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JNU: हिंसा पर 30 हजार तो धरने पर 20 हजार फाइन,बवाल में बाद VC ने नियम वापस लिए

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय VC ने कहा- जानकारी नहीं थी कि इस तरह का एक दस्तावेज तैयार किया गया है

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<div class="paragraphs"><p> छात्रों का विरोध</p></div>
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छात्रों का विरोध

(फोटो : ट्विटर)

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नए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने गुरुवार को उस नियम को वापस ले लिया जिसके तहत छात्रों पर हिंसा, दुर्व्यवहार और कैम्पस में धरना देने के लिए 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाये जाने की बात कही गयी थी. यूनिवर्सिटी के वीसी संतश्री डी पंडित ने दावा किया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस तरह का एक दस्तावेज तैयार किया गया था और जारी किया गया था.

JNU वीसी का यह यू-टर्न नए नियमों पर छात्रों और शिक्षकों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद आया है, जिन्होंने इसे क्रूर करार दिया था. गुरुवार की देर रात चीफ प्रॉक्टर रजनीश कुमार मिश्रा ने एक अधिसूचना जारी कर कहा कि प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए जेएनयू के छात्रों के नियम और अनुशासन संबंधी दस्तावेज को वापस लिया जाता है.

नए नियम क्या थे?

20,000 रुपए जुर्माना और एडमिशन रद्द किए जाने के अलावा अगर कोई छात्र हिंसा से जुड़े किसी मामले में दोषी पाया जाता है, तो उस पर 30 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इसको लेकर बकायदा दिशा निर्देश जारी किए हैं.

यह दिशा निर्देश अनुशासन और आचरण के नियम शीर्षक से जारी किए गए थे. विश्वविद्यालय के छात्र और छात्र संगठन इस फैसले के खिलाफ थे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और वामपंथी छात्र संगठन दोनों ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासन से नाखुश हैं. छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय ने अनुचित तौर पर विरोध प्रदर्शन जैसी सामाजिक गतिविधियों के लिए भारी जुर्माना लगाने का फैसला किया है.

जेएनयू द्वारा तय किए गए दिशा निर्देशों के मुताबिक ऐसे मामलों में प्रॉक्टोरियल जांच और बयानों के आधार पर कार्रवाई की बात कही गयी थी.

सभी छात्रों पर लागू होना था नियम

विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना था कि नए नियम विश्वविद्यालय के सभी छात्रों पर लागू है. एडवाइजरी में कई अन्य क्रियाकलापों को भी शामिल किया गया है जैसे कि कैंपस के भीतर जुआ खेलना, छात्रावास के कमरों पर अनधिकृत कब्जा करना और अभद्र भाषा आदि, विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक छात्रों के खिलाफ दर्ज की जाने वाली शिकायत की एक कॉपी छात्रों के अभिभावकों को भी दी जाएगी. ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि अभिभावक विश्वविद्यालय में उनके बच्चों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी मिले.

विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक जरूरत होने पर शिक्षकों और छात्रों की शिकायतों को केंद्रीय स्तर की शिकायत निवारण समिति को भेजा जा सकता है, वहीं विश्वविद्यालय कैंपस से जुड़े छेड़खानी, यौन शोषण, रैगिंग और सांप्रदायिक वैमनस्य का कारण बनने वाले विषय चीफ प्रॉक्टर के कार्यालय के दायरे में होंगे.

एबीवीपी जेएनयू के सचिव विकास पटेल ने इस विषय पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस नई तुगलकी आचार संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है. पुरानी आचार संहिता पर्याप्त रूप से प्रभावी है. सुरक्षा और व्यवस्था में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, जेएनयू प्रशासन ने इस कठोर आचार संहिता को लागू किया है. हम कठोर आचार संहिता को पूरी तरह से वापस लेने की मांग करते हैं.

(इनपुट-IANS )

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