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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत होने को पाकिस्तान अपनी जीत बता रहा है. पाकिस्तान का कहना है कि भारत इसे अंदरूनी मामला बताता है लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर बातचीत होना भारत की हार है. लेकिन क्या इस दावे में दम है? क्या वाकई कश्मीर पर भारत की स्थिति में कोई बदलाव आया है?
इस बारे में यूएन में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन से भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल पूछे गए. एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार ने पूछा कि अब जब कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर UN में बातचीत हो रही है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि कश्मीर सिर्फ द्विपक्षीय मामला है.
पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर औपचारिक बातचीत चाहता था. लेकिन सुरक्षा परिषद में देशों का साथ न मिलने के कारण ऐसा नहीं हो पाया. आखिर में चीन बंद दरवाजों के पीछे होने वाली मीटिंग का प्रस्ताव लाया. कोई भी स्थायी सदस्य ऐसा कर सकता है. लेकिन ऐसी मीटिंग का न तो ब्योरा पब्लिक किया जाता है, न ही इनकी रिकॉर्डिंग होती है.
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चार ने भारत को समर्थन दिया. रूस ने तो मीटिंग के बाद खुलकर कहा कि कश्मीर केवल द्विपक्षीय मामला है.
इकनॉमिक टाइम्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि अमेरिका ने कश्मीर को भारत का आतंरिक मामला बताया. वहीं फ्रांस के भी चीन से मामले पर विचार को लेकर मतभेद रहे. चीन जहां बातचीत को पूरी तरह कश्मीर आधारित करना चाहता था. वहीं फ्रांस इसे निचले दर्जे पर 'अन्य मामले' में रखना चाहता था.
यहां तक चीन ने भी मीटिंग के बाद दिए स्टेटमेंट में खुलकर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया. चीन ने दोनों देशों से शांति की अपील करते हुए कहा, 'भारत और पाकिस्तान में किसी को भी एकतरफा कदम नहीं उठाना चाहिए.' मतलब साफ है कि चीन ने एक हद से ज्यादा न तो भारत से बैर लिया, न पाकिस्तान से दोस्ती निभाई.
बैठक से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से कश्मीर मुद्दे को लेकर फोन पर बातचीत की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने इमरान खान से कहा कि वह भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत के जरिए कश्मीर मुद्दे को सुलझाएं.
बैठक के बाद व्हाइट हाउस के उप प्रेस सचिव होगान गिडले ने एक बयान में कहा, ‘‘राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जम्मू-कश्मीर में हालात के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता के जरिए तनाव कम करने पर जोर दिया.’’
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