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(ये स्टोरी द क्विंट के स्पेशल प्रोजेक्ट 'झारखंड की डायन' का दूसरा भाग है. इसका पहला भाग आप यहां पढ़ सकते है. इसके तहत हम झारखंड के अंदरुनी इलाकों में जा कर पता लगाने कि कोशिश कर रहे हैं कि झारखंड की महिलाओं को आज भी 'डायन' क्यों कहा जा रहा है? क्या ये केवल अंधविश्वास है, या उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखने का एक हथियार?)
"उस रात एक एक करके पांच महिलाओं की हत्या कर दी "करीब' 57 साल के सिबी खलखो द क्विंट को यह बताते हुए अचानक से कहीं खो से गए. कुछ मिनट की चुप्पी को तोड़ते हुए सिबी कहते हैं कि, "मेरे घर से मेरी मां और बहन दोनों को पहले तो डायन बोला और फिर मार डाला".
सिबी झारखंड की राजधानी रांची से महज 30 कि.मी. दूर बसे कंजिया मरइटोली नाम के गांव में रहते हैं.
झारखंड की 'डायन' की खोज में द क्विंट की टीम पहुंची, कंजिया मरइटोली नाम के गांव में. ये समझने का प्रयास किया कि आखिर उस रात क्या हुआ था, कैसे एक ही गांव की पांच महिलाएं अपने ही गांव के लिए डायन बन गईं, उनके साथ उनके ही रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने मारपीट की, उनके कपड़े फाड़े, और उसके सिर पत्थरों से कुचलकर हत्या कर दी.
शराबखोरी के खिलाफ बेबाक बोलने वाली महिलाएं रास नहीं आ रहीं थीं कहानी की शुरुआत होती है गांव की कुछ महिलाओं द्वारा बच्चों में फैलती जा रही नशाखोरी की आदत के खिलाफ आवाज उठाने से. गांव की ही मंजू खलखो, जिन्होंने अभी पढ़ाई पूरी की है और आगे चलकर शिक्षक बनना चाहती हैं उन्होंने सकुचाते हुए बताया कि रिश्ते में उनकी बड़ी मम्मी जसिंता और एक पड़ोसी मदनी दोनों लोग खुलकर अपनी बात बोलती थीं.
शाम के 4 बजते ही मंजू अपने घर के सामने चटाई बिछाकर गांव के बच्चों को पढ़ाने में जुट जाती हैं. मंजू कहती हैं कि गांव की कुछ और महिलाएं भी बच्चों की पढ़ाई पर जोर देती थी और कुछ अच्छा करने के लिए भी प्रेरणा देती थी. मतलब जिस उम्र के लोग उनको मिलते थे उनके अच्छी सीख देती थीं.
आमतौर पर किसी समुदाय में कोई बच्चों की पढ़ाई की वकालत करे और उन्हें शराबखोरी और नशे से दूर रहने को प्रेरित करे तो उस व्यक्ति का सम्मान होता है लेकिन कंजिया गांव में इसके ठीक उल्टा हुआ.
जसिंता और मदनी अपने रोजमर्रा के जीवन में लगी रहीं लेकिन धीरे धीरे गांव के लोगों ने उन पर डायन होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया.
मदनी खलखो के बेटे करमदेव खलखो बताते हैं कि उनकी मां के अन्य ग्रामीणों से वैसे ही आम रिश्ते थे जैसे बाकी लोगों के थे लेकिन फिर अचानक से उन पर डायन होने के आरोप लगने लगे.
8 अगस्त की घटना को याद करते हुए करमदेव ने बताया कि, "हम सब लोग सो चुके थे. मैं उस दिन रांची तक घूम कर आया था. अपने दोस्तों के साथ तो आते ही सो गया था. जब गांव वाले आये तब लगभग रात के 12 बज रहे थे. मेरे मम्मी और पापा बगल के कमरे में सोए हुए थे. अचानक से दरवाजा तोड़ने की आवाज आई और वो लोग दरवाजे की कुण्डी तोड़ के घुसे और मां को खींच के मारते-पीटते ले गए"
जिस वक्त कंजिया के ग्रामीण मदनी खलखो को घसीट कर मारते हुए ले जा रहे थे उस वक्त घर में उनकी बहू और करमदेव की पत्नी उषा खलखो और उनके चार बच्चे भी मौजूद थे. उषा ने हमें बताया कि लगभग 100-150 लोग उनके घर के सामने इकट्ठे हो गए थे. सबके हाथों में लाठी डंडे थे और सबकी आंखों में खून दिख रहा था.
उषा आगे कहती हैं कि उन्होंने भीड़ का पीछा किया और गांव के ही मुख्य स्थान जिसे अखाड़ा कहा जाता है वहां पहुंची.
"मैं अकेले ही गयी थी, मेरा बेटा उस वक़्त 5 महीने का था. मैं अकेले गयी थी जो कुछ हुआ था सब देखा मैंने पूरा. मेरे पति और ससुर नहीं गए थे. वहां पर तीन महिलाओं को पहले ही मार दिया था. यहां से तो मां के पैर को पकड़कर घसीटकर, मारते हुए ले गए थे. फिर वहां पहुंचे तो मां के कपड़े फाड़ दिए थे और उसके बाद में एक बड़े पत्थर से सबका सर कुचल दिए थे."
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में पांच महिलाओं की हत्या कर दी गई?
हमारे इस सवाल का जवाब दिया करमदेव खलखो ने. करमदेव कहते हैं कि
घटना के पहले के कुछ हफ्तों के बारे में जब हमने पूछा तो करमदेव ने बताया कि 2015 में जब बिपिन खलखो की तबियत खराब हुई तो उसे डॉक्टरों के पास न ली जाकर उसके घरवाले झाड़ फूंक करने वालों के पास लेकर गए थे.
"ऐसे ही रोपाई का सीजन था जब गांव में एक लड़के बिपिन खलखो की तबियत खराब हुई थी. उसको न तो डॉक्टर को दिखाया गया न ही अस्पताल ले जाया गया. हालत बिगड़ने लगे और उसकी मृत्यु हो गयी. उसके बाद गांव वाले एतवरिया नाम की एक औरत पर डायन बिसाही का आरोप लगाए थे. वो लोग बोले कि ये ऐसा की वैसा की इस तरह की बातें हमें भी सुनने को मिली थी. उसके तीन चार दिन बाद में गांव वालों ने योजना बनाई और और डायरेक्ट रात में ये सब कर दिया," करमदेव.
करमदेव खलखो ने ही हमें मारी गई दो अन्य महिलाओं जो आपस में मां बेटी थे रकिया और तितरी के घर लेकर गए. जहां हमारी मुलाकात हुई रकिया के बेटे और तितरी के भाई सिबी खलखो और जोहान उरांव से.
रास्ते में जाते जाते करमदेव कहते हैं कि "कोई ऐसा नहीं सोचा था होगा कि इस गांव में ऐसी घटना होगी". बहरहाल करमदेव खलखो ने अचानक से बातचीत करते हुए सिबी खलखो को आवाज लगाई… "काका ओ काका, कहां गया सब, काका…
"गांव के नौजवानों को शराब पिलाकर मस्त रखा था", रकिया के बेटे, अंधविश्वास या इरादतन हत्या
गांव के मुहाने पर शुरुआत से पांचवें नंबर के घर में हमारी मुलाकात हुई सिबी खलखो और जोहान उरांव से. आदिवासी इलाकों में अक्सर बाहरी व्यक्ति से खुलकर बात करने में लोग सकुचाते हैं लेकिन कुछ मान मनौव्वल के बाद जोहान उरांव बातचीत के लिए तैयार हुए.
जब हमने उस रात की घटनाक्रम के बारे में पूछा तो जोहान कहते हैं कि "हम तो समझ भी नहीं पाए थे कि क्या हुआ. दिन भर गांव में सबकी अच्छे से बातचीत हुई. शाम को मैं खेत चला गया था, खेत से लौटा तब तक में गांव के लोगों ने शराब पीना शुरू कर दिया था. रात भर नौजवान लड़कों को भी खिला-पिलाकर, नशा कराके मस्त रखा था. उसके बाद में नशे में ही वो लोग मर्डर करने निकले थे".
जोहान ने आगे बताया कि गांव में डायन बिसाही की खुसुर पुसुर चालू थी लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि मामला इतना बड़ा और बिगड़ जाएगा. यह कहकर जोहान कुछ सोचने लगे. जोहान ने बताया कि उनकी मां रकिया और बहन तितरी को ग्रामीणों ने उनकी आंखों के सामने घरों से घसीट कर निकाला और मारपीट चालू कर दी. सिबी खलखो, रकिया के बेटे और तितरी के दूसरे भाई ने कहा कि जब गांव वाले आए तो वो सो रहे थे.
जब हमने पूछा कि क्या उन्होंने बचाव करने की कोशिश की थी तो जोहान कहते हैं कि इतनी बड़ी भीड़ के सामने वो लाचार थे. जोहान ने आगे बताया कि, "अंधविश्वास के चलते ही लोगों ने ओझा पर विश्वास किया. कुछ लोग गए थे ओझा के पास जिसने बताया कि फलानी महिला ने भूत बनके लड़के की किडनी निकाल ली है".
"शायद अपनी लाचारी पर हंसते हुए जोहान ने हमसे कहा कि ऐसा तो नहीं हो सकता है न ? सर मैं कितना भी मंत्र जानता होऊंगा तब भी आपकी किडनी तो नहीं निकाल सकता न उस मंत्र से ?"
द क्विंट ने अपने सफर में जब एक्सपर्ट्स और उन लोगों से बात की जो डायन प्रताड़ित महिलाओं के साथ लंबे अरसे काम कर रहे हैं तब ये बात निकल कर आई कि आदिवासी ग्रामीणों में फैले अंधविश्वास के साथ ही पुरुष प्रधान समाज में खुलकर अपनी बात रखने वाली महिलाओं को निशाना बनाया जाता है.
अजय जायसवाल, जो आशा एनजीओ के संचालक हैं और डायन पीड़ित महिलाओं के साथ दशकों से काम कर रहे हैं उन्होंने कहा कि, "कंजिया मरईटोली में हुई घटना में ये देखा गया था कि कुछ महिलाएं गांव में फैले नशे की लत के खिलाफ गांव में ही एक आंदोलन चला के रखी थी. उस दिन मारना एक-दो महिलाओं को था लेकिन जब भीड़ ने मारना चालु किया तो बाकी महिलाओं का भी नाम आया जिसके बाद उनको भी घरों से घसीट के लाठी डंडे से मार मार कर हत्या कर दी गयी थी".
झारखंड में हुई इस बर्बरता के बाद पुलिस ने 150 लोगों पर नामजद एफआईआर दर्ज की थी। पुलिस का कहना है कि इस मामले में चार्जशीट दायर की जा चुकी है और सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया था, हालांकि आज सभी लोगों को जमानत मिल चुकी है. पुलिस और प्रशासन की तमाम दावेदारियों के इतर झारखंड आज भी अंधविश्वास की आग में झुलस रहा है.
झारखंड में डायन प्रताड़ना के खिलाफ बना कानून भी बेअसर झारखंड में डायन प्रथा रोकथाम (DAAIN) अधिनियम, 2001 लागू तो है लेकिन झारखंड पुलिस की वेबसाइट पर मौजूद एक दस्तावेज में कहा गया है कि "…स्पष्ट रूप से अधिनियम के दंडात्मक प्रावधान महिलाओं को डायन बताने और उनका उत्पीड़न करने के लिए जिम्मेदार लोगों को डराने या दंडित करने के लिए अपर्याप्त हैं…"
दस्तावेज में आगे लिखा हुआ है कि, "हकीकत में, यह अधिनियम उन महिलाओं के लिए प्रभावी निवारक, उपचारात्मक, या दंडात्मक उपाय प्रदान करने में असमर्थ साबित हुआ है जिन्हें डायन करार दिया गया है…"
गांव में हमने बाकी दो महिलाओं के परिवार से भी मिलने का प्रयास किया लेकिन जसिंता के परिवार वाले अब कंजिया में नहीं रहते हैं और एतवारिया के घर पर ताला लगा हुआ मिला.
रकिया और तितरी का परिवार अब भी गमगीन, मदनी के बेटे ने कहा मां के बिना जीवन सूना"याद कैसे नहीं आएगी, गाय के बछड़ों को जब याद आती है तो हम तो इंसान हैं. हमें कैसे नहीं आएगी याद?" यह कहते हुए सिबी खलखो एक बार फिर उदास हो गए. सिबी ने बताया कि उनकी बहन तितरी सभी भाई बहनों में सबसे ज्यादा दुलारी थी.
"हमारे यहां तीसरे नंबर पर अगर लड़की होती है तो उसका नाम तितरी ही रखा जाता है. तितरी के पति की मृत्यु के बाद वो हमारे पास लौट आई थी. हम लोगों से बहुत प्यार करती थी," सिबी.
वहीं मदनी के बेटे करमदेव ने हमने घर के सामने पड़े हल को व्यवस्थित करते हुए कहा कि उनकी मां ने हमेशा मेहनत को तवज्जो दी थी. "मां लगभग पूरा दिन काम करती थी. पहले घर में फिर खेत में फिर खेत से लौटकर फिर घर में. हम लोग तो उन्हीं के सहारे जी रहे थे. आज 7-8 साल बाद भी जिंदगी पटरी पर लौटने को तैयार नहीं हैं. दिन गुजर जाता है लेकिन जिस शाम या जिस रात मां का ख्याल आता है उस रात फिर नींद नहीं आती."
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