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रामदेव एक बार फिर सुर्खियों में हैं. जगह-जगह उनके खिलाफ केस दर्ज हो रहे हैं. मामला है एलोपैथी और डॉक्टरों के खिलाफ उनके बयान. रामदेव को लेकर कुछ होता है कि उसका निगेटिव असर पतंजलि पर भी पड़ता है, जिसके वो ब्रांड एंबेसडर हैं. रामदेव का विवादों से लगातार नाता रहा है. उधर पतंजलि जिस रफ्तार से आगे बढ़ी थी, उसकी अब रफ्तार धीमी पड़ गई है. इसमें रामदेव के सियासी झुकाव, विवादों और कंपनी की नीतियों में से किसका ज्यादा और कम असर है, कह नहीं सकते.
योगगुरु रामदेव और उनकी FMCG कंपनी 'पतंजलि' की कहानी 21वीं सदी के भारत में बिजनेस ग्रोथ की दिलचस्प कहानियों में से एक रही है. लेकिन रामदेव की कहानी दूसरी कारोबारी सफलता की कहानियों से इस मायने में अलग है कि उन्होंने अपना कारोबारी साम्राज्य बढ़ाने के लिए जिस तरह से राजनीति का इस्तेमाल वो कम ही देखने को मिलता है. 2014 में पीएम मोदी के लिए खुलकर प्रचार करने वाले रामदेव के कारोबार ग्राफ तेजी से ऊपर गया. लेकिन GST, नोटबंदी, कंपनी की योजनाओं और रामदेव के राजनीतिक रुझान की वजह से पिछले कुछ सालों में उनका बिजनेस धीमा पड़ा है.
2009 में शुरू हुई पतंजलि ने तेजी से देशभर में अपना नेटवर्क तैयार किया. 2014 से लेकर 2017 तक रामदेव की कंपनी पतंजलि ने दमदार ग्रोथ दर्ज की. फाइनेंशियल ईयर 2015 और 2016 में तो पतंजलि ने 100% ग्रोथ तक दर्ज की. भारत के FMCG सेक्टर में कारोबार करने वाली सारी मल्टीनेशनल कंपनियों को पतंजलि ने धूल चटा दी. लोगों में भी पतंजलि के प्रोडक्ट को लेकर गजब का उत्साह देखने को मिला. लेकिन पतंजलि के कारोबार में 2017 के बाद स्लोडाउन आया.
स्वदेशी जागरण और कालाधन वापस लाने की शुरू हुई राजनीतिक लड़ाई के बाद रामदेव ने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का खुलकर समर्थन किया. अपने शिविरों में उनके लिए जमकर प्रचार किया और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. इसी के साथ बाबा रामदेव हरिद्वार में अपने आश्रम में कारोबार फैलाने का काम करते रहे.
2013-14 ही वो वक्त था, जब देश में बड़े-बड़े मॉल से लेकर छोटी-छोटी गली मोहल्लों में पतंजलि के स्टोर्स खुले और लोगों ने प्रोडक्ट्स को खूब सराहा. टूथपेस्ट, साबुन, आटा, शहद और घी जैसे देशी उत्पादों ने ग्राहकों को खूब खींचा. हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, डाबर जैसी मौजूदा कंपनियों की सेल्स ग्रोथ जबरदस्त तरीके से घटी. दूसरी तरफ पतंजलि ने दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की की.
लेकिन जितनी तेजी से रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि शिखर पर पहुंची, वो उस मुकाम पर कायम नहीं रह सकी. 2019 में ही पतंजलि के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण ने स्वीकार किया था कि उनकी कंपनी के कारोबार में स्लोडाउन नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद शुरू हुआ. इससे कंपनी का डिस्ट्रीब्यूशन कमजोर हुआ. बिजनेस टुडे से 2019 में बातचीत करते हुए एक रिटेल स्टोर के मैनेजर ने बताया था कि- 'बीते एक साल में सेल्स में 50 परसेंट तक की गिरावट दर्ज की गई है. FMCG कारोबार लोगों की आदतों से जुड़ा कारोबार है और जब प्रोडक्ट ही नहीं मिलेंगे तो कस्टमर्स के पास दूसरे विकल्प हैं.'
डिस्ट्रिब्यूशन और सप्लाई चेन में दिक्कत के अलावा पतंजलि के प्रोडक्ट की क्वालिटी भी कई बार सवालों के घेरे में आ चुकी है. इससे ब्रांड की साख पर विपरीत असर पड़ा. मार्केटिंग के दिग्गज बताते हैं कि कंपनी एक साथ कई कैटेगरी में प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए और इससे कंपनी को नुकसान हुआ है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनी को कुछ वक्त तक उसके फ्लैगशिप प्रोडक्ट पर फोकस करना चाहिए था. अब अगर पतंजलि को अपनी साख और सेल्स फिर से वापस पाना है तो कंपनी को अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करना होगा .
ग्लोबल कंज्यूमर्स की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक वॉल्यूम के पैमाने पर पतंजलि की सेल्स शहरी इलाकों में घटी है. वहीं ग्रामीण इलाकों में भी ग्रोथ धीमी पड़ी है.
योगगुरु रामदेव के बहुत बड़े कारोबारी समूह का चेहरा हैं. ऐसे में उनके राजनीतिक रुझान से कंपनी के प्रदर्शन पर फर्क पड़ता है. आम तौर पर माना जाता है कि कारोबारियों को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष रहकर काम करना ज्यादा सुलभ होता है. लेकिन रामदेव खुलकर बीजेपी का समर्थन और प्रचार करते रहे हैं. इस समर्थन से रामदेव को फायदा भी हुआ और कंपनी ने तेज रफ्तार से कारोबार बढ़ाया. लेकिन रामदेव की अवैज्ञानिक टिप्पणियां, राजनीतिक रुझान वगैरह ने कंपनी के प्रदर्शन पर असर डाला है. इतनी बड़ी कंपनी का किसी एक पार्टी के प्रति इतना झुकाव उसे दूसरे पक्ष के निशाने पर भी ले आता है.
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