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उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं को लेकर एक ऐसा बयान दिया, जिसकी चर्चा पूरे देशभर में हुई. उन्होंने कहा कि फटी हुई जींस पहनने वाली महिलाएं क्या संस्कार देंगी. मुख्यमंत्री बनते ही सीएम ने जिस तरह से महिलाओं की फटी जींस का जिक्र किया उससे उनके प्राथमिकताओं के बारे में थोड़ा अंदाजा लगा. लेकिन सीएम साहब अगर राज्य में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध, उनकी शिक्षा, सेहत पर नजर डालें तो शायद प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करेंगे.
उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों को केंद्र सरकार ने 2019 में खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था. इसका खूब जोर शोर से प्रचार भी हुआ था. लेकिन जनवरी 2019 में डाली गई एक आरटीआई में ये खुलासा हुआ कि उत्तराखंड खुले में शौच से मुक्त नहीं हुआ. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में इस आरटीआई का जिक्र किया गया है. जिसमें बताया गया है कि तब तक करीब 65 हजार से भी ज्यादा लोगों के घरों में शौचालय की सुविधा नहीं थी.
2019 में इस आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया था कि आगे 1300 सार्वजनिक शौचालय भी बनाए जाने हैं. ये आरटीआई हल्द्वानी के एक आरटीआई कार्यकर्ता की तरफ से डाली गई थी. आरटीआई में बताया गया था कि उधमसिंह नगर जिले में 17 हजार से भी ज्यादा शौचालय बनाए जाने बाकी हैं, जबकि हरिद्वार में 8 हजार से भी ज्यादा शौचालय बनाए जाने थे. इसी तरह पौड़ी, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, चंपावत, बागेश्वर और राजधानी देहरादून में भी शौचालय बनाए जाने की बात कही गई थी.
राज्य में पिछले कुछ सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ा है. एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक उत्तराखंड में महिलाओं के प्रति अपराध एक ही साल में 44 फीसदी तक बढ़ गया.
इसके अलावा हमें एक और डेटा मिला. जिसमें उत्तराखंड में रहने वाली महिलाओं की हालत को दिखाया गया है. जब पूरे देशभर में कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लगा तो उत्तराखंड ऐसा राज्य था जहां सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा के केस दर्ज किए गए. नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (NALSA) की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ. ये डेटा दो महीने के लॉकडाउन का था. इस रिपोर्ट के मुताबिक दो महीने में उत्तराखंड में कुल 144 घरेलू हिंसा के केस दर्ज हुए. इसके बाद हरियाणा दूसरे और दिल्ली तीसरे नंबर पर था.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया था कि 15 से लेकर 24 साल की महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीनिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं करती हैं. साथ ही ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि कई जिलों में आधी से ज्यादा महिलाएं घर पर ही बच्चे को जन्म देती हैं. इस दौरान कोई भी डॉक्टर या फिर जानकार वहां मौजूद नहीं होता है.
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में स्वास्थ्य के अलावा शिक्षा भी हमेशा एक बहस का मुद्दा होता है. भले ही कागजों में शिक्षा दिख जाती है, लेकिन इसका स्तर लगातार गिरता जा रहा है. अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य के अभाव में ही लगातार राज्य से पलायन हो रहा है. उत्तराखंड में एवरेज साक्षरता दर 76.31 फीसदी है. वहीं पुरुषों की साक्षरता दर कुल 86.62 फीसदी है. लेकिन महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे हैं. उत्तराखंड में महिला साक्षरता दर सिर्फ 66.16 फीसदी है.
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