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महिला आरक्षण बिल वास्तव में कब लागू होगा, साल 2029, 2034, या 2039?

Women Reservation Bill के लागू होने से पहले कई चरण हैं, जिन्हें पार किए जाने की जरूरत है. वे क्या हैं?

मैत्रेयी रमेश
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Women Reservation Bill और महिला प्रतिनिधित्व</p></div>
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Women Reservation Bill और महिला प्रतिनिधित्व

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट हिंदी)

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बैंगलोर की वकील यशस्विनी बसु ने कहा, "यह कहना सही होगा कि एक के बिना दूसरा पूरा नहीं हो सकता- यानी जनगणना और महिला आरक्षण विधेयक. यह विधेयक की भावना में ही है."

महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) 21 सितंबर को संसद में पास हो गया, लेकिन इसका लागू होना नई जनगणना और परिसीमन पर निर्भर करता है. द क्विंट ने इसी को लेकर एक्सपर्ट्स से बात की कि आखिर कब ये कानून प्रभाव में आ सकता है.

संविधान (संशोधन 128वां संशोधन) विधेयक 2023, जिसे महिला आरक्षण बिल भी कहा जा रहा है, में ये प्रावधान है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी. इसमें कहा गया है,

"इस भाग या भाग VIII के पूर्ववर्ती प्रावधान में किसी भी बात के बावजूद, संविधान (128वां) विधेयक 2023 के प्रकाशित होने के बाद की गई पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद, लोकसभा में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण से संबंधित संविधान के प्रावधान प्रभावी होंगे"

जरूरी पड़ाव: जनगणना और परिसीमन

विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया है और अब इसे राष्ट्रपति मुर्मू के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा. मानवाधिकार वकील और संवैधानिक कानूनों के प्रेक्टिशनर, रोहिन भट्ट ने कहा, "बिल प्रकाशित होने के बाद पहली जनगणना के बाद ये लागू होगा. इस नई जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा, और इस परिसीमन के आधार पर, महिलाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों को चुना जाएगा."

परिसीमन का मतलब जनसंख्या के आधार पर संसदीय और विधानसभा सीटों की कुल संख्या में बदलाव से है. संदर्भ के लिए, 1961 की जनगणना के बाद भारत की लोकसभा सीटें 494 से बढ़कर 522 हो गईं, और 1971 की जनगणना के बाद 522 से बढ़कर 543 हो गईं.

द क्विंट से बात करते हुए बसु ने कहा,

"ये याद रखना होगा कि ये विधेयक, पहले भी कम से कम दो बार यहां तक पहुंचा था, लेकिन अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण ये आगे नहीं बढ़ सका. इसलिए इसके परिणामस्वरूप, यह देखना चिंताजनक है कि ये (जनगणना और परिसीमन जनादेश) कैसे लागू होता है? विधेयक के अनुसार, जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया बेहद जरूरी."

इसका मतलब ये है कि 2029 के चुनावों से पहले विधेयक के प्रभावी ढंग से लागू होने की संभावना कम है. विपक्षी नेताओं ने भी ऐसा ही कहा है. लोकसभा में बिल पास होने के बाद NCP नेता सुप्रिया सुले ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा,

"NCP (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) इसके (महिला आरक्षण विधेयक) समर्थन में मजबूती से खड़ी है. हालांकि, यह एक पोस्ट-डेटेड चेक है, क्योंकि न तो जनगणना हुई है और न ही परिसीमन हुआ है. इसलिए, इसे 2029 में लागू किया जा सकता है."

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता मनोज कुमार झा ने भी पीटीआई-भाषा से कहा, "यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि महिला आरक्षण विधेयक 2029 में लागू किया जाएगा या 2034 में. यह सरकार की बाद की प्रतिबद्धता है."

निर्णायक कारक: जनगणना कब होगी?

भारत में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी- अगली जनगणना 2021 में होने वाली थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते नहीं हो सकी. तब से सरकार ने इसे कम से कम आठ बार आगे बढ़ाया है, जिसका आधिकारिक कारण COVID-19 महामारी बताया गया है.

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भट्ट ने द क्विंट से कहा, "हम एकमात्र देश हैं जिसने दशकीय जनगणना नहीं की है. हम अभी भी नहीं जानते हैं कि यह 2031 में होगी या नहीं. इस विधेयक का कार्यान्वयन भविष्य की घटना पर निर्भर है, जो कि हम जानते हैं, हो सकता है कि ऐसा बिल्कुल न हो."

लेकिन जनगणना कब होगी- ये विधेयक के लागू होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. क्यों? संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, जिसे 2002 में संशोधित किया गया था, परिसीमन प्रक्रिया 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर की जा सकती है. यह माना जा रहा था कि 2021 में एक दशकीय जनगणना होगी, और 2031 की जनगणना के बाद परिसीमन होगा.

इसे आसानी से समझें:

  • 2024: चुनाव के बाद, घरों की सूची बनाई जाएगी, ये जनगणना के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है.

  • 2025: जनगणना होगी

  • 2026-2027: जनगणना प्रकाशित होगी.

लेकिन इस टाइमलाइन के अनुसार, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि अगली दशकीय जनगणना अब 2036 में होगी. परिसीमन अगली जनगणना के बाद ही हो सकता है. इसका मतलब ये होगा कि महिला आरक्षण विधेयक 2039 से पहले लागू नहीं होगा.

योगेंद्र यादव ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, "अनुच्छेद 82 (2001 में संशोधित) कहता है कि 2026 के बाद पहली जनगणना के आंकड़ों से पहले परिसीमन नहीं हो सकता. ये केवल 2031 में ही हो सकता है. ज्यादातर लोगों को यह याद नहीं है कि परिसीमन आयोग को 3 से 4 साल लगते हैं (पिछली जनगणना में 5 साल लगे थे). इसके अलावा, जनसंख्या अनुपात में बदलाव को देखते हुए, आगामी परिसीमन बहुत विवादास्पद हो सकता है. इसलिए हम 2037 या उसके आसपास की रिपोर्ट देख रहे हैं. यानी कि इसे केवल 2039 में ही लागू किया जा सकता है."

अगली बाधा: निर्वाचन क्षेत्र कैसे चुने जाएंगे?

विधेयक में इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है कि महिलाओं के लिए आरक्षित इन 1/3 सीटों को कैसे चुना जाएगा. बसु ने द क्विंट को बताया, "यह फिर से परिसीमन पर निर्भर है, हम इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकते. 33 प्रतिशत, मूल रूप से 1/3 संख्या वह संख्या है जिसके साथ हमें अभी जाना है. इसलिए यदि यह वर्तमान संख्या के अनुसार 181/543 है, तो परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लगभग 800 सीटों में से एक तिहाई सीट बनेगी.

जबकि यूपीए-II की तरफ से पेश विधेयक में भी ये उल्लेख नहीं किया गया था कि इन निर्वाचन क्षेत्रों को कैसे चुना जाएगा, सरकार ने ड्रॉ की एक प्रणाली का प्रस्ताव रखा था. सरकार ने कहा था कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि एक ही सीट लगातार तीन से अधिक चुनावों के लिए आरक्षित नहीं रहेगी.

अगर इस बीच सरकार बदल गई तो क्या होगा?

भट्ट ने कहा, एक बार जब विधेयक लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति की सहमति से पारित हो जाता है- तो यह कानून है, लेकिन ये गजट अधिसूचना होने तक लागू नहीं होगा.

एक बार विधेयक शुरू होने के बाद, अगली जनगणना जब भी होगी तब लागू होगा. इसके रद्द होने का सवाल ही नहीं है.

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