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महिला और बाल सुरक्षा किसी भी सरकार के लिए कानून व्यवस्था के लिहाज से सबसे संवेदनशील मुद्दा होता है. चाहे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में इस समय योगी सरकार हो या पूर्ववर्ती सरकारें, महिला और बाल सुरक्षा के बिगड़े हालात से कई बार तीखी आलोचनाओं का शिकार हुई हैं. योगी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्नाव और हाथरस में हुए महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों से बिगड़ते कानून व्यवस्था का ज्वलनशील मुद्दा एक बार फिर उभर कर सामने आया था.
जहां इन अपराधों को रोकने के लिए योगी सरकार कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने का दावा कर रही है वहीं दूसरी तरफ महिलाओं और बाल अपराध के मुकदमों में अभियुक्तों को कड़ी सजा दिलाने के लिए पुलिस और अभियोजन के बीच बेहतर तालमेल और सामंजस्य बिठाने की कोशिश की जा रही है.
अधिकारियों की मानें तो महिला और बाल अपराध जैसे संवेदनशील मुकदमों में कई बार ऐसा देखा गया कि लचर पैरवी की वजह से या तो केस कई साल तक अदालत में लंबित रहते हैं या उसमें साक्ष्य ना मिलने की वजह से अभियुक्त को कड़ी सजा नहीं मिल पाती थी. बदहाल स्थिति को बदलने के लिए सरकार ने जिले की पुलिस और सरकारी अभियोजन के साथ समन्वय मीटिंग शुरू की जिसके सार्थक नतीजे देखने को मिले.
सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों की अगर बात करें तो-
अपनी पीठ थपथपाते हुए सरकार ने दावा किया है कि जनवरी 2020 से लेकर नवंबर 2021 तक भारतीय दंड विधान के अंतर्गत दर्ज 1,58,864 और अन्य अधिनियम में दर्ज 6,93,443 मुकदमों में निर्णय सुनाया गया है.
इनमें पोक्सो अधिनियम के 1619 मामलों में, गैंगस्टर एक्ट के 1414 मामलों में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के 1613 मामलों में, बलात्कार के 503 मामलों में सजा सुनाई गई है.
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