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राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उपसभापति हरिवंश नारायण के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को 21 सितंबर को खारिज कर दिया. नायडू का कहना था कि प्रस्ताव सही प्रारूप में नहीं था. ये अविश्वास प्रस्ताव 12 विपक्षी दलों के सांसदों ने पेश किया था.
इस बीच राज्यसभा में हंगामे के बाद 21 सितंबर को 8 विपक्षी सांसदों को सभापति वैंकेया नायडू ने सस्पेंड भी कर दिया.
आसान भाषा में आपको किसी इंसान पर, उसके काम पर विश्वास नहीं, तो आप उसे पद से हटाने के लिए जो प्रस्ताव पेश करते हैं, वो अविश्वास प्रस्ताव है. राज्यसभा के सभापति की गैरमौजूदगी में सदन की अध्यक्षता करने वाले उपसभापति को हटाने के लिए भी अविश्वास प्रस्ताव दिया जाता है. राज्यसभा सदस्यों के उपसभापति के काम और काबिलियत को लेकर अगर अविश्वास जैसी स्थिति बनती है, तो इसी प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें हटाया जाता है.
उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से 14 दिन पहले ही सदन को सूचित करना अनिवार्य होता है.
एक और गौर करने वाली बात ये है कि उपसभापति को हटाने का प्रस्ताव जब तक विचाराधीन हो, तब तक वो सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं ले सकता.
हरिवंश नारायण सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने नामंजूर कर दिया है. नायडू के मुताबिक, प्रस्ताव उचित प्रारूप में नहीं था और 14 दिन पूर्व सूचित करने वाले नियम का भी पालन नहीं किया गया था. सभापति ने कहा कि अनुच्छेद 90 के तहत ये प्रस्ताव अस्वीकार्य है.
अनुच्छेद 90 में उपसभापति को हटाने और छुट्टी पर भेजने की प्रक्रिया दी गई है. इसी प्रक्रिया के हवाले से वेंकैया नायडू ने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.
ये सब विवाद राज्यसभा में कृषि संबंधित बिलों पर वोटिंग से शुरू हुआ था. विपक्ष के सदस्यों पर माइक तोड़ने और टेबल पर चढ़ने का आरोप लगा. राज्यसभा टीवी का प्रसारण भी रोका गया और विपक्ष के सदस्यों को मार्शलों ने सदन से बाहर किया. बिल ध्वनिमत से पास कर दिया गया, जिसके बाद विपक्षी नेताओं ने संसद के बाहर धरना दिया.
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