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Uphaar Fire के 25 साल: परिवारों को मुंडका की आग ने दिलाई गुजर चुके अपनों की याद

उपहार अग्निकांड में 59 जानें गईं थीं जिनमें से 23 बच्चे थे. सबसे छोटी बच्ची चेतना तब सिर्फ एक महीने की थी

सौम्या लखानी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Uphaar Fire के 25 साल: परिवारों को मुंडका की आग ने दिलाई गुजर चुके अपनों की याद</p></div>
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Uphaar Fire के 25 साल: परिवारों को मुंडका की आग ने दिलाई गुजर चुके अपनों की याद

(फोटो- क्विंट)

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मुश्किल से एक महीने पहले ही मारुति 800 कार जो सहगल निवास के बाहर सन 1987 की गर्मियों में खड़ी रहती थी , उसे देखकर लोग आहें भरते थे और उन दिनों घर के बाहर मारुति का होना शान की बात थी. मोहनलाल सहगल, जो उन दिनों IIT में नौकरी करते थे , उन्होंने अपने 21 साल के बेटे विकास के बहुत जोर देने पर कार खरीदी थी.

सहगल बताते हैं , ‘मेरे विकी को गाड़ी ड्राइव करना बहुत पसंद था, ये उसका शौक था ..आप जरा मेरी दशा के बारे में सोच सकते हैं कि मुश्किल से 3 हफ्ते के भीतर ही मुझे उसी कार से उसकी बॉडी को लाना पड़ा…उस दिन सभी शौक खत्म हो गए’

विकास सहगल

(फोटो: क्विंट द्वारा एक्सेस किया गया)

विकास उन 59 लोगों में से एक था जिनकी मौत दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल आग कांड (Uphaar Fire) में हुई. 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा में भारी आग लगी थी उस दिन थिएटर में सनी देओल की फिल्म बॉर्डर चल रही थी.

आज इस घटना को 25 साल गुजर गए.

उपहार अग्निकांड

(फोटो- क्विंट)

जून 1997 से लेकर जून 2022 में शहर भी बदल गया. ये शहर ऊंची उंची इमारतों से पट गया. मल्टीप्लेक्स और मॉल पूरे शहर में जहां तहां बन गए. दिल्ली में एक नई राजनीतिक पार्टी भी उभर कर विजेता बन गई. फैशन बदल गए.. हेयरस्टाइल भी. गर्मियां और गरम होनें लगीं तो सर्दियां और ज्यादा सिहरन वाली. दिल्ली मेट्रो लाइन लंबी होती गई. मोबाइल फोन स्लिम और बड़े होते गए.. कैब ऑनलाइन मिलने लगीं.

सबकुछ बदल गया .

लेकिन सहगल के लिए जिंदगी ..तब से जस की तस है ..सब कुछ ठहरा हुआ ...उस दिन 13 जून 1997 को जो शून्य आया वो वैसा ही है .. ठीक उसी तरह से जैसे नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के लिए. उन्होंने 17 साल की अपनी बेटी उन्नति और 13 साल के बेटे उज्जवल को खो दिया. नवीन सहाने ने अपनी 21 साल की बेट तारिका को उपहार सिनेमा में उस दिन खो दिया.

"मुंडका आग की घटना के बारे में पढ़कर उपहार की यादें फिर से कुरेदने लगी"

फायर ट्रैजेडी में 59 लोगों की मौत हुई जिनमें से 23 बच्चे थे . सबसे कम उम्र जिस बेबी की थी वो एक महीने की चेतना थी.

13 मई 2022 को यानि उपहार सिनेमा ट्रैजेडी की बरसी से एक महीने पहले दिल्ली के मुंडका की एक इमारत में आग (Mundka Fire) लगने से 27 लोगों की जान चली गई. नीलम कहती हैं “इसके बारे में पढ़ना, इस घटना को देखना जैसे किसी बड़ी त्रासदी जैसी थी .. उपहार कांड में 13 जून को शुक्रवार को हुआ था और मुंडका भी 13 को शुक्रवार को. 25 साल में कुछ नहीं बदला ..बल्कि और खराब ही हुआ है .. नीलम उपहार सिनेमा कांड के बाद 1997 से ही अंसल बंधुओं के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं.

राजधानी में जब भी कहीं भी कोई आग की घटना होती है तो नवीन की चिंता बढ़ जाती हैं और उसे अपनी त्रासदी याद आने लगती है..13 जून 1997 की तबाही.. यानि जिंदगी को उलटपुलट कर रखने देने वाली तबाही. “जब मैं मुंडका में आग लगने की घटना के बारे में पढ़ा ..तो उपहार कांड याद आ गया ..नवीन कहते हैं

"जब आग लगने से मेरी बेटी की मौत हो गई थी . उसने आग से खुद को बचाने और उससे बाहर निकलने के लिए कितना ज्यादा संघर्ष किया होगा ये सोचकर अब भी कांप जाता हूं..जब में आग की घटना के बारे में पढ़ता हूं तो प्रार्थना करता हूं कि जो फंस गए हैं वो किसी भी तरह से बाहर निकल जाएं.. … वो हमारे बच्चों की तरह नहीं मर जाएं"

तारिका साहनी

(फोटो: क्विंट द्वारा एक्सेस किया गया)

उनकी बेटी तारिकी बॉर्डर फिल्म देखने अपनी दोस्त रूबी कपूर के साथ गई थी. जब बाद में तारीका की बॉडी उन्हें मिली तो जो घड़ी पहनकर वो गई थी वो उसकी कलाई पर सही सलामत थी. अब ये घड़ी उनकी भतीजी पहनती है ..जिसने कभी तारीका से मुलाकात नहीं की.

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सहगल याद करते हैं जब आग लगी तो हेडलाइंस जो बनी थी वो आज मुंडका में जो आग लगी और जैसी हेडलाइंस बनी वो लगभग एक जैसी ही हैं. 1997 में उपहार कांड पर भी हेडलाइंस थी – NO NOC / NO FIRE EXIT

सहगल बताते हैं

"यहां मुंडका अग्निकांड में भी मैंने यही पढ़ा कि मालिक के पास NOC नहीं था. और फायर एग्जिट का कोई विकल्प भी नहीं था.. हम लोग 25 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं ..आखिर क्यों ? सिर्फ अपनों को इंसाफ दिलाने के लिए ही तो नहीं, बल्कि किसी दूसरे की परिवारों के साथ ऐसा नहीं हो ..इसलिए भी."

नई दिल्ली में उपहार सिनेमा की बालकनी जहां जून 1997 में 59 लोगों की मौत हुई थी

(फोटो- क्विंट)

'गलती करने वाले अफसरों को मामूली सजा से जुर्म नहीं रुकेगी '

मुंडका आग की वारदात कोई अकेली घटना नहीं है. दिसंबर 2019 में सेंट्रल दिल्ली की अनाज मंडी में एक फैक्ट्री में आग लगने से 43 लोगों की मौत हो गई थी. आग में मारे गए 43 लोगों में से कम से कम पांच नाबालिग थे.

फरवरी 2019 में, सेंट्रल दिल्ली के करोलबाग में होटल अर्पित में आग लगने से 17 लोगों की मौत हो गई थी. जनवरी 2018 में, दिल्ली के बवाना में एक कारखाने में आग लगने से 17 लोगों की मौत हो गई.

वास्तव में, इस साल, 19 मई तक, दिल्ली दमकल सेवा (डीएफएस) के आंकड़ों के अनुसार, अकेली दिल्ली से कम से कम 2,000 आग लगने की वारदात हुई हैं. डीएफएस ने कहा कि साल 2022 मे इस साल तक इन 2,000 आग लगने की घटनाओं में 42 लोगों की जान चली गई है.

नीलम का कहना है कि "तब से अब शहर बहुत बढ़ गया है. 1997 में, इतने अधिक गगनचुंबी इमारतें या मॉल या मल्टीप्लेक्स नहीं थे. हमारे फायर सेफ्टी रूल्स और कड़े होने चाहिए. इन नियमों का पालन जरूर होना चाहिए."

नीलम कहती हैं, ‘उपहार मामले में एक फायर ऑफिसर को दोषी करार दिया गया था. उन्होंने छुट्टी पर रहते हुए एनओसी दी. हालांकि, सजा हल्की थी. इसलिए यह वारदात को रोकने में सक्षम नहीं थी’. उन्होंने कहा कि "भ्रष्टाचार" के अलावा जो सबसे ज्यादा परेशानी है वो ये कि नकली एनओसी पास करना. लोगों को नकली एनओसी नहीं लेना चाहिए और इसे बिल्कुल ही नहीं दिया जाना चाहिए. ये एक ऐसा रवैया है जिससे लगता है कि आग लगने की घटना को लेकर कोई गंभीर नहीं है.

नीलम कहती हैं “आम आदमी बहुत बेफिक्र रहता है ... जब हम किसी मॉल या थिएटर में जाते हैं और देखते हैं कि फायर सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन नहीं किया जा रहा है तो हम कभी भी अलार्म नहीं बजाते ?

''मुझे हर दिन अपने बच्चों की याद आती है"

13 जून 1997 की शाम को, सहगल जब घर वापस आ रहे थे, तो उन्होंने सड़क पर एक बड़ा ट्रैफिक जाम देखा. “मुझे बताया गया कि उपहार सिनेमा हॉल में आग लग गई थी. उस समय, मुझे नहीं पता था कि मेरा बेटा वहां था. जब मैं घर पहुंचा तो पता चला कि मेरा बेटा थिएटर गया है फिल्म देखने .

घंटों तक उन्होंने एम्स और सफदरजंग अस्पताल में विकास की तलाश की. उन्होंने देर रात सफदरजंग अस्पताल में शव को खोजने के लिए आपातकालीन और बर्न वार्डों के चक्कर लगाए. सहगल कहते हैं "13 जून को मेरा जन्मदिन होता है, उस दिन घर से निकलने से पहले उसने मुझसे कहा कि वह शाम तक मेरा जन्मदिन मनाने के लिए वापस आ जाएगा. वह नहीं लौटा और मैंने तब से अपना जन्मदिन नहीं मनाया, ”

उपहार त्रासदी के पीड़ितों के परिवारों के लिए, उस दिन की एक एक बात अभी तक स्मृति में बसी हुई है. नीलम को याद है कि घर से निकलने से पहले उनकी बेटी ने उनके गाल पर किस किया था. जब उसे आग के बारे में पता चला तो उसने पेजर पर बच्चों को मैसेज भेजा.

वह कहती हैं, ''मुझे हर दिन अपने बच्चों की याद आती है".

'नो क्लोजर, नो जस्टिस '

नीलम और शेखर ने जब अपने बच्चों को खोया तब वो 30 साल के पार थे लेकिन आज वो 60 साल के हो चुके हैं. इतने बरसों में ना सिर्फ पीड़ितों के परिवार बूढ़े हो गए ..बल्कि उनमें से कुछ की तो मौंतें भी हो गई लेकिन अब तक कोई जस्टिस नहीं मिला.

इनमें से सत्यपाल सूदन और श्याम नागपाल का भी नाम है. इनका पिछले साल निधन हो गया था.

13 जून 1997 को, सूदन ने उपहार अग्निकांड में अपने परिवार के सात सदस्यों को खो दिया - इसमें उनकी महीने भर की पोती चेतना भी शामिल थी. चेतना का नन्हा शरीर उसकी मां की गोद में पड़ा मिला.

2019 में सूदन की पत्नी का निधन हो गया. 2020 में एक इंटरव्यू के दौरान सूदन ने रिपोर्टर को बताया कि सात शवों को वापस लाने के लिए घर में जगह ही नहीं थी.उन्होंने कहा था "मैं उन्हें अस्पताल से सीधे श्मशान ले गया,"

दूसरी ओर, नागपाल ने अपनी पत्नी मधु को उपहार आग की वारदात में गंवा दिया .. जबकि उनकी दो बेटियां बच गईं. साल 2020 में, उन्होंने रिपोर्टर से कहा, "समय घाव नहीं भरता .., आप बस उसके साथ और उस व्यक्ति के बिना जीना सीख जाते हैं जिसे आप प्यार करते हैं." पिछले साल नागपाल भी गुजर गए.

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