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चुनावी रैलियों से लेकर सभाओं तक में, नेताओं की आक्रामक बयानबाजी देखने को मिलती है. प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और सांसद कई ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें संसद के अंदर इस्तेमाल करने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं होती है. संसद की गरिमा को बनाए रखने के लिए कुछ शब्दों का इस्तेमाल गलत है और सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि कुछ एक्सप्रेशन का इस्तेमाल भी संसद के अंदर नहीं किया जा सकता. पीएम मोदी के एक ऐसी ही शब्द को 7 फरवरी को संसद की कार्यवाही से निकाल दिया गया.
एक सांसद जो कुछ भी कहता है वो संसद के अनुशासन, सदस्यों की समझ और अध्यक्ष के कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन है. ये जांच ये सुनिश्चित करती है कि सांसद, सदन के अंदर 'अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्द' का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
नियम 381 के मुताबिक, 'सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे मार्क किया जाएगा और कार्यवाही में एक फुटनोट इस तरह से डाला जाएगा: 'अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक हटाया गया'
इंग्लिश समेत दूसरी भारतीय भाषाओं में कई ऐसे शब्द हैं, जो 'असंसदीय' माने जाते हैं. लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा अध्यक्ष का काम सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड से इन शब्दों को दूर रखना होता है.
इस लिस्ट में कई शब्द और एक्सप्रेशन्स शामिल हैं, जिन्हें जहां तक है, अधिकतर संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाएगा. हालांकि, इसमें वो शब्द भी हैं, जिनके बारे में सोचा जा सकता है कि ये ज्यादा नुकसानदायक नहीं हैं.
देश की विधानसभाओं और विधान परिषद भी इसी किताब के नियम से चलते हैं.
इस किताब को सबसे पहले 1999 में तैयार किया गया था. लोकसभा महासचिव जीसी मल्होत्रा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, किताब तैयार करते वक्त, स्वतंत्रता से पहले केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, प्रोविजनल संसद, पहली से दसवीं लोकसभा और राज्यसभा, राज्य विधानसभा और कॉमनवेल्थ संसदों की बहसों से वो संदर्भ लिए गए थे, जिन्हें असंसदीय घोषित किया गया था. मल्होत्रा किताब की 2004 एडिशन के एडिटोरियल बोर्ड के चीफ थे.
जिन शब्दों को अससंदीय करार दिया गया है, वो हैं 'शिट', 'बदमाशी', 'स्कमबैग' और 'बंदीकूट', जिसे अगर कोई सांसद किसी और के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे असंसदीय माना जाएगा, लेकिन अगर वो अपने लिए करता है तो ये चल सकता है.
सरकार या कोई दूसरे सांसद पर 'झांसा' देने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. रिश्वत, रिश्वतखोरी, ब्लैकमेल, डकैत, चोर, डैम (damn), डार्लिंग... ये सभी असंसदीय माने जाते हैं.
सांसदों या जो सदन की अध्यक्षता कर रहा है उसपर 'दोहरे दिमाग', 'डबल स्टैंडर्ड', 'आलसी', 'घटिया' या 'उपद्रव' होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. एक सांसद को 'कट्टरपंथी एक्सट्रीमिस्ट' या 'डाकू' नहीं कहा जा सकता है. सरकार को 'अंधी-गूंगी' नहीं कहा जा सकता, और न ही उसके लिए 'अली बाबा और 40 चोर' का इस्तेमाल किया जा सकता है. अनपढ़ सांसद के लिए 'अंगूठा छाप' जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. किसी सांसद/सदस्य को 'अजायबघर' भेजने की सलाह देना भी अससंदीय है.
( इनपुट: इंडियन एक्सप्रेस )
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