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उत्तराखंड (Uttarakhand) में जोशीमठ (Joshimath) के कई लोग मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं, उनका मकान उनसे छीना जा रहा है, उन्हें अपनी आने वाली पीढ़ी को लेकर चिंता सता रही है. किसी के सपने बिखर गए तो किसी को अपनी बेटी की शादी की चिंता है.
यह सब प्रकृति के प्रकोप के कारण हो रहा है, विकास के नाम पर प्रकृति पर हुए हमले के कारण हो रहा है. जोशीमठ में जमीन धंस रही है, पानी का रिसाव हो रहा है, मकानों और भवनों में गहरी दरारें पड़ रही है. इस वजह से लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ रहा है. जोशीमठ निवासी चंद्रलेखा भट्ट को भी इस दौरान काफी कुछ सहना पड़ रहा है. उन्होंने अपनी दर्दनाक कहानी बताई.
जोशीमठ की निवासी चंद्रलेखा भट्ट ने नम आंखों से बताया कि, "हम चार बहने हैं, मेरे पिता बकरी पालन कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. मेरी मां इकलौती थी तो मेरे नाना ने हमे घर बनाकर दिया. हम खुशी से रह रहे थे. मैने भी इंटर तक पढ़ाई की और आशा थी कि अपने परिवार का सपोर्ट कर पाउंगी, लेकिन हमारे साथ प्रकृति ने घिनौना मजाक कर दिया."
चंद्रलेखा कहती हैं कि "जो लोग इन सर्द रातों मे अपने घरों मे रह रहे हैं वे सबसे बड़े सौभाग्यशाली हैं."
वो कहती हैं कि, "बेशक मेरी उम्र कम है, लेकिन मैं अपने मां के आंसू देखती हूं तो मुझे लगता है कि समय से पहले मेरी मां का आंचल छूट न जाए. मेरी मां ने बताया था कि उन्होंने पीठ पर पत्थर ढोकर हमारा घर बनाया."
चंद्रलेखा ने कहा कि, मैं परिवार में सबसे बड़ी हूं, मैं अपनी मां की स्थिति से वाकिफ हूं, रोज हमारा घर धंस रहा है, मेरी मां घर के आंगन के कोने में दुबकी है. मैं चाह कर भी दो आंसू नहीं बहा सकती, अगर मैं टूट गयी तो मेरा परिवार टूट जायेगा. मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी है."
जोशीमठ में जारी संकट पर उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक गिर्दा की यह पंक्ति सच साबित होती दिख रही है.
एक तरफ बर्बाद बस्तियां-एक तरफ हो तुम.
एक तरफ डूबती कश्तियां-एक तरफ हो तुम.
एक तरफ है सूखी नदियां-एक तरफ हो तुम.
एक तरफ है प्यासी दुनिया- एक तरफ हो तुम.
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्यापारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलेगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जायेंगे, खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब, बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी-तब क्या होगा??
आज भले ही मौज उड़ा लो, नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो
लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
विश्व बैंक के टोकन धारी-तब क्या होगा?
योजनाकारी-तब क्या होगा? नगद-उधारी तब क्या होगा?
इनपुट क्रेडिट: मधुसूदन जोशी
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