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वाराणसी: धंस रहे काशी के घाट,जमींदोज हो सकते हैं घाट किनारे के मंदिर, होटल-इमारत

वाराणसी के अस्सी घाट के निकट कटान से खतरनाक गहराई साफ दिख रही है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>धंस रहे काशी के घाट</p></div>
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धंस रहे काशी के घाट

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी (Kashi) में गंगा घाटों के धंसने और दरकने की खबरें सामने आई हैं. नदी वैज्ञानिकों ने घाट के किनारे जमीन धंसने को लेकर चिंता जाहिर की है, साथ ही विकास के नाम पर कराए गए कॉस्मेटिक वर्क पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो प्रशासनिक अनदेखी बनारस पर भारी पड़ने वाली है.

वैज्ञानिकों और गंगा से जुड़े लोग घाटों के धंसने को प्राकृतिक चेतावनी भी मान रहे हैं. काशी के प्रमुख घाट नीचे से खोखले होते जा रहे हैं. कई घाटों की सीढ़ियां और प्लेटफार्म भी धंसने लगे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप से पश्चिमी तट पर कटान तेज हो गई है. घाटों को लेकर प्रशासन जल्द नहीं चेता तो घाट किनारे बसे धरोहरों से काशी को हाथ धोना पड़ सकता है.

"जल्द नहीं चेता प्रशासन तो जमींदोज हो सकती हैं घाट किनारे के मंदिर, होटल और बड़ी इमारतें."
नदी वैज्ञानिक

सीढ़िया टूंटी हैं, तो कई घाटों पर प्लेटफार्म धंस गए हैं

वाराणसी के अस्सी घाट के निकट भदैनी घाट, चेतसिंह घाट, हनुमान घाट के अलावा सिंधिया, पंचगंगा और राजघाट के नीचे कटान से खतरनाक गहराई साफ दिख रही है. प्रभुघाट, चौकी घाट, मानमंदिर, मणिकर्णिका और पंचगंगा घाटों पर सीढ़ियों एवं प्लेटफार्म के एक हिस्से में धंसाव भी शुरू हो गया है. भदैनी घाट के खोखला होने से खतरा स्पष्ट दिख रहा है. उधर, मीरघाट और मणिकर्णिका घाट के कुछ हिस्सों की दीवारों पर दरारें भी देखी जा सकती हैं.

घाट के किनारे प्लेटफार्म के एक हिस्से में धंसाव

(फोटो- क्विंट हिंदी)

जाने-माने नदी वैज्ञानिक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने बताया कि समय रहते प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो गंगा किनारे बने मंदिर, होटल और अन्य धरोहर जमींदोज होते देर नहीं लगेगी.

उन्होंने कहा,

जिस समय गंगा में पानी कम हो जाता है, उस दौरान घाटों की जांच नहीं कराई गई. जो घाट लंबे समय से कटते चले आ रहे हैं, उनका वैज्ञानिक तरीके से सूक्ष्मता से जांच कराना आवश्यक है. गंगा वाराणसी में अपने पूरब की ओर बालू को डिपॉजिट करती है, इससे उस इलाके में सेंड आईलैंड बन गया है. इसको किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता है. जब गंगा के दाहिनी ओर सेंड आईलैंड होगा तो सीधे-सीधे पानी का दबाव घाटों की तरफ हो जाएगा.

सुझाव देते हुए प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने कहा की गर्मी के मौसम (मई और जून) में जब गंगा का जल तल नीचे चला जाता है और गंगा घाटों से दूर हो जाती हैं, उसी समय घाटों का निरीक्षण होना चाहिए और जिन घाटों के टूटने का डर है उनकी रिपेयरिंग भी कराई जानी चाहिए. अगर घाटों का दोबारा निरीक्षण शुरू नहीं हुआ तो घाट के किनारे बने बड़े होटल, मंदिर ध्वस्त होने के कगार पर होंगे.

सरकार को चाहिए कि गंगा के घाटों का सूक्ष्म निरीक्षण करने के लिए नदी विज्ञानी और इससे जुड़े लोगों की टीम बनाए. जो सभी घाटों का सूक्ष्मता से अध्ययन करें. जिन घाटों के नीचे की जमीन पोपल हो गईं हैं या जो टूटने और गिरने के कगार पर हैं, उसको सूचीबद्ध कर समय रहते बोल्डर डालकर या सीमेंट से मरम्मत कराकर आने वाली दुर्घटना से बचाव किया जा सकता है.

घाटों पर टूटती सीढ़ी

(फोटो- क्विंट हिंदी)

"टेंट सिटी बसाने और क्रूज चलाने से संरक्षित नहीं होंगे काशी के घाट"

संकट मोचन फाउंडेशन के चेयरमैन और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा ने कहा कि काशी में गंगा घाट दरक और धंस रहे हैं यह कोई नई बात नहीं है. यह प्राचीन काल से चला आ रहा है. घाटों के धंसने का कारण गंगा का वाराणसी में अर्ध चंद्राकार स्वरूप है. इस कारण पानी का फ्लो घाटों की तरफ अधिक रहता है.

प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा ने बताया,

सन 1970-75 के दशक में पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस दौरान मिर्जापुर जिले के चुनार से बड़े-बड़े बोल्डर मंगाकर अस्सी, हरिश्चंद्र समेत अन्य घाटों को सुरक्षित और संरक्षित किया गया था. शहरों में जगह-जगह सीवरेज सिस्टम ब्लॉक हो गया है, इस कारण पानी अंदर-अंदर ही रिस रहा है. शहर के अंदर भी सड़कों के धंसने की कई घटनाएं हाल ही में दिखाई दी हैं. यह भी उसी का एक नमूना है. प्रशासन ने पानी का रास्ता जगह-जगह रोक दिया है जिसके कारण यह दिक्कत हो रही है.

प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा बताते हैं कि राजेंद्र प्रसाद घाट पर जो घटना हुई इसी की बानगी है. सरकार पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "टेंट सिटी बसाने से और क्रूज चलाने से घाटों का समाधान होना नहीं होने वाला है".

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प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा कहते हैं, "घाट आखिरकार क्यों धंस रहे हैं. इस पर प्रशासन को काम करना चाहिए. राजेंद्र प्रसाद घाट पर कुछ महीने पहले ही कॉस्मेटिक वर्क कराया गया था. उस दौरान क्या एहतियात बरते गए थे, यह तो काम करने और कराने वाला जाने. लेकिन 50 साल पहले जो उपाय हुए थे, उसके बाद इसके लिए कोई काम नहीं किया गया. जिसकी मार अब काशी के घाट झेल रहे हैं."

31 दिसंबर को घाट धंसने के बाद मामले ने पकड़ा तूल

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट और शीतला घाट के बीच बीते 31 दिसंबर की शाम गंगा आरती के बाद अचानक घाट धंस गया था. भीड़ इतनी थी कि शोरगुल सुननेवालों को लगा कोई बड़ी अनहोनी हो गई है. आला अधिकारियों ने तत्काल मौके पर जाकर जायजा लिया. घाट की मरम्मत कराकर सब कुछ सामान्य कर दिया गया.

घाट पर धंसाव

(फोटो- क्विंट हिंदी)

बालू खनन पर रोक और कछुआ सेंचुरी से हुआ घाटों को नुकसान

गंगा नदी पर लगातार पांच दशक से रिसर्च करने वाले और गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का कहना है कि इस बात को वे बीते कई सालों से कह रहे हैं कि गंगा नदी के दूसरे छोर पर बालू खनन पर लगी रोक और पूर्व में कछुआ सेंचुरी बनाए जाने के निर्णय ने गंगा घाटों को बहुत बड़ा नुकसा पहुंचाया है.

कछुआ सेंचुरी बनने की वजह से गंगा घाट पर बालू के बढ़ रहे टीले की वजह से पानी का लोड बढ़ता चला गया. हालांकि अब कछुआ सेंचुरी को हटा दिया गया है. लेकिन, पूर्व की हुई गलतियों ने गंगा के तेज वेग की वजह से घाटों को नुकसान पहुंचा दिया है. घाट खोखले हो चुके हैं, जिसका असर साफतौर पर देखने को मिल रहा है.

प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान समय में रेत पर सिटी बसाई जा रही है, जो कुछ समय के लिए ही है. बारिश से पहले इसे हटा दिया जाएगा. लेकिन, गंगा का जो पूर्वी छोर है, जहां बालू पैदा होता है और बालू जमा होता है, वहां हर साल बालू खनन करना जरूरी है. क्योंकि, बालू बढ़ता जाएगा और गंगा का दबाव उधर से खिसककर शहर की तरफ आता जाएगा. इससे गंगा घाट लगातार प्रभावित होंगे. इसे लेकर अब तक कोई सर्वे भी नहीं हुआ है, जो निश्चित तौर पर जरूरी है.

इनपुट- चंदन पांडेय

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