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मणिपुर हिंसा: अंधेरे में बच्चों का भविष्य, स्कूल भेजने से डर रहे माता-पिता

मणिपुर के कई बच्चे राज्य के बाहर जाकर पढ़ना चाहते हैं लेकिन इंटरनेट बंद होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.

मधुश्री गोस्वामी
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>Manipur Violence: अंधेरे में बच्चों का भविष्य, स्कूल भेजने से डर रहे माता-पिता</p></div>
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Manipur Violence: अंधेरे में बच्चों का भविष्य, स्कूल भेजने से डर रहे माता-पिता

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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Manipur Violence: बीना छेत्री अपनी 14 साल की बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. उनकी बेटी इंफाल पश्चिम के एक निजी स्कूल में 10वीं कक्षा की छात्रा है और वह दो महीने से स्कूल नहीं गई है.

"ये साल मेरी बेटी के लिए बहुत जरूरी है. उसे अगले साल बोर्ड परीक्षा में बैठना है. वह स्कूल नहीं जा रही है और इंटरनेट पर लगे बैन के कारण ऑनलाइन क्लास भी नहीं हो रहा है. उसकी परीक्षाएं 7-8 महीने बद होने वाली है. उसका भविष्य, मणिपुर के लाखों अन्य बच्चों के भविष्य की तरह बर्बाद हो गया है."
बीना छेत्री

मणिपुर में 3 मई से शुरू हिंसा के दो महीने बाद यानी 5 जुलाई से प्रदेश के 1-8वीं क्लास के करीब 4,500 स्कूल खुल चुके हैं.

शिक्षा विभाग के अनुसार, औसतन 20% बच्चे ही स्कूल जा रहे हैं. इतनी कम संख्या में बच्चों के स्कूल आने की वजह है- हिंसा, परिवहन और बच्चों और उनके माता-पिता में बाहर निकलने का डर.

स्कूल खुलने के एक दिन बाद यानी 6 जुलाई को इंफाल पश्चिम में एक महिला की स्कूल के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. जिसके बाद लोगों में डर और बढ़ गया है.

"मैंने अपनी बेटी को 5 जुलाई को स्कूल भेजा. लेकिन जब मैंने उस महिला की मौत की खबर सुनी तो मैं डर गई. मैं अब अपनी बेटी को स्कूल नहीं भेज रही."
बीना छेत्री

मणिपुर में जारी हिंसा के कारण स्कूल जाने वाले लाखों बच्चों का भविष्य अधर में है.

'माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डर रहे हैं'

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, सरकार के आदेश के बावजूद लगभग सभी स्कूल 5 जुलाई को बंद ही थे. यहां तक की शिक्षक और स्कूल का बाकी स्टाफ भी स्कूल में नहीं दिखा.

हफ्तेभर बाद भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. पूर्व इंफाल के एक स्कूल की प्रिंसिपल ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, बच्चे स्कूल इसलिए नहीं आ रहे क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें स्कूल भेजने से डर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि,

"मेरे स्कूल में लगभग 750 बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन 100 से भी कम बच्चे हैं जो स्कूल आ रहे हैं. कई अभिभावकों ने मुझसे कहा कि वो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते क्योंकि स्थिति काफी खतरनाक है. कई माता-पिता तो अपने बच्चों को स्कूल से निकाल रहे हैं और हमसे रिफंड मांग रहे हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं अपने स्टाफ को सैलरी कैसे दूंगी?"

इससे पहले राज्य सरकार ने स्कूल को 21 जून और 1 जुलाई को खोलना चाहा था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुकी बाहुल्य पहाड़ी जिले चुराचांदपुर और बिष्णुपु में कम से कम 96 ऐसे स्कूल हैं जो अब तक नहीं खुले हैं. इन स्कूलों में विस्थापित लोगों के लिए राहत शिविर स्थापित किए गए हैं.

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कैसे विस्थापन ने बच्चों को स्कूलों किया दूर?

मणिपुर में विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गई है. क्विंट से बातचीत में 13 साल के मंगतिनेक वैफेई कहते हैं, "मैं अपने स्कूल को, दोस्तों को, उनके साथ हंसी-मजाक और खेल-कूद को बहुत मिस कर रही हूं."

बता दें कि मंगतिनेक का परिवार मणिपुर के कांगपोकपी जिले के सैलोम पैटन गांव में रहता था. लेकिन जब भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया और तोड़फोड़ की तो उन्हें मजबूरन अपना घर छोड़ना पड़ा. अब मंगतिनेक और उनका परिवार टेंग्नौपाल में एक राहत शिविर में रह रहा है.

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, जातीय हिंसा की वजह से विस्थापित हुए छात्रों को पास के स्कूल में मुफ्त में प्रवेश पाने की अनुमति है, लेकिन मंगतिनेक के माता-पिता ने उनका पास के किसी स्कूल में दाखिला नहीं करवाया है. मंगतिनेक के पिता पैट्रिक वैफेई कहते हैं,

"हम अभी भी इंतजार कर रहे हैं और स्थिति को देख रहे हैं. हमें अभी भी लौटने की उम्मीद है. यही कारण है कि हम अपने बेटे को पास के स्कूल में दाखिला दिलाने की जल्दी में नहीं हैं. इसके अलावा, जब से हिंसा भड़की है वह गुमशुम सा हो गया है. उसे नए माहौल में भेजने से उसका तनाव बढ़ सकता है."

सदर हिल्स में कुकी छात्र संगठन के महासचिव थांगटिनलेन हाओकिप ने क्विंट को बताया कि ज्यादातर छात्र संगठनों को लगता है कि पहाड़ियों में अभी स्कूल खोलना सुरक्षित नहीं है.

उन्होंने आग कहा, "इन जिलों में अभी भी रुक-रुक कर हिंसा की घटनाएं हो रही हैं और बाहर निकलना अभी भी सुरक्षित नहीं है. लाखों बच्चों का भविष्य दांव पर है."

'हिंसा से मेरी पढ़ाई प्रभावित हुई है'

मणिपुर में केवल स्कूल जाने वाले बच्चे ही नहीं बल्की वे भी बच्चे परेशान हैं जो राज्य के बाहर पढ़ाई के लिए गए हैं. क्विंट से बातचीत में 18 वर्षीय मोरेह निवासी पीटर किप्गेन ने बताया कि,

"मैं शायद दिल्ली या बेंगलुरु जैसी जगहों पर पढ़ने नहीं जा पाऊंगा. मैं हमेशा से मणिपुर से बाहर निकल कर पढ़ना चाहता हूं ताकि दुनिया देख सकूं."

किपगेन ने अभी-अभी हाई स्कूल पास किया है. वह अपना ग्रेजुएशन मणिपुर से बाहर निकलकर करना चाहते हैं, लेकिन हिंसा के कारण इंटरनेट बंद है, जिसकी वजह से उनके भविष्य पर पानी फिर गया है.

उन्होंने आगे कहा कि "हिंसा ठीक उसी समय भड़की जब बोर्ड परीक्षा के नतीजे घोषित हुए और फिर इंटरनेट बंद कर दिया गया. मैं दूसरे शहरों के कॉलेजों के लिए फॉर्म नहीं भर सका और न ही मेरे परिवार के पास दिल्ली, बेंगलुरु या कोलकाता जैसे शहरों में सुरक्षित जाने का साधन है. मुझे नहीं पता कि मैं आगे क्या करूंगा. मुझे नहीं पता कि यहां स्थिति कब सामान्य होगी."

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