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वॉट्सऐप जासूसी कांड को लेकर पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने द क्विंट को बताया कि उन्हें पता है कि इजरायल की टेक फर्म NSO भारत में काम कर रही है. उन्होंने दावा किया कि इस कंपनी ने देश में प्राइवेट फर्मों और व्यक्तियों को स्पाइवेयर बेचा है.
वॉट्सऐप की तरफ से इस बात की पुष्टि करने के बाद की एनएसओ के बनाए पैगेसस स्पाइवेयर का इस्तेमाल दुनियाभर के 1400 लोगों की जासूसी करने के लिए किया गया, जिसमें भारत के भी दर्जनभर एक्टिविस्ट, वकील, पत्रकार शामिल हैं. एनएसओ ने क्विंट को बताया, ‘‘एनएसओ का मुख्य काम सरकार की ओर से अधिकृत इंटेलिजेंस एजेंसियों और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसियों को टेक्नोलॉजी मुहैया कराना है.’’
तो क्या भारत सरकार ने भी भारतीय नागरिकों की निगरानी करने के लिए एनएसओ से पैगेसस खरीदा? क्या इसे कानूनी निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, और ये काम कैसे करेगा?
पिल्लई बताते हैं कि उनके कार्यकाल (2009-2011) के दौरान, केंद्र सरकार की ओर से लगभग 4 हजार से 8 हजार लोगों और संस्थाओं की निगरानी की गई थी. जीके पिल्लई उस वक्त गृह सचिव नियुक्त किए गए थे, जब यूपीए-2 की सरकार में पी चिदंबरम गृह मंत्री थे.
निगरानी के लिए होने वाले प्रोटोकॉल पर विस्तार से बताते हुए पिल्लई कहते हैं,
पिल्लई ने ये भी बताया कि सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं है जो निगरानी करवा सकती है. राज्य सरकारें भी ऐसा करती हैं. ‘‘उदाहरण के तौर पर अगर महाराष्ट्र सरकार को लगता है कि उनको कोई खतरा है तो उनकी एजेंसियां इस तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर लोगों की निगरानी कर सकती हैं.’’
साइबर लॉ एक्सपर्ट रमन जीत चीमा कहते हैं कि अगर सरकार को एनएसओ जैसे स्पाइवेयर के बारे में पता था कि वो भारत में काम कर रहे हैं, तो ये देखना जरूरी हो जाता है कि उनके क्रियाकलापों को सुपरवाइज करने के लिए क्या कदम उठाए गए या किसी की निजता का हनन न हो, इसे कैसे सुनिश्चित किया गया.
एक पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी ने क्विंट को बताया कि ये इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सरकारें ऐसी स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर खरीदने के बाद थर्ड पार्टी को दे देती हैं. बाद में वो थर्ड पार्टी लोगों की निगरानी करती है और सरकारों को जानकारी मुहैया कराती है.
चीमा ने कहा कि निगरानी उपकरणों की बिक्री पर सरकारी प्रतिबंध होना चाहिए, जो पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ हुई घटनाओं के परिणामस्वरूप हुआ.
चीमा आगे ये भी सवाल उठाते हैं कि, ‘‘क्या कभी केंद्रीय गृह सचिव को ऐसा लगा कि राज्यों से पूछा जाए कि वो क्या कर रहे हैं? और अगर ऐसा किया भी तब भी जवाबदेही केंद्र सरकार की ही है.’’
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