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असम के तेज़पुर की रहने वाली 35 साल की मयूरी सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेनर और माहवारी स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर काम करती हैं. मयूरी ने 10 फरवरी, 2019 को डिजिटल मुहिम चलाने वाले प्लेटफॉर्म Change.org पर #DignityInDisasters हैशटैग के साथ पेटीशन शुरू कर के असम के बाढ़ राहत शिविरों में महिलाओं को पैड देने की मांग उठाई.
2 साल से अधिक लंबे अभियान, 1.3 लाख लोगों के समर्थन के बाद 29 मई, 2021 को उनकी पेटीशन को सफलता मिली. राज्य सरकार ने सैनिटरी पैड को आवश्यक वस्तु करार दिया, जिससे की बाढ़ राहत कैपों में दिए जाने वाले सामान में पैड भी दिया जा सके.
साल 2018 में मयूरी भट्टाचार्जी फील्डवर्क कर रही थीं, तभी उनका ध्यान बाढ़ राहत कैंपों की दयनीय स्थिति पर गया। ये कैंप महिलाओं के लिए किसी बुरे सपने की तरह थे. बाढ़ की मार झेल रही महिलाओं को टॉयलेट और पैड जैसी बेसिक सुविधाओं के लिए भी भटकना पड़ रहा था और इसके बावजूद पैड की पहुँच इन महिलाओं तक नहीं थी, इस दुर्दशा ने मयूरी को सैनेटरी पैड के लिए काम करने पर मजबूर कर दिया.
अपनी Change.org पेटीशन में मयूरी ने 15 साल की रीमा* की कहानी बताई है. बाढ़ ने रीमा को बेघर कर दिया था. बेघर होने पर उसे रहत कैंप का सहारा लेना पड़ा, जब वो बाढ़ राहत कैंप में आई तो उसकी समस्या और बढ़ गई। कैंप में माहवारी स्वास्थ्य से संबंधित कोई भी सुविधा नहीं थी. न तो सैनेटरी पैड की कोई व्यवस्था थी न सही स्थिति में टॉयलेट थे. रीमा को घंटों अपनी स्कर्ट में लगे खून के साथ बैठना पड़ा जबतक कि उन्हें एक कपड़े का टुकड़ा नहीं मिल गया.
मयूरी भट्टाचार्जी इस घटना पर कहती हैं,
मयूरी आगे कहती हैं
मयूरी भट्टाचार्जी की पेटीशन ने असम में सरकार को बाढ़ के दौरान राहत शिविरों में लड़कियों और महिलाओं की माहवारी से जुड़े स्वास्थ्य अधिकारों के प्रति जागरूक किया. 2 साल चले लंबे अभियान के दौरान उन्होंने राज्य की आपदा प्रबंधन एजेंसी को 300 इको पैड भी भिजवाए, जिसके बाद एजेंसी और आपदा प्रबंधन मंत्री की प्रतिक्रिया आई.
इस अभियान से सरकार का केवल ध्यान ही इस ओर नहीं आया बल्कि पर कार्रवाई भी की गई. इस अभियान के बाद सरकार ने न केवल पैड बल्कि पैड के कचरे के निदान के लिए इंसीनेरेटरों का टेंडर भी निकाला। इस मुद्दे से जुड़े तमाम स्टेकहोल्डर्स ने इस मुद्दे पर बदलाव के लिए मयूरी के अभियान 'डिग्निटी इन फ्लड' को श्रेय दिया। 2019 में बबेश कलिता, जो उस समय आपदा प्रबंधन राज्य मंत्री थे, ने उनकी पेटीशन पर प्रतिक्रिया देकर आश्वासन दिया कि वह इस मामले पर कदम उठाएंगे। दो साल और दो महीने बाद मयूरी की बदलाव की मांग को असम स्टेट डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (ADSMA) ने हकीकत में बदला और ज़रूरी फैसले लेकर बाढ़ राहत कैंपों में पैड की मौजूदगी को एक सपने से सच बना दिया।
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