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“कांग्रेस ने हमें निराश किया”-जुनैद,नासिर के गांव वाले ऐसा क्यों कह रहे हैं?

जुनैद और नासिर की हत्या के खिलाफ प्रदर्शन को रोकने की कोशिश के लिए राजस्थान कांग्रेस की आलोचना की जा रही है.

फातिमा खान
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>जुनैद-नासिर केस: राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत</p></div>
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जुनैद-नासिर केस: राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत

(फोटो-क्विंट हिंदी)

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जुनैद और नासिर (Junaid Nasir Murder Case) की हत्या के एक हफ्ते बाद राजस्थान के भरतपुर में उनके गांव घाटमीका (Ghatmeeka) में उनके परिवार के सदस्यों और गांव के लोगों ने राजस्थान कांग्रेस सरकार पर “खामोश रहने” के लिए “दबाव” बनाने का आरोप लगाया है.

जुनैद और नासिर के चचेरे भाई मोहम्मद जाबिर द क्विंट से कहते हैं, “राजस्थान सरकार पहले दिन से ही हमें चुप कराने की कोशिश कर रही है, हमारे प्रदर्शन के खिलाफ नोटिस हमारी आशंका को सच साबित करता है कि यह सरकार मुजरिमों को सजा दिलाने में दिलचस्पी नहीं रखती है, सिर्फ हमें चुप कराती है.”

वह जिस नोटिस का जिक्र कर रहे हैं, वह गुरुवार 23 फरवरी को CrPC की धारा 107/116 के तहत जाबिर और दूसरे गांव वालों को दिया गया है, जो जुनैद और नासिर के लिए इंसाफ की मांग को लेकर हत्या के दिन से ही प्रदर्शन कर रहे हैं. कारण बताओ नोटिस में प्रदर्शनकारियों को 27 फरवरी को पहाड़ी के सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में हाजिर होने और अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है कि “शांति बनाए रखने” के लिए क्यों न उन पर छह महीने के लिए पाबंदी लगा दी जाए.

यह नोटिस राजस्थान पुलिस की तरफ से हत्या के मामले में आरोपियों का पोस्टर जारी करने के एक दिन बाद आया है. इस पोस्टर में आठ नाम और फोटो हैं, मगर ध्यान देने वाली बात है कि इसमें से बजरंग दल (Bajrang Dal) का नेता मोनू मानेसर (Monu Manesar) गायब है.

राजस्थान पुलिस का यह कदम मोनू मानेसर के समर्थन में बजरंग दल और VHP के सदस्यों की अगुवाई में हुई लगातार ‘महापंचायतों’ के बाद आया, जिसमें राजस्थान पुलिस के उसको गिरफ्तार करने पर हिंसा की धमकी तक दी गई. केस की FIR में मोनू 5 आरोपियों में से एक है, लेकिन जारी की गई संदिग्धों की लिस्ट से उसका नाम गायब है. हालांकि द क्विंट से बात करते हुए भरतपुर के IG गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि मोनू का “नाम हटाया नहीं गया है.”

शिकायतकर्ता के बयान के आधार पर FIR केवल शुरुआती बिंदु है. हमने जिन संदिग्धों की लिस्ट जारी की है, वह रिंकू सैनी (गिरफ्तार आरोपी) से पूछताछ और हमारे द्वारा जुटाए सबूतों पर आधारित है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मोनू या किसी दूसरे व्यक्ति का नाम हटा दिया गया है.
गौरव श्रीवास्तव, IG भरतपुर

लेकिन संदिग्धों की लिस्ट से मोनू की गैरमौजूदगी घाटमीका में जारी प्रदर्शन को और तेज करने के लिए काफी थी. हत्या के बाद से ही गांव वाले मोनू को गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं.

यह ऐसे समय में हुआ है जब पहले से ही ढिलाई बरतने और पूरी मजबूती से पीड़ितों का साथ नहीं देने के लिए राजस्थान की कांग्रेस सरकार की आलोचना की जा रही है.

मुआवजा और स्थानीय नेताओं का रवैया

शुक्रवार 17 फरवरी को जुनैद और नासिर की हत्या की खबर के एक दिन बाद राजस्थान की शिक्षा मंत्री और भरतपुर के कामां निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जाहिदा खान (Zahida Khan) घाटमीका पहुंचीं और मरने वालों के परिवारों से मिलीं. बैठक के बाद एक पंचायत में विधायक ने दोनों परिवारों को 20.5-20.5 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया. इसमें 15 लाख रुपये सरकार के, 5 लाख रुपये उनके और 50 हजार रुपये प्रधान की तरफ से थे.

लेकिन जल्द ही इसकी तुलना उदयपुर में दो मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथों कन्हैया लाल की हत्या से की जाने लगी, जिसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परिवार के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया था.

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जाहिदा खान ने इसके अलावा दोनों परिवारों के एक-एक सदस्य के लिए नौकरी का ऐलान किया था, लेकिन बाद में साफ किया कि वह सरकारी नौकरी की बात नहीं कर रही थीं, बल्कि “सिर्फ संविदा पर नौकरी” की बात कर रही थीं.

इसी गांव के रहने वाले प्रदर्शनकारी वसीम अकरम ने कहा, “मुआवजे का मकसद हमें खामोश करना और हमसे उम्मीद करना था कि हम किसी कार्रवाई की मांग नहीं करेंगे. और परिवार के लोगों को सिर्फ संविदा की नौकरी क्यों दी जाए, सरकारी क्यों नहीं? असल में ये सरकार परिवार की किसी भी तरह से मदद करने में दिलचस्पी नहीं रखती है. हमें सरकार से मायूसी हुई है.”

जाहिदा खान ने इससे पहले इस मामले पर टिप्पणी करते हुए ANI को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “यह राजस्थान का मसला नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की समस्या है.” प्रदर्शनकारी उनकी मंशा पर यह कहते हुए सवाल उठाते हैं कि उनके भाई चौधरी जाकिर हुसैन तीन बार बीजेपी के विधायक रह चुके हैं और इस वक्त बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. जाबिर कहते हैं, “इस भाई-बहन की जोड़ी की दिलचस्पी सिर्फ एक-दूसरे के फायदे की हिफाजत करने में है, इससे ज्यादा कुछ नहीं. जाहिदा खान के लोगों ने हमारे विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए मुझ पर और मेरे परिवार पर दबाव डालने की कोशिश की.”

द क्विंट ने जाहिदा खान से प्रतिक्रिया मांगी लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. अगर उनका जवाब आता है तो रिपोर्ट में अपडेट किया जाएगा.

राहुल गांधी की आलोचना

AIMIM नेता सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) सीएम गहलोत पर तंज कस रहे हैं. उन्होंने कैप्शन के साथ एक खाली तस्वीर ट्वीट की है- “ब्रेकिंग:@ashokgehlot51 की जुनैद और नासिर के परिवार से मुलाकात का एक्सक्लूसिव फोटो.”

वैसे ओवैसी के ट्वीट के फौरन बाद गहलोत ने पीड़ितों के घरवालों के साथ एक तस्वीर पोस्ट की और कहा कि वह कुछ दिन उनसे पहले मिले थे.

गहलोत पहले भी इस घटना की निंदा करते हुए ट्वीट कर चुके हैं. हालांकि इस मामले में राहुल गांधी और उनकी चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं. उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात नहीं की. उन्होंने इस मुद्दे पर बिल्कुल बात नहीं की. न ही इस बारे में ट्वीट किया है.

राहुल गांधी 22 फरवरी को अलवर में कांग्रेस नेता जितेंद्र सिंह की बेटी की शादी में शामिल हुए—जुनैद और नासिर की हत्या के चंद दिनों बाद—पास ही भरतपुर में पीड़ित परिवार के लोगों से उनके नहीं मिलने पर कुछ स्थानीय लोगों ने उनकी आलोचना की.

राजस्थान में यह चुनावी साल है

कांग्रेस पार्टी इसे हरियाणा राज्य का— जहां वह विपक्ष में है, और जहां जली हुई लाशें पाई गई थीं—कानून और व्यवस्था का मुद्दा मानती है.हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि "हरियाणा में कानून-व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो चुकी है.”

हरियाणा विधानसभा में आफताब अहमद और मामन खान जैसे कांग्रेसी विधायकों ने भी राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए हैं.

पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपने बयानों में खुलकर ‘बजरंग दल’ का नाम लेने से बच रहा है.इसकी वजह यह हो सकती है कि राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं.

राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भंडारी कहते हैं, “कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर दबाव में है.वह हिंदू मतदाताओं के एकजुट हो जाने के डर से खुलकर बजरंग दल की आलोचना नहीं करना चाहती है. लेकिन इस मसले पर अपने अनमने रवैये से वो मेवाती मुस्लिम वोटों को भी खो सकती है, जो पारंपरिक रूप से पार्टी के समर्थक रहे हैं.”

राजस्थान विधानसभा में 2019 में लिंचिंग विरोधी कानून पेश करते हुए तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने सदन में कहा था, “2014 के बाद देश में मॉब लिंचिंग के 86 प्रतिशत मामले राजस्थान में हुए हैं.”

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