Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019MP में बहुत तनाव है क्या, कुछ पता करो कहीं चुनाव है क्या?

MP में बहुत तनाव है क्या, कुछ पता करो कहीं चुनाव है क्या?

Uttar Pradesh चुनाव से पहले Madhya Pradesh में अचानक साम्प्रदायिक घटनाओं की बाढ़ क्यों आई?

Siddharth Sarathe
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>यूपी चुनाव से पहले एमपी में बढ़ीं साम्प्रदायिक घटनाएं</p></div>
i

यूपी चुनाव से पहले एमपी में बढ़ीं साम्प्रदायिक घटनाएं

फोटो : Altered by Quint

advertisement

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में साम्प्रदायिक घटनाएं बढ़ गई हैं. इन सारी घटनाओं में खास ये है कि यहां अपराध छिप-छिपाकर नहीं हो रहे बल्कि वीडियो वायरल कराए जा रहे हैं. सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में अचानक साम्प्रदायिक घटनाओं की बाढ़ क्यों आई? वीडियो वायरल हो रहे हैं या कराए जा रहे हैं यानी कोई चाहता है कि इन घटनाओं को मध्यप्रदेश के बाहर भी देखा जाए. ये कौन चाहता है? भीड़ की हिंसा का शिकार हो रहे लोगों की चीखें किसे फायदा पहुंचा सकती हैं?

कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना

मध्यप्रदेश के मशहूर दिवंगत शायर राहत इंदौरी का एक शेर है, सरहद पर बहुत तनाव है क्या, पता करो कहीं चुनाव है क्या? इस शेर में थोड़ा बदलाव करते हुए पूछना चाहिए, एमपी में बहुत तनाव है क्या, पता करो कहीं चुनाव है क्या?

उत्तरप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और सोशल मीडिया के इस दौर में ये जरूरी नहीं कि जिस राज्य में चुनाव हो ध्रुवीकरण की घटनाएं वहीं कराईं जाएं.

इन घटनाओं में दो चीजें कॉमन हैं.

1. हेट क्राइम की इन घटनाओं के वीडियो को देखने से मालूम होता है कि अपराधियों ने या तो खुद वीडियो बनाए या उनकी सहमति से वीडियो बने. यानी ऐसा नहीं है कि अपराधी को पीड़ित से कोई 'शिकायत' है और वो उसे सिर्फ सजा देकर संतुष्ट हो रहा है. अपराधी चाहते हैं कि उनके कुकृत्य को दूसरे देखें. इसलिए वीडियो वायरल कराए जा रहे हैं. इसका मकसद क्या हो सकता है?

2.अपराधी अपने अपराध का सबूत खुद जमा होने दे रहा है तो सवाल ये है कि वो इतना निडर क्यों हैं, उसे किसका समर्थन है?

दरअसल सोशल मीडया के जमाने और एक खास सोशल पर एक पूरा इको सिस्टम तैयार कर चुके लोग, आई टी विंग चला रहे संगठन ऐसी वीडियोज को वायरल कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते. यूपी में चुनाव है तो जरूरी नहीं है कि हेट क्राइम की घटनाएं वहीं कराई जाएं. वहां इस तरह की बहुत सारी घटनाएं हों तो सत्तारूढ़ पार्टी पर आरोप भी लगते हैं. लेकिन कहीं और भी घटनाएं हों तो दाग भी नहीं लगता और काम भी बन जाता है.

हाल फिलहाल की घटनाएं

  • 28 अगस्त को नीमच में एक आदिवासी युवक कन्हैया लाल को छोटे पिकअप ट्रक से बांधकर घसीटा गया, जिसके बाद उसकी मौत हो गई. बाहुबलियों को शक था कि उसने चोरी की है.

  • 28 अगस्त को उज्जैन के मेहिदपुर में एक कबाड़ी वाले अब्दुल रशीद से कुछ लोगों ने जबरदस्ती ''जय श्री राम'' के नारे लगवाए.

  • 26 अगस्त को देवास के हाटपिपलिया में टोस्ट और जीरा बेंचने वाले 45 वर्षीय जाहिद खान की दो युवकों ने बेरहमी से पिटाई कर दी. युवकों ने जाहिद से आधार कार्ड दिखाने के लिए कहा था.

  • 22 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन इंदौर में हिंदू इलाके में चूड़ी बेचने गए मुस्लिम शख्स की पिटाई हुई.

बदले-बदले से नजर आते हैं शिवराज

मध्यप्रदेश की राजनीति और बदल रही स्थितियों पर नजर रखने वालों का मानना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि और साम्प्रदायिक घटनाओं को लेकर उनके रवैये में काफी बदलाव आया है. इस बदलाव की शुरुआत तब हुई जब कमलनाथ के नेतृत्व में एमपी में बनी कांग्रेस सरकार गिरी और शिवराज सिंह चौहान दोबारा सत्ता में आए. या यूं कहें कि ''कांग्रेस सरकार को अल्पमत में लाकर'' शिवराज सत्ता में आए. इसके बाद शिवराज और शिवराज सरकार के बदले हुए तेवर स्पष्ट दिखाई दिए.

  • कांग्रेस सरकार के अल्पमत में आने के बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसके महज 8 महीने बाद ही मध्यप्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए ‘मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020’ को मंजूरी दे दी.

  • दिसंबर 2020 के अंतिम सप्ताह में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के लिए मप्र में भी रैलियां निकाली गईं. आरोप लगा कि इन रैलियों के दौरान हिंदूवादी संगठन जान-बूझकर मुस्लिम इलाक़ों में जाकर भड़काऊ नारेबाज़ी कर रहे हैं. आरोप ये भी लगा कि मुस्लिम इलाकों में रैलियों पर पथराव हुए. शिवराज सिंह चौहान ने पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कानून लाने की बात कही. प्रशासन और सरकार पर एकतरफा कार्रवाई के आरोप लगे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
  • दिसंबर 2020 में एक सभा को संबोधित करते हुए शिवराज सिंह ने माफियाओं को लेकर कहा '''सुन लो रे! मध्य प्रदेश छोड़ दो, नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा'. जाहिर है शिवराज माफियाओं को लेकर ही ये बात कह रहे थे. लेकिन, उन्हें पहले इतने अक्रामक अंदाज के लिए नहीं जाना जाता था.

  • फरवरी 2021 में सीएम शिवराज ने राजधानी भोपाल के पास स्थित होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम रखे जाने का ऐलान किया.

  • इंदौर में चूड़ी वाले की पिटाई मामले में शिवराज सरकार में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि दो आईडी कार्ड को रखने के लिए विवाद हुआ. उनके रवैये से ऐसा लगा कि वो पीड़ित के साथ हिंसा को हल्का करके आंक रहे हैं, लेकिन शिवराज की तरफ से कोई बयान नहीं आया.

  • इंदौर कलेक्टर ने चूड़ी वाले की पिटाई मामले में PFI का हाथ होने का दावा किया. मंत्री लेकिन बाद में इंदौर के डीजीपी ने ही PFI का हाथ होने का खंडन कर दिया. लेकिन कलेक्टर ने ये बात किस बना पर कहीं ये नहीं बताया गया.

  • उज्जैन में 19 अगस्त, 2021 मुहर्रम पर 'पाकिस्तान जिंदाबाद' नारे लगाने के आरोप में 4 लोगों पर केस दर्ज हुआ. शिवराज सिंह चौहान ने बयान दिया कि ''तालिबानी मानसिकता बर्दाश्त नहीं होगी''. ये सारे आरोप एक वीडियो के आधार पर थे, बाद में उसी समारोह के कई दूसरे वीडियो भी सामने आए, जिनके आधार पर कहा गया कि लोगों ने ''पाकिस्तान जिंदाबाद'' नहीं ''काजी साहब जिंदाबाद'' के नारे लगाए थे. लेकिन पुलिस, प्रशासन और सरकार आरोपों पर अड़े हैं.

कमलनाथ सरकार से पहले वाले शिवराज जगहों के नाम बदलने या किसी मामले में अक्रामक होकर आरोपियों के घर तुड़वाने वाली राजनीति के लिए नहीं जाने जाते थे. इन सबके लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाना जाता है. सवाल ये है कि क्या शिवराज भी योगी की राह पर निकल पड़े हैं?

नैतिकता और उदारता निभाने की स्थिति में नहीं शिवराज?

वरिष्ठ पत्रकार और मध्यप्रदेश की राजनीति पर आधारित किताब ''राजनीति नामा - मध्यप्रदेश'' के लेखक दीपक तिवारी कहते हैं - इसकी संभावना बिल्कुल प्रबल है कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए ध्रुवीकरण की शुरुआत मप्र से करने की कोशिश हो रही हो. उन्होंने आगे कहा कि मध्यप्रदेश की हालिया स्थिति और सीएम के बदले रवैये पर भी सवाल खड़े होते हैं. ये वही शिवराज हैं जिन्हें स्व. अटल बिहारी बाजपेई जैसी लिबरल छवि का नेता माना जाता था. लेकिन, अब वो बात नहीं रही.

2018 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवराज सरकार सत्ता से बाहर हुई. इसके बाद जो बीजेपी सरकार बनी, वो जोड़-तोड़ से बनाई गई सरकार थी. चूंकि शिवराज एक लोकतांत्रिक नहीं बल्कि हांकी हुई सरकार चला रहे हैं. जैसे हांके का शिकार होता था. जब राजा - महाराजा शिकार करने जाते थे, तो सारा इंतजाम कर शिकारी आखिर में राजा साहब से निशाना लगवाता था. बस कहने को ही वो शिकार राजा साहब का होता था. कुल जमा बात ये है कि हांके की सरकार में नैतिकता और उदारता निभाने की स्थिति में शिवराज नहीं बचे हैं. हो सकता है चुनाव हारने के बाद उन्हें लगने लगा हो कि जब ध्रुवीकरण से ही सत्ता पानी है तो फिर...
दीपक तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार

सवाल खड़े करती है शिवराज की चुप्पी

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की राय है कि कई आपराधिक मामलों में सीएम शिवराज की चुप्पी सवाल तो खड़े करती है. लेकिन ऐसे मामलों में स्थिति बिगड़ने का पहला जिम्मेदार प्रशासन है.

मेरी नजर में हाल में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं में पहली जिम्मेदारी प्रशासन की है. शिवराज लंबे समय से मध्यप्रदेश की सत्ता संभाल रहे हैं. उन्हें कई मामलों में निष्पक्षता के साथ स्थिति को काबू में लाते देखा गया है. ये सच है कि हाल की घटनाओं में उनकी चुप्पी सवाल खड़े करती है कि जिस उदार छवि के लिए वो जाने जाते हैं कहीं वो फीकी तो नहीं पड़ रही? अगर वो ध्रुवीकरण के रास्ते पर निकल पड़े हैं तो वहां राजनीति करने में कॉम्पिटिशन ज्यादा है. फिर भी मेरा मानना है कि शिवराज सिंह चौहान को लेकर अभी कोई राय बनाना जल्दबाजी हो सकती है.
रशीद किदवई, वरिष्ठ पत्रकार

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT