीलम की बेटी उन्नति कृष्णमूर्ति
राजधानी में जब भी कहीं भी कोई आग की घटना होती है तो नवीन की चिंता बढ़ जाती हैं और उसे अपनी त्रासदी याद आने लगती है..13 जून 1997 की तबाही.. यानि जिंदगी को उलटपुलट कर रखने देने वाली तबाही. “जब मैं मुंडका में आग लगने की घटना के बारे में पढ़ा ..तो उपहार कांड याद आ गया ..नवीन कहते हैं
उनकी बेटी तारिकी बॉर्डर फिल्म देखने अपनी दोस्त रूबी कपूर के साथ गई थी. जब बाद में तारीका की बॉडी उन्हें मिली तो जो घड़ी पहनकर वो गई थी वो उसकी कलाई पर सही सलामत थी. अब ये घड़ी उनकी भतीजी पहनती है ..जिसने कभी तारीका से मुलाकात नहीं की.
सहगल याद करते हैं जब आग लगी तो हेडलाइंस जो बनी थी वो आज मुंडका में जो आग लगी और जैसी हेडलाइंस बनी वो लगभग एक जैसी ही हैं. 1997 में उपहार कांड पर भी हेडलाइंस थी – NO NOC / NO FIRE EXIT
सहगल बताते हैं
मुंडका आग की वारदात कोई अकेली घटना नहीं है. दिसंबर 2019 में सेंट्रल दिल्ली की अनाज मंडी में एक फैक्ट्री में आग लगने से 43 लोगों की मौत हो गई थी. आग में मारे गए 43 लोगों में से कम से कम पांच नाबालिग थे.
वास्तव में, इस साल, 19 मई तक, दिल्ली दमकल सेवा (डीएफएस) के आंकड़ों के अनुसार, अकेली दिल्ली से कम से कम 2,000 आग लगने की वारदात हुई हैं. डीएफएस ने कहा कि साल 2022 मे इस साल तक इन 2,000 आग लगने की घटनाओं में 42 लोगों की जान चली गई है.
नीलम का कहना है कि "तब से अब शहर बहुत बढ़ गया है. 1997 में, इतने अधिक गगनचुंबी इमारतें या मॉल या मल्टीप्लेक्स नहीं थे. हमारे फायर सेफ्टी रूल्स और कड़े होने चाहिए. इन नियमों का पालन जरूर होना चाहिए."
नीलम कहती हैं “आम आदमी बहुत बेफिक्र रहता है ... जब हम किसी मॉल या थिएटर में जाते हैं और देखते हैं कि फायर सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन नहीं किया जा रहा है तो हम कभी भी अलार्म नहीं बजाते ?
13 जून 1997 की शाम को, सहगल जब घर वापस आ रहे थे, तो उन्होंने सड़क पर एक बड़ा ट्रैफिक जाम देखा. “मुझे बताया गया कि उपहार सिनेमा हॉल में आग लग गई थी. उस समय, मुझे नहीं पता था कि मेरा बेटा वहां था. जब मैं घर पहुंचा तो पता चला कि मेरा बेटा थिएटर गया है फिल्म देखने .
घंटों तक उन्होंने एम्स और सफदरजंग अस्पताल में विकास की तलाश की. उन्होंने देर रात सफदरजंग अस्पताल में शव को खोजने के लिए आपातकालीन और बर्न वार्डों के चक्कर लगाए. सहगल कहते हैं "13 जून को मेरा जन्मदिन होता है, उस दिन घर से निकलने से पहले उसने मुझसे कहा कि वह शाम तक मेरा जन्मदिन मनाने के लिए वापस आ जाएगा. वह नहीं लौटा और मैंने तब से अपना जन्मदिन नहीं मनाया, ”
उपहार त्रासदी के पीड़ितों के परिवारों के लिए, उस दिन की एक एक बात अभी तक स्मृति में बसी हुई है. नीलम को याद है कि घर से निकलने से पहले उनकी बेटी ने उनके गाल पर किस किया था. जब उसे आग के बारे में पता चला तो उसने पेजर पर बच्चों को मैसेज भेजा.
वह कहती हैं, ''मुझे हर दिन अपने बच्चों की याद आती है".
नीलम और शेखर ने जब अपने बच्चों को खोया तब वो 30 साल के पार थे लेकिन आज वो 60 साल के हो चुके हैं. इतने बरसों में ना सिर्फ पीड़ितों के परिवार बूढ़े हो गए ..बल्कि उनमें से कुछ की तो मौंतें भी हो गई लेकिन अब तक कोई जस्टिस नहीं मिला.
इनमें से सत्यपाल सूदन और श्याम नागपाल का भी नाम है. इनका पिछले साल निधन हो गया था.
2019 में सूदन की पत्नी का निधन हो गया. 2020 में एक इंटरव्यू के दौरान सूदन ने रिपोर्टर को बताया कि सात शवों को वापस लाने के लिए घर में जगह ही नहीं थी.उन्होंने कहा था "मैं उन्हें अस्पताल से सीधे श्मशान ले गया,"
दूसरी ओर, नागपाल ने अपनी पत्नी मधु को उपहार आग की वारदात में गंवा दिया .. जबकि उनकी दो बेटियां बच गईं. साल 2020 में, उन्होंने रिपोर्टर से कहा, "समय घाव नहीं भरता .., आप बस उसके साथ और उस व्यक्ति के बिना जीना सीख जाते हैं जिसे आप प्यार करते हैं." पिछले साल नागपाल भी गुजर गए.
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