कर्नाटक चुनावः 10 बातें जान जाइए और बन जाइए एक्सपर्ट
कर्नाटक से जुड़ी हर खास बात समझिए सिर्फ यहां
प्रसन्न प्रांजल
पॉलिटिक्स
Updated:
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बीजेपी और कांग्रेस हर कीमत पर कर्नाटक जीतने की कोशिश
(फोटो: द क्विंट)
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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग में महज दो दिन बचे हैं. चुनाव जीतने के लिए बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस ने जमकर प्रचार किए. 2019 में होनेवाले आम चुनाव से पहले कर्नाटक चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी की तरफ से पीएम मोदी ने खुद मोर्चा संभाले रखा, वहीं कांग्रेस का नेतृत्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया.
कर्नाटक चुनाव इन दिनों काफी सुर्खियों में है. इसलिए इसके बारे में 10 ऐसी बातें बता रहे हैं जिसे पढ़कर आप भी इस राज्य के एक्सपर्ट बन जाएंगे.
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए दो दिन बाद यानी 12 मई को वोटिंग होगी और 15 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे.
राज्य की 224 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 123 सीटों की जरूरत होगी. मुख्य तौर पर कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस चुनाव मैदान में है.
2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी. जबकि बीजेपी और जेडीएस को 40-40 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुआई में चुनावी मैदान में है, जबकि बीजेपी के सीएम उम्मीदवार हैं कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा.
येदियुरप्पा इसके पहले दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन 2011 में उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
राज्य की आबादी का 72 फीसदी यानी 4 करोड़ 96 लाख वोटर हैं. लेकिन लिंगायत समुदाय का दबदबा है. इसलिए दोनों पार्टियां उन्हें अपनी तरफ खींचने में लगी हैं. राज्य में इनकी आबादी करीब 17 फीसदी है और राज्य की करीब 100 सीटों पर सीधा असर डालते हैं. मौजूदा विधानसभा में 52 विधायक लिंगायत हैं.
लिंगायत को कर्नाटक में बीजेपी का पारंपरिक वोट माना जाता है. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से हैं. लेकिन कांग्रेस ने इस समुदाय को अपनी ओर खींचने के इरादे से इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है.
राज्य में लिंगायतों के अलावा दलित काफी अहम भूमिका में रहते हैं. राज्य में दलित समुदाय की आबादी करीब 19 फीसदी है, वहीं मुस्लिम 16 फीसदी, ओबीसी 16 फीसदी और कुरुबास 7 फीसदी के करीब है.
राज्य के कोस्टल एरिया में बीजेपी का प्रभुत्व रहा है, वहीं उत्तरी कन्नड़, दक्षिणी कन्नड़, उडूप्पी और चिकमंगलूर जैसे इलाकों में कांग्रेस का दबदबा रहा है. उत्तरी और दक्षिणी कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है.
40 सालों में कर्नाटक और दिल्ली की गद्दी एक साथ किसी को नहीं मिली है. एक मिलती है, तो दूसरी फिसल जाती है. 1978 से अब तक 40 साल में सिर्फ एक बार यानी 2013 में ऐसा हुआ है, जब कर्नाटक में वही पार्टी जीती, जिसकी केंद्र में सरकार (कांग्रेस) थी. लेकिन कर्नाटक जीतने के सालभर के बाद ही हाथ से केंद्र की सत्ता निकल गई.