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"प्रेस की स्वतंत्रता, अगर इसका कोई मतलब है, तो इसका अर्थ है आलोचना और विरोध करने की स्वतंत्रता."
-जॉर्ज ऑरवेल, ब्रिटिश लेखक
भारत जैसे लोकतंत्र में पत्रकारों की आवाज को दबाने की कई खबरें सामने आती हैं. लेकिन यहां आवाज दबाने के मतलब केवल चुप करना नहीं है बल्कि इसके लिए पत्रकारों को कई मुसीबतें अपने सिर लेनी होती है. कई पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है, परेशान किया जाता है, झूठे मामलों में एफआईआर दर्ज की जाती है, उन्हें धमकाया जाता है, उन्हें यूएपीए जैसे कानूनों का सहारा लेकर उन्हें तंग किया जाता है.
इस प्रेस की आजादी की दिवस (Press Freedom Day) पर जानिए भारत में पत्रकारों को किस तरह से निशाना बनाया जाता है.
इस साल फरवरी में राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) द्वारा जारी इंडिया प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट 2021 के अनुसार, अकेले 2021 में देश में कम से कम छह पत्रकार मारे गए और 108 पत्रकारों और 13 मीडिया घरानों को निशाना बनाया गया.
121 मीडिया हाउस को टारगेट किया गया, इसमें कम से कम 34 को अपने-अपने राज्यों में राजनीतिक दलों, कार्यकर्ताओं और माफियाओं के हमलों का सामना करना पड़ा है.
साल 2021 में देशभर में राज्य के अधिकारियों द्वारा कम से कम 24 पत्रकारों पर कथित तौर पर शारीरिक हमला किया गया, उन्हें धमकाया गया, परेशान किया गया और उनके काम में बाधा डाली गई.
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में 44 पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिनमें से कुछ के खिलाफ विभिन्न राज्यों में एक से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई थी. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा नौ पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. इसके बाद लिस्ट में जम्मू-कश्मीर और दिल्ली दोनों हैं जहां छह पत्रकारों को एफआईआर का सामना करना पड़ा है.
भारत में 2021 में या उससे पहले गिरफ्तार किए गए पांच पत्रकार अभी भी जेल में बंद हैं. दो और भी हैं- फहद शाह और सज्जाद गुल. इन दोनों को 2022 में गिरफ्तार किया गया था. बाद में दोनों पर दोष साबित नहीं हुआ था.
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