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भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं. पेट्रोल की कीमतें लगभग सभी राज्यों में 100 रूपए प्रति लीटर के आंकड़े को पार कर गयी हैं.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में अक्टूबर में तेल की कीमतों में रिकॉर्ड उछाल देखा जा रहा है, क्योंकि COVID-19 महामारी की मंदी के बाद मांग में पहले जैसी स्थिति आयी है. इसलिए भारत में कच्चे तेल की कीमतें तीन साल के उच्चतम स्तर पर हैं.
इस वजह से पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्यों पर असर पड़ा है, जिससे आम जनता की जेब के लिए घातक सिद्ध हुआ है.
पेट्रोल की कीमत की सही गणना कैसे की जाती है? खुदरा मूल्यों पर Taxes और कच्चे तेल की कीमत का क्या प्रभाव है?
पहले पेट्रोल की कीमतों को केवल सरकार के द्वारा ही रेगुलेट किया जाता था. इसको 15 दिनों में एक बार संशोधित किया जाता था. 2014 में सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नियंत्रित किया. तीन साल बाद 2017 से इसे दैनिक आधार पर संशोधित किया गया है.
यह इस तरह से कार्य करता है:
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन जैसी ऑयल मार्केटिंग कंपनियां (OMCs) कई फैक्टर्स के आधार पर फैसला लेती हैं. इसकी देख-रेख पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत PPAC (पेट्रोललियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल) द्वारा की जाती है.
पेट्रोल और डीजल के दाम प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे संशोधित किए जाते हैं.
पेट्रोल की कीमतों पर सीधा नियंत्रण रखने वाले कुछ फैक्टर्स हैं. PPAC के अनुसार:
कच्चे तेल के दाम: कच्चे तेल अनरिफाइंड ऑयल होते हैं जिनकी कीमतें आपूर्ति असंतुलन, विदेशी संबंधों और भविष्य के भंडार और भंडार के साथ घटती-बढ़ती रहती है.
बढ़ती मांग: वाहनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होने से पेट्रोल की मांग लगातार बढ़ रही है, मांग बढ़ने की वजह से भी कीमतों में उछाल आता है.
टैक्स: ईंधन पर टैक्स लगाने वाली सरकारी नीतियों में बदलाव के अनुसार कीमतें घटती-बढ़ती हैं. पेट्रोल पर दो प्रमुख टैक्स एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) और वैल्यू एडेड टैक्स (Value Added Tax-VAT) लगाए जाते हैं.
रूपया और डॉलर: जब भारतीय मुद्रा के सामने डॉलर मजबूत होता है, तो ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के लिए खरीददारी मूल्यों में बढ़ोतरी होती है और इस वजह से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है.
सबसे पहले ऑयल मार्केटिंग कंपनियों से ईंधन डीलर्स या डिस्ट्रीब्यूटर्स पेट्रोल-डीजल खरीदते हैं, उसके बाद केन्द्र सरकार द्वारा एक्साइज ड्यूटी लगायी जाती है, फिर डीलर का कमीशन जुड़ता है और इन सबके बाद राज्य सरकारों के द्वारा वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) लगाया जाता है. इन सभी प्रक्रियोओं के बाद पेट्रोल-डीजल के खुदरा मूल्यों को निर्धारित किया जाता है.
जुलाई 2021 में कच्चे तेल के भारतीय बास्केट की कीमत औसतन 43.35 डॉलर प्रति बैरल थी. 14 जुलाई 2021 तक कीमत में बढ़ोतरी हुई और कीमत 75.26 डॉलर प्रति बैरल थी. 18 अक्टूबर को यह कीमत बढ़कर 85 डॉलर हो गई.
द क्विंट पर एक लेख में विवेक कौल ने लिखा कि भारत जितना तेल की खपत करता है, उसका चौथा-पांचवां हिस्सा आयात करता है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत में किसी भी तरह की वृद्धि से पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में वृद्धि होती है.
पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के प्राथमिक कारणों में से एक केंद्रीय और राज्य करों में वृद्धि है. उदाहरण के लिए राष्ट्रीय राजधानी में पेट्रोल की कीमतों का लगभग 57 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय और राज्य करों का है.
डीजल की बात करें तो उत्पाद शुल्क 18.83 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 31.83 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया था. 2 फरवरी से इस साल पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कुछ पैसे घटाकर 32.90 रुपये प्रति लीटर और 31.80 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया.
यह ऐसे समय में किया गया था, जब COVID-19 महामारी के कारण कच्चे तेल की मांग में भारी गिरावट आई थी, जिससे कीमतों में कमी आई थी. इसलिए, अंतरराष्ट्रीय कीमतें गिरने पर भी भारतीयों ने पेट्रोल के लिए अधिक भुगतान किया.
देश में ईंधन की कीमतें वस्तु एवं सेवा कर (GST) के दायरे में नहीं आती हैं. जहां केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी से उत्पाद शुल्क वसूल करती है, वहीं वैट (VAT) राज्य सरकार के राजस्व में जाता है.
यह वैट (Value Added Tax) एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होता है, और इसलिए कीमत में अंतर होता है.
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