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पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई जल्द राज्यसभा के सदस्य के तौर पर शपथ ले सकते हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें इसके लिए नामित किया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के कुछ पूर्व जजों और कानूनविदों ने गोगोई को राज्यसभा भेजने की आलोचना की है. उनका कहना है कि इस तरह के पद पर रहने के बाद उन्हें इस तरह का लाभ का कोई पद नहीं लेना चाहिए था. खुद गोगोई ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा था कि रिटायरमेंट के बाद इस तरह की नियुक्ति न्यायपालिका की आजादी पर एक धब्बा है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक जस्टिस गोगोई ने यह टिप्पणी 27 मार्च,2019 को पांच जजों की संवैधानिक बेंच की ओर से सुने जा रहे एक मामले के दौरान की थी. यह मामला देश में ट्रिब्यूनल के कामकाज को लेकर फाइनेंस एक्ट में बदलाव को चैलेंज करने से जुड़ा था.
जब सीनियर वकील अरविंद दातार ने विशेष ट्रिब्यूनलों के हेड के तौर पर पूर्व जजों को नियुक्त करने का मुद्दा उठाया तो जस्टिस गोगोई ने कहा कि क्या आप यह कहना चाहते हैं कानून में चेयरपर्सन को कोई दूसरा असाइनेंट लेने की मनाही है? क्या यह कुछ ऐसा ही है जैसा कि राज्यों में लोकपाल के मामले में होता है, जहां पद छोड़ने के बाद आप पांच साल तक किसी सार्वजनिक दफ्तर का कोई पद नहीं ले सकते. उन्होंने कहा था
इस पर दातार ने कहा कि यह एक नजरिया हो सकता है लेकिन कानून इस तरह की नियुक्ति से नहीं रोकता. इस पर गोगोई ने कहा कि यह (मेरा) काफी मजबूत नजरिया है.
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई का राज्यसभा के नामांकन ने खासा विवाद खड़ा कर दिया है. इसने न्यायपालिका की आजादी पर एक नई बहस छेड़ दी है. अब सवाल उठाया जाने लगा है कि क्या जजों को रिटायरमेंट के बाद सरकार की ओर से ऑफर किए जाने वाले पद स्वीकार करने चाहिए. गोगोई ने इस सवाल पर चुप्पी साधी हुई है. दो साल पहले तीसरे रामनाथ गोयनका मेमोरियल लेक्चर में गोगोई ने न्यायपालिका के महत्व पर जोर देते हुए कहा था कि इसमें छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. न्यायपालिका को स्वतंत्र रहना चाहिए.
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