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भारत में जब लॉकडाउन लगाया तो सरकार ने ऐलान किया था कि स्कूल -कॉलेज बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा का इंतजाम करें. दिल्ली से तमाम नेताओं ने कोरोना काल में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के तमाम वादे किए, जो जमीनी स्तर पर बिलकुल नहीं दिख रहे हैं. हाल ही में बच्चों की पढ़ाई को लेकर किए सर्वे में बेहद डरावने परिणाम निकल कर आए हैं. सर्वेक्षण से पता चलता है कि गांवों में महज 8 फीसदी बच्चे ऑनलाइन शिक्षा पा रहे हैं. वहीं, शहरों में 24 फीसदी. कुछ बच्चे ऐसे है जो शब्दों को ठीक से पढ़ भी नहीं पाते.
अगस्त 2021 में स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन और ऑफलाइन लर्निंग (SCHOOL) द्वारा कक्षा 1 से 8 तक सरकारी स्कूलों में जाने वाले लगभग 1400 स्कूली बच्चों पर इमरजेंसी रिपोर्ट तैयार की गई, जिसे टीम ने 'LOCKED' शीर्षक से अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस सर्वे को कराने में ज्यां द्रेज और रितिका खेड़ा जैसे लोग शामिल हैं.
स्कूलों के बंद होने से छात्रों की साक्षरता दर में भारी कमी आई है, खासकर दलित और आदिवासी परिवार के बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा स्कूल बंद होने से मिड डे मील बंद हो गया, जिससे छात्रों को पोषण भी नहीं मिल रहा.
सर्वेक्षण 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया गया, जिनमें असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक शामिल हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में केवल 24 प्रतिशत ही बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. इसके अलावा, केवल 9 प्रतिशत बच्चों के पास ही अपना स्मार्टफोन था
42 प्रतिशत शहरी और 48 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों के बच्चे कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं पढ़ पा रहे हैं.
90 प्रतिशत से अधिक माता-पिता का मानना है कि स्कूलों को तुरंत खोला जाए
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि ग्रामीण इलाकों में स्कूल ऑनलाइन मैटेरियल नहीं भेज रहें है, या अगर ऐसा है , तो माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं है. विशेष रूप से छोटे बच्चों में ऑनलाइन पढ़ाई की समझ नहीं है, और उन्हें ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है.
सर्वेक्षण के समय की स्थिति बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 28 प्रतिशत छात्र और शहरी क्षेत्रों में 47 प्रतिशत छात्र नियमित रूप से अध्ययन कर रहे थे.
रिपोर्ट में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान आने वाली परेशानियों पर भी प्रकाश डाला है जैसे
30 प्रतिशत शहरी इलाकों और 36 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के पास अपना खुद का फोन नहीं है.
9 प्रतिशत शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के पास अच्छा इटरनेट नहीं है
9 प्रतिशत शहरी और 6 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के पास डेटा के लिए पैसे नहीं हैं.
12 प्रतिशत शहरी और 10 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई समझ में नहीं आ रही हैं.
14 प्रतिशत शहरी और 43 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों के द्वारा स्टडी मेटेरियल नहीं भेजा गया
यहां तक कि जो लोग ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं, उन्हें भी बहुत अच्छा अनुभव नहीं मिला है, यहां पर भी कुछ समस्याएं निकलकर आई हैं.
सर्वेक्षण के समय सभी बच्चों में से केवल 25.5 प्रतिशत ऑनलाइन (कभी-कभी या नियमित रूप से) पढ़ रहे थे, जिसका शहरी क्षेत्रों के बच्चों को कुछ अधिक लाभ नहीं हुआ
इस छोटे प्रतिशत में से ग्रामीण क्षेत्रों में 65 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 57 प्रतिशत छात्रों को कनेक्टिविटी की समस्या का सामना करना पड़ा.
ग्रामीण (43) और शहरी (46) दोनों क्षेत्रों में 40 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने ऑनलाइन पढ़ाई के तरीके को मुश्किल बताया.
ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चों के अधिकांश माता-पिता (ग्रामीण में 70 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 65 प्रतिशत) को लगता है कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चे की पढ़ने और लिखने की क्षमता में गिरावट आई है.
जिन राज्यों से सैंपल लिए गए हैं, वहां मिड-डे मील को बंद कर दिया गया था.वहीं, रिपोर्ट में यह भी संकेत मिलता है कि एक सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चे के माता-पिता में से करीब 80 फीसदी ने अपने बच्चे के मिड-डे मील के विकल्प के रूप में तीन महीनों के दौरान कुछ भोजन (मुख्य रूप से चावल या गेहूं) प्राप्त करने की सूचना दी.हालांकि शहरी इलाकों में 20 फीसदी घरों और ग्रामीण इलाकों में 14 फीसदी को कुछ भी नहीं मिला.
ग्रामीण अनुसूचित / जाति अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के केवल 4 प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं.सर्वेक्षण के दौरान जब पाठ पढ़ने के लिए बोला गया , तो वे कुछ अक्षरों से आगे नहीं पढ़ सके. सर्वेक्षण से पता चलता है कि 55 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के बच्चे बिना स्मार्टफोन के रह रहे हैं, जबकि अन्य के लिए ये आंकड़ा 38 प्रतिशत है
ग्रामीण अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के माता-पिता में से 98 प्रतिशत चाहते थे कि स्कूल जल्द से जल्द फिर से खुल जाएं
इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अंक और योग्यता की ऑनलाइन दौड़ में भी दलित और आदिवासी परिवारों के बच्चे बहुत पीछे छूट गए.
जाति डिजिटल विभाजन में एक अलग बाधा है, रिपोर्ट में लातेहार जिले (झारखंड) के कुटमू गांव का मामला है, जहां अधिकांश परिवार दलितों और आदिवासियों के हैं. हालांकि, शिक्षक गांव के कुछ उच्च जाति के परिवारों में से एक है
सर्वे टीम से इन उच्च जाति परिवारों के कुछ सदस्यों ने खुले तौर पर पूछा, अगर ये (SC/ST) बच्चे शिक्षित हो जाएंगे, तो हमारे खेतों में कौन काम करेगा?
कुटमू में साक्षात्कार किए गए 20 अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बच्चों में से कोई भी ठीक से पढ़ने में सक्षम नहीं था.
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि पढ़ने और लिखने की क्षमता में भारी गिरावट के बावजूद, छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट किया गया है. आने वाले दिनों में स्कूली सिलेबस में बदलाव होने जरूरी हैं. क्योंकि लॉकडाउन ने बच्चों को काफी पीछे धकेल दिया है. जो बच्चा. कक्षा 3 में पढ़ता है, वो अब खुद को दो साल पीछे पाता है, लेकिन असल में वो अब 5वीं कक्षा का छात्र है जबकि आने वाले कुछ ही महीने में वो प्राइमरी स्कूल पास कर लेगा.
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