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बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन नहीं, 93% पैरेंट्स को स्कूल की पढाई पसंद

अभिभावकों को नहीं पसंद आ रही है ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली, सर्वे में आया सामने

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कोरोनावायरस (Coronavirus) की वजह से भले ही बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन सिमट गई है, लेकिन अब भी बच्चों के पैरेंट्स पुराने एजुकेशन सिस्टम को ही पसंद करते हैं. B2B2C सर्वे-बेस्ड कंस्लटिंग फर्म ने एक सर्वे किया है, जिसमें करीब 5 हजार लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें पैरेंट्स, छात्र और 70 फीसदी शिक्षाविद शामिल हुए. इस सर्वे में करीब 93 फीसदी लोगों ने यही माना कि बच्चों के पढ़ाई के लिए पारंपरिक तरीका ही सही है. जिसमें बच्चों का स्कूल में जाकर पढ़ना लिखना सबसे सही तरीका है.

यह सर्वे Indian School of Business (ISB) में Centre for Innovation & Entrepreneurship (CIE) की मदद सहयोग से किया गया. जिसका उद्देश्य यह समझना था कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से बच्चों की पढाई और सीखने की प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.
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हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे में यह सामने आया है कि 33 फीसदी माता-पिता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि वर्चुअल लर्निंग (Virtual Learning) से बच्चों के सीखने और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

36 फीसदी अभिभावक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था बच्चों पर मनोवज्ञानिक प्रभाव डाल सकती है.
इस प्रक्रिया में बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने की शिक्षकों की क्षमता कम होती दिख रही है. इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों पर पड़ रहा है.
S Arunachalam, Academic Director at Centre for Innovation and Entrepreneurship of ISB

सर्वे में यह भी बताया गया है कि 67 फीसदी बच्चों को धीमी इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. साथ ही बच्चों के लिए निर्धारित स्थान की कमी भी अच्छा प्रदर्शन करने से रोकती है.

बच्चों की शिक्षा अब अभिभावकों की शिक्षा,बच्चों को सीधे तौर सहायता और संसाधनों की उपलब्धता पर भी काफी हद तक निर्भर करती है. रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि कई शिक्षण संस्थानों द्वारा शिक्षा के हाइब्रिड मॉडल पर विचार किया जा रहा है, जो ज्यादा प्रभावशाली हो सकती है.
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Feedback Insight India के प्रबंध निदेशक एस.चन्द्रमौली ने कहा शिक्षा ऑनलाइन प्रणाली के लिए मोबाइल का प्रयोग सुविधा के साथ-साथ एक अभिशाप भी है. हालांकि यह प्रक्रिया चलती रहेगी, लेकिन यह एक स्वस्थ विकल्प नहीं है. इस मामले में शिक्षा मंत्रालय, शिक्षाविदों और ओपिनियन बनाने वालों को एक बेहतर बुनियादी ढांचा बनाने के लिए साथ आना चाहिए.

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