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मोदी सरकार ने आखिरी बजट में किसानों के लिए सालाना 75,000 करोड़ रुपये की योजना का ऐलान किया. सरकार का दावा है कि इससे 12 करोड़ किसानों को सालाना 6000 रुपये की मदद होगी. इसमें कहा गया कि किसानों को अब साहूकार के पास नहीं जाना होगा और आमदनी दोगुनी करने की दिशा में ये बड़ा कदम है.
ये ऐलान किसानों के लिए कितनी सहूलियत लेकर आया? इस बारे में हमने किसानों और किसानों के मुद्दे पर काम कर रहे एक्सपर्ट्स से बातचीत की. उन्होंने बजट 2019 को निराशाजनक बताया.
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष और किसान नेता योगेन्द्र यादव ने सरकार की इस घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इसे दिखावे वाला बजट करार दिया. उन्होंने कहा, ''सरकार 5 साल का हिसाब देने से बचती रही. इतनी कम राशि से सरकार कोई बदलाव नहीं ला पाएगी. ये किसानों के योगदान का अपमान है.''
'जय किसान' आंदोलन से जुड़े अविक साहा ने योजना को जुमला बताया. उन्होंने कहा कि 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना' के जरिये 500 रुपया हर महीने देना सम्मान नहीं, किसानों का अपमान है. किसान के भले के लिए इस बजट में कुछ भी नहीं था.
हरियाणा के शिकोहपुर गांव में केंद्रीय बजट सुनने और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 8 राज्यों से आए किसान इकट्ठा हुए थे. उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को किसानों के जख्म पर नमक छिड़कने जैसा बताया.
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के योगेश पांडेय ने कहा कि गन्ना किसानों पर 11,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया राशि की सरकार ने चर्चा तक नहीं की.
पंजाब से आए भारतीय किसान यूनियन से जुड़े राजिन्दर सिंह बेनीपाल ने कहा, “पंजाब में किसानों की हालत अच्छी नहीं है. पूरे पंजाब में आलू 1 रुपये किलो बिक रहा है. किसान खुदकुशी कर रहे हैं. इस बजट में मोदी सरकार ने किसानों के साथ मजाक किया है.”
यूपी से आए किसानों ने भी बजट पर अपनी बात रखी.
किसानों का कहना है कि उनसे जुड़े अहम सवालों, जैसे आमदनी, फसलों की कीमत, बीमा, कर्जमाफी पर बजट में कोई जवाब नहीं मिला.
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