Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जम्मू-कश्मीर के समलैंगिकों को आखिर कब मिलेगी धारा 377 से आजादी?

जम्मू-कश्मीर के समलैंगिकों को आखिर कब मिलेगी धारा 377 से आजादी?

जम्मू-कश्मीर में लागू होता है रणबीर पैनल कोड

प्रसन्न प्रांजल
भारत
Updated:
जम्मू के लिए अलग है नियम
i
जम्मू के लिए अलग है नियम
(फोटोः द क्विंट)

advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सहमति से समलैंगिक सेक्स को अपराध की कैटेगरी से हटा दिया है. कोर्ट के इस फैसले से देश के एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों में खुशी का माहौल है.

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला अब देश के सभी जगहों पर लागू हो गया है. लेकिन जम्मू-कश्मीर के समलैंगिकों को अब भी इंतजार करना पड़ेगा. जम्मू के एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के लिए सहमति से समलैंगिक सेक्स अब भी अपराध बना हुआ है.

क्या है कारण

भारतीय संविधान की धारा 370 के मुताबिक, जम्मू कश्मीर राज्य में इंडियन पैनल कोड (आईपीसी) लागू नहीं होती. यहां केवल रणबीर पैनल कोड (आरपीसी) का इस्तेमाल होता है. आरपीसी में भी धारा 377 का प्रावधान है और इसके तहत समलैंगिक सेक्स अपराध है. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से भी घाटी के एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को कोई फायदा नहीं मिलेगा.

धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला(फोटो: ट्टिटर)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

जम्मू के लिए अलग है नियम

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता हासिल है. इसके तहत, संविधान में केंद्र को मिले अधिकारों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में तभी हो सकेगा, जब वहां की संविधान सभा उसकी इजाजत देगी.

जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में रक्षा, विदेश और संचार के मामलों को छोड़ कर अन्य मामलों में कोई भी फैसला लेने से पहले केंद्र को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा से मंजूरी लेनी होगी.

घाटी के समलैंगिकों को कब मिलेगी आजादी

आमतौर राज्य के दोनों पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. दोनों अक्सर हर मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर उन दोनों में से किसी ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है. घाटी की धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल भी बाकी राज्यों से अलग है. ऐसे में यहां पर इस कानून का इतनी आसानी से खत्म होना आसान नहीं लगता. वहां पर इसके लिए जम्मू-कश्मीर के संविधान और कानून में भी बदलाव करना पड़ेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 07 Sep 2018,01:36 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT