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देश में पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular front of India) पीएफआई के कई ठिकाने पर पहले छापेमारी और अब उसपर पांच साल का बैन लग गया है. बता दें कि अब्दुल कयूम शेख और रजी अहमद खान की गिरफ्तारी के बाद पुणे (Pune) में शनिवार को पीएफआई ने पुलिस की अनुमति लिए बिना प्रदर्शन किया.
इस गैरकानूनी प्रदर्शन के बाद करीब 60 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के समय लगाये गये ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारों के बाद जहां सरकार ने पीएफआई पर कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा की थी, वहीं शिवसेना (उद्धव) ने सरकार पर ढिलाई का आरोप लगाया है. आदित्य ठाकरे (Aditya Thakare)ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि पिछले ढाई साल में ऐसे नारे लगाने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी, लेकिन अब ऐसा कैसे होने लगा?
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले (Nana Patole) का कहना है कि आज ‘पाकिस्तान जिंदाबाद ‘ के नारे लगने लगे हैं. राज्य में लॉ और आर्डर का कोई कंट्रोल है कि नहीं? पटोले ने मांग की है कि पीआईएफ पर प्रतिबंध लगाया जाए और इस बात की जांच की जाए कि क्या इस संगठन और इसके जैसे संगठनों को हिंदू-मुस्लिम विभाजन करने के लिए राजनीतिक समर्थन मिलता है. उनका आरोप है कि कांग्रेस ने इस संगठन पर पहले भी पाबंदी लगाने की मांग की थी लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार किसी राजनीतिक मकसद से प्रतिबंध नहीं लगा रही है.
इस मामले में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS)के अध्यक्ष राज ठाकरे (Raj Thakare) भी कूद पड़े हैं. राज ठाकरे अपने कट्टर हिन्दूवादी रूख के लिए जाने जाते हैं, इसलिए उनकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही आक्रामक है. उन्होंने ट्विटर पर साफ-साफ कहा कि अगर हिंदुस्तान में पाकिस्तान जिन्दाबाद और अल्लाहू अकबर जैसे नारे लगाए जाएंगे तो इस देश के हिन्दू भाई चुप नहीं बैठेंगे..... इसलिए इस दीमक को समूल नष्ट किया जाए.
इसी में हिन्दुस्तान का हित है. इस बारे में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस (Devendra Phadanavis) को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि पीएफआई पर इतनी कठोर कार्रवाई की जाए कि इनके समर्थकों को पानी के लिए भी ‘पा’ शब्द याद न आए.
पुणे में पीएफआई समर्थकों की कथित नारेबाजी से शिंदे सरकार भी विचलित प्रतीत होती है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे (CM Eknath Shinde) ने नारेबाजी करने वालों की कड़ी निंदा करते हुए उन पर कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है और यह भी कहा है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती पर ऐसे नारे लगाने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी उसी लाईन के अनुरूप है जिसे लेकर उन्होंने अपने समर्थकों के साथ उद्धव ठाकरे (Uddhav Thakare) का साथ छोड़ा था. शिंदे गुट का कहना था कि उद्धव ठाकरे ने एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी की सरकार बना कर शिवसेना के संस्थापक बालासाहब ठाकरे (Balasahab Thakare) की कट्टर हिन्दुत्ववादी नीति से मुंह मोड़ लिया था. उपमुख्यमंत्री और राज्य के गृहमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा है कि अगर किसी ने नापाक इरादे से यह नारेबाजी की है तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा और कठोर से कठोर सजा दी जाएगी.
पुलिस का कहना है कि पुणे में पीएफआई समर्थकों का प्रदर्शन बिना अनुमति के किया गया था. एनआईए, ईडी और कई अन्य जांच एजेंसियों ने 22 सितंबर को 15 राज्यों में एक साथ छापे मारकर पीएफआई के नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 106 लोगों को गिरफ्तार किया था. इनमें महाराष्ट्र और कर्नाटक में 20-20, तमिलनाडु में 10, उत्तरप्रदेश में 8, असम में 6, आंध्र प्रदेश में 5, मध्यप्रदेश में 4, दिल्ली, पुडुचेरी में 3-3 और राजस्थान में पीआईएफ के दो सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली में जिन दो लोगों को पकड़ा गया है उनमें पीएफआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमएस सलाम और दिल्ली अध्यक्ष परवेज अहमद शामिल हैं. इसके पहले देश भर में गिरफ्तार लोगों पर अलग अलग आरोप हैं जिनमें टेरर फंडिंग और आतंकवादी प्रशिक्षण कैंप चलाने के मामले भी शामिल हैं.
महाराष्ट्र में संभाजीनगर में महाराष्ट्र एटीएस ने पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष शेख नासीर को हिरासत में लिया है और कोर्ट ने 2 अक्टूबर तक पुलिस हिरासत में रखने का आदेश दिया है . आतंकवादियों को धन उपलब्ध कराने के शक में एटीएस ने पहले ही शेख इरफान शेख सलीम उर्फ इरफान मिल्ली, सय्यद फैजल सय्यद खलील, परवेजन खान मुजमिल खान और अब्दुल हादी अब्दुल रउफ को हिरासत में लिया था. नासीर शेख की जांच चल रही थी. उस पर भी आतंकवादियों को धन उपलब्ध कराने का आरोप है. पीएफआई की छवि अच्छी नहीं है. यद्यपि यह संगठन खुद को गैर लाभकारी संगठन बताता है लेकिन सरकार की निगाह में यह एक कट्टरपंथी इस्लामी गठबंधन है. केरल सरकार का तो कहना था कि पीएफआई और कुछ नहीं बल्कि प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का बदला हुआ रूप है.
महाराष्ट्र में पीएफआई के 20 समर्थकों की गिरफ्तारी बहुत चिंताजनक बात है. पिछले करीब 30 वर्षों में आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा की आग में महाराष्ट्र कई बार बुरी तरह झुलसा है. दो बड़ी घटनाएं इनकी विभीषिका बताने के लिए पर्याप्त हैं.
1992 में श्रीरामजन्मभूमि विवाद के आंदोलन के समय बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद मुंबई में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. दंगों की जांच के लिए गठित श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया था कि ये दंगे दिसंबर, 1992 और जनवरी, 1993 तक चले और इन दो महीनों में 900 लोग मारे गए. मतृकों में 575 मुस्लिम, 275 हिंदू, 45 की पहचान नहीं हो सकी थी और पांच अन्य थे. उस समय कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री सुधाकर नाईक इन दंगों पर काबू पाने में पूरी तरह से असमर्थ साबित हुए. दंगे रोकने के लिए आखिरकार सेना को बुलाया गया तब जाकर स्थिति नियंत्रण में आयी थी.
दूसरी बड़ी घटना मुंबई पर आतंकवादी हमले की है, जब 26 नवंबर 2008 को कसाब समेत लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित पाकिस्तान के 10 सशस्त्र आतंकवादियों ने दो फाइव स्टार होटलों, एक अस्पताल, रेलवे स्टेशनों और एक यहूदी केंद्र को निशाना बना कर हमला किया.
इन हमलों में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे. चार दिनों तक चले इस हमले की शुरुआत लियोपोल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से हुई, जिसका खात्मा ताज होटल में हुआ. लगभग 60 घंटे से भी ज्यादा समय तक गोलियां चलती रही. इस हमले में आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त सदानंद दाते और राष्ट्रीय सुरक्षा बल के मेजर कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन, निरीक्षक सुशांत शिंदे, सहायक उप निरीक्षक-नानासाहब भोंसले, सहायक उप निरीक्षक-तुकाराम ओंबले, उप निरीक्षक- प्रकाश मोरे, उप निरीक्षक-दुदगुड़े, कांस्टेबल-विजय खांडेकर, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, अंबादोस पवार और एमसी चौधरी शहीद हुए. तुकाराम ओंबले ने अपनी जान पर खेल कर आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा था. कसाब को बाद में फांसी दे दी गयी.
अभी हाल ही में 21 जून को अमरावती में ही एक औषधि विक्रेता उमेश कोल्हे (Umesh Kolhe) की गला काटकर हत्या कर दी गयी थी. उन्होंने व्हॉट्सएप ग्रुप पर पूर्व बीजेपी नेता नुपूर शर्मा (Nupur Sharma) की एक विवादित टिप्पणी के बाद उसका समर्थन करने वाली पोस्ट डाली थी.
सोशल मीडिया पर ऐसी ही एक पोस्ट डालने को लेकर उदयपुर में 28 जून को कन्हैयालाल नाम के एक दर्जी की उसके दुकान में ही गला काटकर हत्या कर दी गई थी. पिछले साल त्रिपुरा में कथित हिंसा भड़कने की अफवाहों के बाद महाराष्ट्र में अमरावती, मालेगांव और भिवंडी में हिंसक वारदातें और आगजनी की घटनाएं हुईं. बीजेपी विधायक नीतेश राणे ने इन वारदातों में रजा अकेडमी का हाथ होने का आरोप लगाया था.
महाराष्ट्र में कई जिले सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील हैं और देश में कहीं भी हुई किसी भी घटना की यहां प्रतिक्रिया देखने को मिलती है. सांप्रदायिक सहिष्णुता का अभाव,सद्भाव की कमी, धार्मिक और राजनेताओं की बयानबाजी और दंगों और आतंकी हमलों के पूर्वातिहास को देखते हुए राज्य में पीएफआई जैसे संगठन का सक्रिय होना चिंता का विषय है.
(विष्णु गजानन पांडे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)
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Published: 28 Sep 2022,09:36 AM IST